अरबी या घुइयाँ (अंग्रेजी:Taro) के नाम से भी जाना जाता है | मुख्य रूप से इसकी खेती कन्द के लिए ही की जाती है | इसके कन्द की सब्जी बनायी जाती है, उपवास के समय इन्हीं कन्दों का उपयोग फलाहार के लिए उबाल कर किया जाता है | इसके पत्तों की भी सब्जी बनाई जाती है | कुछ प्रजातियों के कन्दों में कनकानाहट पायी जाती है | जो उबाल देने के बाद समाप्त हो जाती है | पत्तियों में कनकनाहट कंन्द की तुलना में अधिक पायी जाती है |

अरवी के पौधे


प्रजातियाँ

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अरवी के कन्द

पत्तों तथा डंठलों के रंग के अनुसार अरवी की दो किस्में होती है : एक किस्म में डंठलें बैगनी रंग की तथा दूसरी में हरी होती है।


इसी प्रकार हरी और गोल कन्द वाली किस्में होती है। कुछ कन्दों के गूदे सफेद कुछ के पीले कुछ के नांरगी व बैगनी होते हैं |


अरवी की प्रमुख प्रजातियाँ निम्न हैं- गौरिया, काका कच्चू, पंचमुखी, फैजाबादी गेडिया, एफ.सी. १, एफ.सी.४, तथा एफ.सी. ६ इत्यादि


पूसा कोमल, पूसा बरसाती, पूसा फागुनी तथा पूसा दो फसली


परिस्थितिकी

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कोलोकैसिया प्रजाति का उपयोग कई Lepidoptera प्रजातियों के लार्वा द्वारा खाद्य पौधों के रूप में किया जाता है, जिसमें Palpifer murinus और Palpifer sexnotatus शामिल हैं।[1]

खेती करना

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सी एस्कुलेंटा और उस जीनस के अन्य सदस्यों की खेती सजावटी पौधों के या खाद्य कॉर्म के रूप में की जाती है, जो कई उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में एक पारंपरिक स्टार्च स्टेपल है।[2] इस पौधे को बाहर धरती में या बड़े कंटेनरों में उगाया जा सकता है। वे उपोष्णकटिबंधीय और उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पूरे वर्ष बाहर धरती में इसे उगाए जाते हैं। समशीतोष्ण क्षेत्रों में, उन्हें गर्मियों में लगाए जाते है, और सर्दियों में उन्हें फफूंद संक्रमण से बचाने के लिए धरती से खोदकर एक सूखी, हवादार जगह में संग्रहित किया जाता है। उन्हें लगभग किसी भी तापमान क्षेत्र में उगाया जा सकता है, जब तक कि गर्मी गर्म हो। इनका विकास 20 और 30 डिग्री सेल्सियस (68 और 86 डिग्री फारेनहाइट) के बीच तापमान पर सबसे अच्छा होता है। कुछ दिनों से अधिक समय तक तापमान 10 °C (50 °F) से कम रहने पर पौधों को नुकसान पहुँच सकता है। इस रूट कंद को आमतौर पर सतह के करीब लगाया जाता है। वृद्धि के पहले लक्षण 1 से 3 सप्ताह में दिखाई देंगे। एक परिपक्व पौधे को अच्छी तरह से बढ़ने के लिए कम से कम 1 m2 (11 sq. ft.) जगह की आवश्यकता होगी। वे कम्पोस्ट युक्त मिट्टी और छाया में सबसे अच्छे रूप में उगते हैं, लेकिन सामान्य मिट्टी में भी काफी अच्छी तरह से विकसित हो सकते है, जब तक कि वह पानी को बनाए रखने वाली है। पौधों को बहुत देर तक सूखी मिट्टी में नहीं छोड़ना चाहिए; यदि ऐसा होता है, तो पत्तियाँ मुरझा जाएँगी; पानी देने से ऐसे पौधे ठीक हो सकते है यदि यह बहुत अधिक सूखने से पहले किया जाता है। नियमित पौधों के उर्वरक के साथ आवधिक शीर्ष ड्रेसिंग (हर 3-4 सप्ताह में) से पैदावार बढ़ेगी।

अरवी के गुण

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अरवी (अरुई )बलकारक ,स्निग्ध ,गुरु,कफ को दूर करने वाली एवं विष्टम्भकजनक होती है और तेल में तली हुई अरवी अत्यंत रुचिकारक होती है।


इन्हें भी देखें

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बाहरी कड़ियाँ

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  1. "Colocasia Schott". gbif.org. अभिगमन तिथि 2023-01-26.
  2. "Industrial applications of taro (Colocasia esculenta) as a novel food ingredient: A review". ifst.onlinelibrary.wiley.com. अभिगमन तिथि 2023-03-29.