मंगोलिया

पूर्व और मध्य एशिया में एक भूमि से घिरा (लेंडलॉक) देश

मंगोलिया (मंगोलियाई: Монгол улс,) पूर्व और मध्य एशिया में एक भूमि से घिरा (लेंडलॉक) देश है। इसकी सीमाएं उत्तर में रूस, दक्षिण, पूर्वी और पश्चिमी में चीन से मिलती हैं। हालांकि, मंगोलिया की सीमा कज़ाख़िस्तान से नहीं मिलती, लेकिन इसकी सबसे पश्चिमी छोर कज़ाख़िस्तान के पूर्वी सिरे से केवल 24 मील (38 किमी) दूर है। देश की राजधानी और सबसे बड़ा शहर उलान बाटोर है, जहां देश की लगभग 38% जनसंख्या निवास करती है। मंगोलिया में संसदीय गणतंत्र है।

मंगोलिया
Монгол улс
Mongol uls
ध्वज कुल चिह्न
राष्ट्रगान: "Монгол улсын төрийн дуулал"
मंगोलिया का राष्ट्रगान
अवस्थिति: मंगोलिया
राजधानी
और सबसे बड़ा नगर
उलान बतोर
47°55′N 106°53′E / 47.917°N 106.883°E / 47.917; 106.883
राजभाषा(एँ) मंगोलियाई
निवासी मंगोलियाई
सरकार संसदीय गणतन्त्र
 -  प्रधानमन्त्री सानजाजिन बायर
गठन
 -  मंगोल साम्राज्य का गठन 1206 
 -  स्वतंत्रता की घोषणा (क्विंग साम्राज्य से) 29 दिसंबर 1911 
क्षेत्रफल
 -  कुल 1,564,115.75 km2 (१९वाँ)
 -  जल (%) 0.43
जनसंख्या
 -  जुलाई 2007 जनगणना 2,951,786 (१३९वाँ)
 -  2000 जनगणना 24,07,500
सकल घरेलू उत्पाद (पीपीपी) 2008 प्राक्कलन
 -  कुल ₹7,76,36,20,99,500($9.399 अरब) (-)
 -  प्रति व्यक्ति $3,541 (-)
मानव विकास सूचकांक (2013)वृद्धि 0.698[1]
मध्यम · 103वाँ
मुद्रा तोगोर्ग (MNT)
समय मण्डल (यू॰टी॰सी॰+7 से +8)
दिनांक प्रारूप yyyy.mm.dd (CE)
दूरभाष कूट 976
इंटरनेट टीएलडी .mn
सन १९९० से तिब्बती बौद्धमत पुनः जीवित हो उठा है।

इतिहास संपादित करें

आज जिसे मंगोलिया कहा जाता है, कभी विभिन्न घुमंतू साम्राज्यों के द्वारा शासित किया गया, इन साम्राज्यों में शिंओग्नु, शियानबेई, रोऊरन, गोतुर्क और अन्य शामिल हैं। सन् 1206 में चंगेज खान द्वारा मंगोल साम्राज्य की स्थापना की गई। लेकिन युआन राजवंश के पतन के बाद मंगोल अपने पुराने रहन-सहन पर लौट आए। 16 वीं और 17 वीं शताब्दी में मंगोलिया तिब्बती बौद्ध धर्म के प्रभाव में आया। 17 वीं सदी के अंत में मंगोलिया के अधिकांश क्षेत्र में क्विंग राजवंश के शासनाधिन हो गया था।1911 में किंग राजवंश के पतन के दौरान मंगोलिया ने स्वतंत्रता की घोषणा की, लेकिन 1921 तक स्वतंत्रता को स्थापित करने और 1945 तक अंतरराष्ट्रीय मान्यता हासिल करने के लिए संघर्ष करना पड़ा था। इसके नतीजे में देश मजबूत रूस और सोवियत प्रभाव में आया, 1924 में मंगोलियाई जनवादी गणराज्य की घोषणा की गई और राजनीतिक रूप से मंगोलिया उस समय के सोवियत राजनीति का अनुपालन करने लगा। १९८९ में पूर्वी यूरोप में कम्युनिस्ट शासनों के टूटने के बाद, मंगोलिया में १९९० में लोकतांत्रिक क्रांति देखने को मिली, जिसकी वजह से बहु-दलीय व्यवस्था स्थापित हुई, १९९२ में नया संविधान बना और देश बाजार अर्थव्यवस्था की ओर अग्रसर हुआ।

