गोंड कला लोककला का ही एक रूप है। जो गोंड समाज की उपशाखा परधान समुदायों के कलाकारों द्वारा चित्रित की जाती है। जिसमें गोंड कथाओं, गीतों एवं कहानियों का चित्रण किया जाता है जो परम्परागत रूप से परधान समुदायों के द्वारा गोंड देवी देवताओं को जगाने और खुश करने हेतु सदियों से गायी जाती चली आ रही हैं।

प्रायः परधान लोग राजगोंड राजपरिवारो के यहाँ कथागायन करने हेतु जाया करते थे। जो उनकी जीविका का साधन था। जब परधानों के कथागायन की परंपरा कम हो गयी तब परधान कलाकार जनगढ़ सिंह श्याम ने इस गोंड कथागायन की परंपरा को चित्रकला के माध्यम से साकार करना प्रारम्भ किया। पद्मश्री भज्जू सिंह श्याम, दुर्गा बाई व्याम प्रमुख गोंड चित्रकार हैं। गोंड चित्रकला जीआई टैग प्राप्त है। गोंड चित्रकला देश विदेश में काफी लोकप्रिय हो रहा है। मध्यप्रदेश पर्यटन विभाग द्वारा पर्यटन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से विज्ञापन में गोंडी चित्रकला का बेहद खूबसूरती से प्रयोग किया गया है।


गोंड समुदाय में मुख्य नृत्य कर्मा, सैला, ढेमसा, रीना, गोंचो नृत्य आमतौर पर कृषि, जन्म,विवाह उत्सव के रूप में नृत्य किया जाता है।

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