इस लेख को तटस्थता जाँच हेतु नामित किया गया है। इसके बारे में चर्चा वार्ता पृष्ठ पर पाई जा सकती है। (सितंबर 2011) |
अमेरिकी अधिकारियों ने दवाओं के परीक्षण के नाम पर ग्वाटेमाला में कैदियों से हैवानियत भरा व्यवहार किया। 1940 के दशक में हुए इन अपराधों के मामले में चौकाने
वाली बातें सामने आ रही हैं।
राष्ट्रपति बराक ओबामा द्वारा नियुक्त आयोग को इस बात के सबूत मिले हैं कि अमेरिकी सरकार के शोधकर्ताओं ने 1940 के दशक में ग्वाटेमाला के कैदियों पर शारीरिक
और मानसिक प्रयोग किए। अमेरिकी पैसे से हुई उस रिसर्च में लोगों से इंसान की तरह व्यवहार नहीं किया गया। पीड़ितों को यह भी नहीं बताया गया कि उन पर एक रिसर्च
की जा रही है। रिसर्च यूएस पब्लिक हेल्थ सर्विस ने करवाई। 15353781,00.html[मृत कड़ियाँ]
सोमवार को आयोग की रिपोर्ट जारी हुई। आयोग की प्रमुख एमी गुटमान कहती हैं, "जो लोग इसमें शामिल थे वे इसे अति गोपनीय रखना चाहते थे। वे जानते थे कि अगर यह बात
फैली तो जनता उनकी आलोचना करेगी." गुटमान पेन्सलवेनिया यूनिवर्सिटी की अध्यक्ष हैं।
माना जा रहा है कि जांच रिपोर्ट से दवा उद्योग के लिए बनाए गए नियमों पर असर पड़ेगा. रिपोर्ट के बाद मरीजों पर नई दवा के परीक्षण से संबंधित कानून बदल सकते हैं।
फिलहाल अमेरिकी दवा निर्माता दूसरे देशों में दवाओं का परीक्षण करते हैं।
आयोग की रिपोर्ट सामने आने के बाद ग्वाटेमाला ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। ग्वाटेमाला ने रिसर्च को मानवता के खिलाफ अपराध बताते हुए अंतरराष्ट्रीय अदालत में जाने
की बात कही है। पीड़ित भी अमेरिकी सरकार के खिलाफ मुकदमे दायर कर रहे हैं। ग्वाटेमाला अपनी तरफ से भी जांच कर रहा है।image/0, 6450304_1,00 popup_lupe/0, 15353781_ind_1,00
कैसे हुई रिसर्च
1946 में अमेरिकी पब्लिक हेल्थ अधिकारी डॉक्टर जॉन कटलर ने अमेरिका और ग्वाटेमाला की कई एजेंसियों की मदद से रिसर्च शुरू की। रिसर्च के दौरान करीब 1,300 लोगों
में विभिन्न बीमारियां संक्रमित की गईं। इनमें से एक सेक्स संबंध बनाने से फैलने वाली बीमारी सिफलिस भी थी।
जांच में पता चला कि रिसर्चरों ने कैदियों और मानसिक रोगियों को यौनकर्मियों से संबंध बनाने के लिए मजबूर किया। इसके चलते कई लोगों को सिफलिस हो गया। पीड़ितों
के जननांगों और शरीर के कई हिस्सों में फंफूद लग गया। जननांगों से सिफलिस शरीर के भीतरी हिस्सों में पहुंचा। कई रोगियों को लकवा मार गया, कुछ अंधे हो गए और
ऐसे रोगियों की जान भी चली गई।
इन मरीजों पर इलाज के नाम पर भी कई प्रयोग किए गए। सिफलिस फैलाने के बाद रोगियों को एंटीबायोटिक पेन्सिलीन के इंक्जेशन लगाए गए। आयोग की नज़र में एक ऐसा मामला
सामने आया है जब मानसिक रूप से बीमार एक महिला को सिफलिस से संक्रमित किया गया। फिर डॉक्टर कटलर ने उसका अध्ययन किया गया। वह मौत के मुहाने पर खड़ी थी लेकिन
कटलर को अपने प्रयोग की पड़ी रही। सिफलिस के बाद महिला एसटीडी से संक्रमित किया गया। आखिरकार उस महिला ने दम तोड़ दिया। इस बात के लिखित सबूत हैं कि डॉक्टर
कटलर इस दौरान महिला पर नज़र रखे हुए थे।
image/0, 6130845_1,00 popup_lupe/0, 15353781_ind_2,00
नकेल कसने की तैयारी
आयोग की रिपोर्ट के बाद अमेरिका में दवा कंपनियों के लिए नए नियम बनाए जाने की मांग तेज होती जा रही है। वेलेस्ले कॉलेज की प्रोफेसर सुजान रेवरबाई कहती हैं,
"उन्होंने सोचा कि हम बीमारियों के खिलाफ युद्ध कर रहे हैं और युद्ध में जवान मारे जाते हैं। यह कह देना बहुत आसान है कि भविष्य में हम ऐसा नहीं करेंगे. लेकिन
हमें वाकई इस बारे में सोचने की जरूरत है। हम अभी जो कर रहे हैं और 20 साल बाद डरावना लगने लगेगा."
मामले के खुलासे में अहम भूमिका निभाने वाली रेवरबाई का कहना है कि 1972 तक अमेरिकी राज्य अल्बामा में अश्वेत महिलाओं पर सिफलिस का प्रयोग चलता रहा। डॉक्टर कटलर
की 2003 में मौत हो गई। कटलर ने अपने इस कृत्य के लिए कभी माफी नहीं मांगी. हाल के बरसों में इस मामले को लेकर कई ठोस बातें सामने आई हैं। यही वजह है कि पिछले
साल अमेरिकी सरकार को ग्वाटेमाला के लोगों से माफी मांगनी पड़ी। 15353781,00.html[मृत कड़ियाँ]