मंगोलिया की संस्कृति संपादित करें

छिगिस खान ने (जिसे भारत में चंगेज खान के नाम से जाना जाता है) मंगोल जातियों को संगठित करके एक बहुत बडे साम्राज्य की नींव डाली। यह साम्राज्य चीन, रूस, पूर्वी यूरोप तथा मध्य एशिया तक फैला हुआ था। इतिहासकारों ने मंगोल कोशमन (श्रमण) मत का अनुयायी होना लिखा है। मंगोल इतिहास में लिखा है कि छठी शताब्दी में भारत से दो आचार्य ‘‘नरेन्द्र यशसँ’’ तथा ‘‘शाक्य वंश’’ मंगोलिया आये। वे अपने साथ बौद्ध सूत्र ग्रन्थ तथा मूर्तियां लाये। छठी शताब्दी में ही बौद्धमत का प्रचार आरम्भ हो गया और निरन्तर होता रहा। भारत से धर्माचार्य वहां जाते रहे और मंगोल धर्मपरायण जिज्ञासु तीर्थ यात्रा करने, संस्कृत का अध्ययन करने और धर्म का गूढ़ ज्ञान प्राप्त करने भारत आते रहे। 17वीं शती तक यह क्रम चलता रहा। मंगोलवासी अपने को भगवान बुद्ध के प्रिय शिष्य मौद्गल्यायन की संतान मानते हैं। मूलरूप में जो मंगोल देश था अब वह 3 भागों में बंटा हुआ है। मंगोलिया का एक भाग चीन के अधीन है।जिसे आन्तरिक मंगोलिया कहते हैं। मुख्य भाग जो अब स्वतन्त्र है, बाह्य मंगोलिया कहलाता है। कुछ भाग रूस के अधीन है जिसे साईबीरिया प्रदेश का भाग बना दिया गया है। इसे बुयार्त गणराज्य कहते हैं। मंगोलिया की राजधानी उलान बातर है जिसका शब्दार्थ है 'लाल बहादुर'। मंगोलिया का राष्ट्रध्वज स्वयंभू (सोयंबू उच्चारण करते हैं) कहलाता है। 'स्वयं भू' संस्कृत का शब्द है। बहुत से मंगोल लोग संस्कृत नाम रखते हैं। वहां भारतीय पंचाग तथा आयुर्वेद का प्रचलन है। मासों के नाम तथा सप्ताह के दिनों के नाम भी भारत से ही हैं। जैसे रविवार को आदिया (आदित्यवार), सोमवार सोमिया, मंगल के लिये संस्कृत का अंगारक शब्द है। बुद्धवार=बुद्ध, बृहस्पतिवार=व्रिहस्पत, शुक्रवार=सूकर, शनिवार के लिये सांचिर बोलते हैं।

मंगोलीया के एक भूतपूर्व राष्ट्रपति का नाम शुंभू था। मंगोल देश का जो वैज्ञानिक सर्वप्रथम अन्तरिक्ष में गया, उसका नाम गोरक्षथा। कुछ के नाम कीर्ति, कुषली, कुमुद, कुबेर सुमेर,जय जिमित्र, वज्रमपाणि आदि हैं। महिलाओं के नाम इन्द्री, रत्ना, अमृता आदि हैं। चीन में मंगोलवंश के प्रथम सम्राट कुब्लेखान हुए। उन्होनें तिब्बत से महायान बौद्धमत के प्रमुख आचार्य फाग्सपा (अर्थात आर्य) को पीकिग में बुलाकर उनसे दीक्षा ग्रहण की। आर्चाय फाग्सपा को राजगुरु की पदवी दी गयी। उन्होनें चीन में विहार बनवाये। चीन के बू-वाई शान नामक पर्वत पर मंजू श्रीदेवी का विशाल मंदिर बनवाया। आर्चाय फग्सपा को जो बहुमूल्य भेटें सम्राट से प्राप्त हुई उनका कुछ भाग बोध गया और महाबोधि भेजा गया।

कुब्लेखान ने चीन की विष्वविख्यात महाभित्ती के पश्चिमीद्वार पर उष्णीश विजयाधारणी नामक संस्कृत मंत्र लिखवायाः-

ॐ नमो भगवत्यै आर्य समन्त विमलोष्णीषविजयायै।

यह मंत्र सबसे ऊपर संस्कृत में, फिर तिब्बती में और फिर मंगोल और चीनी लिपियों में लिखा गया।

मंगोल देश के विहारों में स्थान-स्थान पर संस्कृत मंत्र लिखे रहते हैं। वे संस्कृत लिखने के लिये लांछा लिपि का प्रयोग करते हैं। भारत में बंगाल के पाल वंश में संस्कृत मंत्र लिखने के लिए जो सुन्दर अक्षर प्रयोग किये जिन्हें रंजना लिपि कहा जाता था, उसी रंजना लिपि को लांछा के रूप में मंगोलिया में प्रयोग किया जाता है। संस्कृत अक्षर सिखाने के लिये जो पुस्तक है उसे आलि, कालि, बीजहारम् कहते हैं। आलि अर्थात् अ, क इत्यादि स्वर व्यंजन। क्यांकि संस्कृत के अक्षर बीजमंत्र के रूप में भी प्रयोग में लाये जाते हैं।इस कारण अक्षर माला को बीजहारम् की संज्ञा दी गई।

साइबेरिया के अनेक बौद्ध विहारों और मन्दिरों में हमारा दल दर्शनार्थ गया। मंगोलिया के प्रत्येक विहार में एक पुस्तकालय होता है जहां बौद्ध साहित्य रखा हुआ है। यह ग्रन्थ तिब्बती भाषा ओर मंगोल भाषा में है। कुछ संस्कृत ग्रंथ भी हैं। प्रायः सभी ग्रन्थों का आरम्भ देवता के नमस्कार अथवा गुरु के लिये प्रमाण से होता है। जैसे ॐ नमो मुजजुघोषाय अथवा, ॐ गुरवे नमः इत्यादि। संस्कृत ग्रन्थों के लिये मंगोल लोगों का पूजा भाव देखकर सुखद आश्चर्य हुआ।

