ग्रेफाइट कार्बन का एक बहुरूप है। काले भूरे रंग का यह अधातु सिंहल, साइबेरिया, अमेरिका के केलिफोर्निया, कोरिया, न्यूजीलैण्ड तथा इटली में पाया जाता है। इसमें एक विशेष प्रकार की चमक पायी जाती है एवं यह विद्युत तथा ताप का सुचालक होता है। इसका आपेक्षिक घनत्व 2.25 है। यह 7000C पर जलकर कार्बन डाई-आक्साइड बनाता है।भारत में यह अरुणाचल प्रदेश, झारखंड, ओडिशा आदि क्षेत्रों में पाया जाता है।

ग्रेफाइट

ग्रेफाइट शब्द ग्रीक शब्द ग्रेफो से लिया गया है जिसका अर्थ है मैं लिखता हूँ अर्थात् इसके द्वारा कागज पर निशान बनाया जा सकता है।

रासायनिक संरचना

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ग्रैफाइट अधातु होकर भी मुलायम और विद्युत चालक है। उसके अपवादात्मक गुण उसकी विशिष्ट संरचना के कारण होते हैं। इसमें कार्बन परमाणु विभिन्न परतों में व्यवस्थित होते हैं और प्रत्येक परमाणु उसी परत के तीन निकटवर्ती परमाणुओं से सहसंयोजक बंधन में होता है। प्रत्येक परमाणु का चौथा संयोजी इलेक्ट्रॉन अलग परतों के मध्य उपस्थित होता है और यह गमन के लिए मुक्त होता है। यही मुक्त इलेक्ट्रॉन ग्रैफाइट को विद्युत का उत्तम चालक बनाते हैं। विभिन परतें एक-दूसरे पर सरक सकती हैं। यह ग्रैफाइट को मुलायम ठोस और उत्तम ठोस स्नेहक बनाते हैं।[1]

ग्रेफाइट का उपयोग पेन्सिल की लीड तथा घड़ियों की कमानी बनाने में होता है। उच्च ताप पर चलने वाली मशीनों में इसको तेल या पानी के साथ मिलाकर स्नेहक के रूप में प्रयोग किया जाता है। इसका पाउडर पालिश करने के काम में आता है। न्यूक्लियर रियेक्टर में मोडेरेटर के रूप में इसका उपयोग किया जाता है। धातुओं को पिघलाने के लिए क्रुसिबल बनाने में इसका उपयोग किया जाता है। ग्रेफाइट का उपयोग ड्राई सेल बनाने में भी किया जाता है। सबसे अधिक उपयोग इलेक्ट्रिक वाहनों की बैटरी बनाने में होता है।[2]

  1. रसायनशास्त्र, भाग १, कक्षा १२, नई दिल्ली, पृष्ठ ५
  2. गुप्त, तारकनाथ (नवंबर २००४). भौतिकी एवं रसायन शास्त्र. कोलकाता: भारती पुस्तक मन्दिर,. पृ॰ 252-253. |access-date= दिए जाने पर |url= भी दिया जाना चाहिए (मदद)सीएस1 रखरखाव: फालतू चिह्न (link)

ग्रेफाइट का प्रसंकरित sp2 होता है