गैसीकरण (Gasification) वह प्रक्रिया है जिसमें जैविक पदार्थों या जीवाश्म आधारित कार्बनयुक्त पदार्थों को कार्बन मोनोऑक्साइड, हाइड्रोजन मिथेन में बदला जाता है। इस प्रक्रिया में पदार्थ को उच्च ताप (>500 °C) पर ले जाकर, बिना ज्वलन के, नियंत्रित मात्रा में ऑक्सीजन और/या जलवाष्प से क्रिया करायी जाती है। प्राप्त गैस का मिश्रण Completely गैस या 'सिंथेटिक गैस' कहलाती है जो स्वयं एक ईंधन है। इसका महत्व इस बात में है कि यह नवीकरणीय ऊर्जा प्राप्ति का एक स्रोत है।

गैसीकरण का लाभ यह है कि सिंथेटिक गैस को उपयोग में लाना मूल पदार्थ को उपयोग में लाने की अपेक्षा अधिक दक्ष (efficient) है क्योंकि इसे अधिक ताप पर भी जलाया जा सकता है या ईंधन सेल में भी जलाया जा सकता है। इस गैस को सीधे गैस इंजनों में भी जलाया जा सकता है। इस गैस को फिशर-ट्रॉप्स प्रक्रिया (Fischer-Tropsch process) द्वारा मेथेनॉल और हाइड्रोजन में बदला जा सकता

यह सर्व विदित है कि ऊर्जा की मांग समाज में बढ़ती जा रही है और जीवाश्‍म ईंधन की उपलब्‍धता कम हो रही है। ऊर्जा परिवर्तन की क्षमता को बढ़ाने और ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोत खोजने पर भी बल दिया जा रहा है। ऐसा ही एक ऊर्जा विकल्‍प बायोमास ऊर्जा है। बायोमास लंबे समय से समाज की ऊर्जा संबंधी आवश्‍यकताओं को पूरा करता आया है और कई विकासशील देशों में ऊर्जा आवश्‍यकताओं की पूर्ति में सर्वाधिक भाग बायोमास ऊर्जा का है। बायोमास की ज्‍वलनशीलता ऊर्जा उत्‍पादन का रास्‍ता है और इसका खाना पकाने से लेकर विद्युत उत्‍पादन तक विभिन्‍न प्रकार से उपयोग किया जाता है।

ऊर्जा उत्‍पादन के लिए बायोमास का अन्‍य उपयोग गैसीकरण है। गैसीकरण में उष्‍मा रासायनिक परिवर्तन द्वारा ठोस बायोमास को उत्‍पादन गैस जिसे उत्‍पादित गैस कहा जाता है में परिवर्तित किया जाता है जिसका उपयोग अंत: दहन इंजन अथवा परिणामत: उपयोग किए जाने वाले ऊष्‍मीय यंत्र में किया जा सकता है। भारतीय विज्ञान संस्थान में दो दशकों से अधिक के शोध और विकास के परिणामस्‍वरूप अत्‍याधुनिक आईआईएससी बायोमास गैसीफिकेशन सिस्‍टम विकसित हुआ है। इस प्रौद्योगिकी में स्‍वच्‍छ विकास तंत्रों के माध्‍यम से ग्रीन हाउस गैसों और कार्बन का उत्‍सर्जन कम होता है। वर्तमान में देश और विदेश दोनों स्‍थानों पर विद्युत उत्‍पादन और ऊष्‍मीय उपयोग हेतु विभिन्‍न स्‍थानों पर इस डिजाइन के 40 से भी अधिक गैसीफिकेशन सिस्‍टम कार्य कर रहे हैं। इनमें से कुछ परियोजनाओं में उपयोग का प्रतिशत काफी अधिक है जिसके निवेशकों को काफी अधिक लाभ प्राप्‍त हुए है।

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