वाल्मिकी रामायण के अनुसार चंद्रहास असुरराज रावण की तलवार का नाम था जोकि उसे स्वयं भगवान शिव ने प्रदान की थी।

चंद्रहास का निर्माण स्वयं देवशिल्पी भगवान विश्वकर्मा ने किया था। इसे उन्होंने भगवान शंकर को भेंट स्वरूप प्रदान किया। कुछ समय बाद लंकापति रावण भगवान शिव की तपस्या करने लगा। जब भगवान शंकर ने उसे दर्शन नहीं दिए तब रावण ने अपने शीश काटना शुरू कर दिए। रावण की नाभि में अमृत होने के कारण उसके कटे हुए शीश के स्थान पर दूसरा शीश स्वत: ही प्रकट हो जाता। इस प्रकार रावण ने अपने शीश को नौ बार काट लिया। तब भगवान शिव प्रकट हुए और उन्होंने रावण के सभी शीशों को उसे वापिस दे दिया और उसे दशानन नाम दिया और साथ ही विश्वकर्मा द्वारा दी गई चंद्रहास खड्ग रावण को वरदान स्वरूप दे दी।