विहारों के द्वार पर संस्कृत मंत्र ही लिखे होते हैं। जैसे ‘‘ओं नमों भगवत्यै आर्य तरायै।’’ स्थान-स्थान पर स्वास्तिका के चिन्ह शोभायमान हैं और भी भारतीय धार्मिक चिन्ह विद्यमान हैं जैसे अष्ट मंगल, शंख, कलश या श्रीवत्स आदि।

मंगोलिया में सैंकडों छोटे-बड़े विहार हैं। प्रत्येक विहार में अनेक लामा निवास करते हैं तथा अध्ययन-अध्यापन व धर्मप्रचार का कार्य करते हैं। गांडुड़, प्रमुख विहारों में से एक है। यह आज भी दर्शकों के आकर्षण का केन्द्र बना हुआ है। गांडुड़ का अर्थ है तुषित विहार। विहार के द्वार पर विहार का संस्कृत नाम ‘‘तुषितः महायानद्वीपः’’ मोटे अक्षरों में लिखा गया है। यह चारों ओर से शंख, चक्र व आदि चित्रों से अलंकृत है। प्रवेश-द्वार पर दो सिंह बने हैं जो विहार के रक्षक के रूप में सुशोभित हैं। प्रांगण में प्रवेश करते ही मुख्यद्वार पर धर्मचक्र और दोनों ओर दो शान्तमुख मृग बने हैं। ऐसा ही मृगदाव का चित्र भारत में सारनाथ में दृष्टिगोचर होता है। चारों ओर की भित्तियों पर अनेक सुन्दर चित्र हैं। भगवान बुद्ध की अनेक भावमुद्राओं तथा आचार्यों के चित्र। छतों की अत्यन्त सुन्दर चित्रकारी आपको आश्चर्यचकित कर देगी।

प्रांगण में कई भवन हैं। प्रथम कोष्ठ पूजाभवन है।यहां अनेक लामा पूजा में तन्मय दीख पड़ते हैं। मूर्तियों पर सुन्दर वस्त्र चढ़ाने की परम्परा है। प्राचीन काल में ये वस्त्र काशी से बनकर आते थे, अतः इन्हें काशिका कहा जाता है। भारत के कुछ क्षेत्रों में आज भी इस प्रकार का डेढ़ या दो गज कपड़ा सम्मानस्वरुप देने की प्रथा है। किन्तु ये सूती होते हैं तथा उन पर भारतीय मांगलिक चिन्ह बने होते हैं जैसे श्रीवत्स, स्वास्तिक आदि।

विहार का दूसरा भवन ‘‘वज्रधर भवन’’ कहलाता है। यहां वज्रधर की धातु की बनी अत्यन्त सुन्दर मूर्ति प्रतिष्ठित है। इसके निर्माता ज्ञानवज्र है। एक अन्य अवलोकितेश्वर की नेपाल में बनी मूर्ति तिब्बत के प्रथम बौद्ध राजा स्त्रोन् चड्गपों के समय की है। इनमें भगवान बुद्ध के प्रवचनों का संकलन तथा 108 भागों में कज्जूर सजा है। एक और भारतीय आचार्य अश्मागुलि का सत्रहवीं शताब्दी का दण्ड पड़ा है। भवन के बाहर लाच्छा लिपि में संस्कृत लिखी हैः-

ॐ नमों भगवते। भैषज्यगुरुवैदूर्यप्रभा राजाय तथागत।

मंगोल देश में हिन्दू संस्कृति का प्रसार इतना अधिक और व्यापक रहा है कि मंगोल जाति के जन-जन के मन में भारतीय महापुरूषों कर आदर, भारत के विपुल संस्कृत साहित्य के प्रति प्रेम, भारतीय शास्त्रों के प्रति श्रद्धा और भारत की भूमि के प्रति पूजाभाव विद्यमान है।

लद्दाख के १९वें कुशक बकुला रिनपोछे कई वर्षों तक मंगोलिया में भारत के राजदूत थे। श्री कुशक बकुला को भगवान बुद्ध के 16 अर्हतों में से एक का अवतार माना जाता है। इस कारण बौद्ध मंगोल जनता के लिये वे पूज्य और श्रद्धेय हैं। रूसी आधिपत्य में मंगोल भाषा के लिये रूसी लिपि का चलन हो गया था, किन्तु अब पुनः वहां की राष्ट्रीय मंगोल लिपि का प्रयोग बढ़ाया जा रहा है।

सन्दर्भ संपादित करें

  1. "2014 Human Development Report Summary" (PDF). संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम. 2014. पपृ॰ 21–25. मूल से 29 जुलाई 2016 को पुरालेखित (PDF). अभिगमन तिथि 27 जुलाई 2014.

इन्हें भी देखें संपादित करें