साइबेरिया
साइबेरिया (रूसी: Сибирь, सिबीर) एक विशाल और विस्तृत भूक्षेत्र है जिसमें लगभग समूचा उत्तर एशिया समाया हुआ है। यह रूस का मध्य और पूर्वी भाग है। सन् 1991 तक यह सोवियत संघ का भाग हुआ करता था। साइबेरिया का क्षेत्रफल 131 लाख वर्ग किमी है। तुलना के लिए पूरे भारत का क्षेत्रफल 32.8 लाख वर्ग किमी है, यानि साइबेरिया भारत से क़रीब चार गुना है। फिर भी साइबेरिया का मौसम और भूस्थिति इतनी सख़्त है के यहाँ केवल 4 करोड़ लोग रहते हैं, जो 2011 में केवल उड़ीसा राज्य की आबादी थी।
यूरेशिया का अधिकतर स्टॅप (मैदानी घासवाला) इलाक़ा साइबेरिया में आता है। साइबेरिया पश्चिम में यूराल पहाड़ों से शुरू होकर पूर्व में प्रशांत महासागर तक और उत्तर में उत्तरध्रुवीय महासागर (आर्कटिक महासागर) तक फैला हुआ है। दक्षिण में इसकी सीमाएँ क़ाज़ाक़स्तान, मंगोलिया और चीन से लगती हैं।
इतिहास
संपादित करेंलगभग 25 से 50 करोड़ वर्ष पहले (यानि पृथ्वी पर मनुष्यों के उभरने से बहुत पहले), साइबेरिया के बहुत से क्षेत्र में भयंकर ज्वालामुखीय विस्फोट हुए जो क़रीब 10 लाख साल तक चलते रहे। माना जाता है के इनकी वजह से पृथ्वी पर मौजूद 90% जीवों की नस्लें मारी गई।[1] साइबेरिया के पठार की ज़मीन इन्ही विस्फोटों में उगले गए लावा से बनी हुई है।
साइबेरिया में मानव उपस्थिति के चिन्ह लगभग 40,000 साल पुराने हैं। समय के साथ यहाँ बहुत सी जातियाँ बस गयी या उत्पन्न हुई, जिनमें यॅनॅत, नॅनॅत, एवेंक, हूण, स्किथी और उईग़ुर शामिल हैं। 13वी सदी में साइबेरिया पर मंगोल क़ब्ज़ा हो गया और 14वी सदी में एक स्वतन्त्र साइबेरियाई सल्तनत स्थापित हुई। मंगोलों के दबाव से बयकाल झील के पास बसने वाले याकुत लोग उत्तर की ओर जा कर बस गए।[2] यहाँ पर अपने ठिकानों से मंगोल पश्चिम की ओर रूस पर भी हमला किया करते थे। 16वी शताब्दी में रूस की शक्ति बढ़ने लगी और वे पूर्व की ओर फैलने लगे। पहले व्यापारी और इक्के-दुक्के सैनिक साइबेरिया पहुँचे और उनके पीछे रूसी सेना ने आकर यहाँ अड्डे और लकड़ी के क़िले बनाने शुरू कर दिए। 17वी सदी के मध्य तक रूसी नियंत्रण फैलकर प्रशांत महासागर तक पहुँच चुका था। सन् 1709 में साइबेरिया की कुल रूसी नस्ल की आबादी 2,30,000 थी।[3]
19वी शताब्दी के अंत तक साइबेरिया एक पिछड़ा और बहुत ही कम जनसँख्या वाला क्षेत्र रहा। यहाँ रूस की शाही सरकार अपने राजनैतिक क़ैदी भेजा करती थी, क्योंकि यहाँ हज़ारों मील तक फैले बर्फ़ीले मैदान को कोई भगा हुआ क़ैदी भी पार नहीं कर सकता था। 1891-1916 के काल में ट्रांस-साइबेरियाई रेलमार्ग बना जिसने रूस के औद्योगिकी-पूर्ण पश्चिमी भाग से साइबेरिया का नाता जोड़ा। समय के साथ-साथ साइबेरिया की आबादी बढ़ती गयी। यहाँ का सबसे बड़ा आर्थिक व्यवसाय धरती से धातुओं, कोयला और अन्य पदार्थों का निकालना था।
सोवियत संघ के ज़माने में यहाँ कैदियों को रखने के लिए बड़े अड्डे बनाए गए, जिन्हें "गुलाग" कहा जाता था।[4] अनुमान किया गया है कि इन गुलागों में लगभग 1.4 करोड़ लोगों को भेजा गया। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान खाना कम पड़ने से 5 लाख से अधिक कैदियों ने इन गुलागों में अपना दम तोड़ दिया।[5] सोवियत नीति के अनुसार अगर सोवियत संघ के किसी भाग में कोई राष्ट्रिय समुदाय शक़ की नज़र से देखा जाने लगे तो कभी-कभी पूरे समुदायों को देश-निकला देकर साइबेरिया भेज दिया जाता था।[6]
मौसम
संपादित करेंउत्तरी साइबेरिया बहुत सर्द क्षेत्र है और यहाँ गरमी का मौसम केवल एक महीने रहता है। साइबेरिया की लगभग पूरी आबादी उसके दक्षिण भाग में रहती है और ट्रांस-साइबेरियाई रेलमार्ग के पास ही रहती है। इस दक्षिणी भाग में सर्दियाँ तो सख़्त होती हैं (जनवरी का औसत तापमान −15°सेंटीग्रेड) लेकिन कम से कम 4 महीने का गरमी का मौसम भी होता है जिसमें अच्छी फ़सल उगाई जा सकती है। जुलाई में औसत तापमान 16°सेंटीग्रेड और दिन के समय का तापमान 20°सेंटीग्रेड से भी ऊपर पहुँच जाता है। यहाँ की धरती विशेष प्रकार की होती है। इसे चॅर्नोज़ॅम कहते हैं, जिसका रूसी में अर्थ है "काली मिटटी" और यह बहुत ही उपजाऊ होती है।
साइबेरिया के एक प्रशासनिक विभाग का नाम साख़ा गणतंत्र है, जिसमें स्थित ओय्म्याकोन शहर में −71.2°सेंटीग्रेड तक का न्यूनतम तापमान देखा जा चुका है, जिसके आधार पर इसे विश्व का सबसे ठंडा शहर होने का ख़िताब प्राप्त है।
आबादी
संपादित करेंसाइबेरिया में जनसँख्या का औसत घनत्व केवल 4 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर है। तुलना के लिए सन् 2011 की जनगणना में भारत के बिहार राज्य में जन-घनत्व 1102 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी था। यहाँ के अधिकतर लोग रूसी हैं, या यूक्रेनियाई मूल के लोग हैं जिन्होंने रूसी पहचान अपना ली है। साइबेरिया में लगभग चार लाख जर्मन मूल के भी लोग हैं जिन्होंने रूसी पहचान अपना ली है। साइबेरिया रूस का हिस्सा 17वी शताब्दी के बाद ही बना था और रूसी इस क्षेत्र में तब ही दाख़िल हुए थे। उस से पहले यहाँ बहुत सी जनजातियाँ रहती थी, जिनके वंशज अभी भी यहाँ रहती हैं। इनमें बुरयात, तूवाई, याकूत और साइबेरियाई ततार लोग शामिल हैं। बुरयातों और याकुतों की संख्या चार-चार लाख से अधिक है। यहाँ कुछ अन्य आदिवासी जातियों की छोटी आबादियाँ भी रहतीं हैं, जैसे की केत, एवेंक, चुकची, कोरयाक, युकाग़ीर, वग़ैरह।
इन्हें भी देखें
संपादित करेंसन्दर्भ
संपादित करें- ↑ "Yellowstone's Super Sister Archived 2005-03-14 at the वेबैक मशीन", Discovery Channel.
- ↑ "Investigating the effects of prehistoric migrations in Siberia: genetic variation and the origins of Yakuts. Archived 2012-04-15 at the वेबैक मशीन". Hum Genet. 2006 Oct;120(3):334-53. Epub 2006 Jul 15.
- ↑ Sean C. Goodlett. "Russia's Expansionist Policies I. The Conquest of Siberia". Falcon.fsc.edu. मूल से 11 मई 2011 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2010-05-15.
- ↑ "The unknown gulag: the lost world of Stalin's special settlements". Lynne Viola (2007). Oxford University Press US. p.3. ISBN 0-19-518769-5
- ↑ Zemskov, Gulag, Sociologičeskije issledovanija, 1991, No. 6, pp. 14-15.
- ↑ Victims of Stalinism: A Comment. Robert Conquest. Europe-Asia Studies, Vol. 49, No. 7 (Nov., 1997), pp. 1317-1319:"We are all inclined to accept the Zemskov totals (even if not as complete) with their 14 million intake to Gulag 'camps' alone, to which must be added 4-5 million going to Gulag 'colonies', to say nothing of the 3.5 million already in, or sent to, 'labour settlements'. However taken, these are surely 'high' figures."