चम्पा बेन (9 अप्रैल 1935 - 21 जनवरी 2011) भारत की एक समाज सेविका एवं सामाजिक कार्यकर्ता थीं। उन्होने ने बेड़िया समुदाय की महिलाओं के उत्थान के लिए कार्य किया। इसके लिए उन्हें 2002-03 में राज्य के इंदिरा गांधी समाज सेवा पुरस्कार सहित अन्य कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया।

जीवन वृत्त संपादित करें

उनका जन्म 9 अप्रैल 1935 को हिमाचल प्रदेश के चंपा जिले में हुआ था और मृत्यु 22 जनवरी 2011 को ग्राम पथरिया जिला सागर में हुयी।

उनका बचपन ऐसे वातावरण में बीता जहां भगत सिंह इंकलाबी दौर चल रहा था। सुभाष, नेहरू, पटेल आदि के कार्यकलापों को वह बहुत रुचि के साथ सुना करती थीं। उनका घर ऐसे ख़बरों का केंद्र था। देश भक्ति के बीज इनके अंदर जन्म से हो गए थे। बड़े होने पर उन्होंने विनोवा के भूदान यज्ञ को समझा और इसमे जुट गईं। 1962 में भारत पर चीन का आक्रमण हुआ, उस समय वे सर्वोदय सम्मेलन में भाग लेने के लिये सूरत गयी थीं। आक्रमण के पश्चात उन्होंने देहरादून के आदिवासी क्षेत्र में जाकर आदिवासी बच्चों को पढ़ाने का काम शुरु किया। उसके बाद गुजरात के महान संत रविशंकर महाराज के सनिध्य में उत्तराखंड की पद यात्रा में भाग लिया जिसका संचालन सुंदर लाल बहुगुणा ने किया।

परमपूज्य धीरेंद्र मजूमदार की छत्रछाया में उन्होंने जमीन के साथ जुड़कर काम करना सीखा 1974 से 1977 तक उत्तर प्रदेश भूमि व्यवस्था समिति में रहकर शासकीय भूमि का वितरण किया। यह आर के पाटिल कमेटी के नाम से जानी जाती है।

निर्मला देशपांडे के नेत्रत्व में पंजाब में सान 1983-84 में सद्भावना पदयात्रा का संचालन किया इसी बीच सितंबर 1983 में अखिल भारतीय रचनात्मक समाज के सम्मेलन में उनका भोपाल आना हुआ। यहां पथरिया ग्राम के कुछ लोग आए हुये थे यहीं उनको कुछ लोगों ने एक बेड़नी महिला से मिलवाया जो बेड़िया समुदाय के उत्थान के लिए काम कर रही थी बेड़िया समुदाय में या जाति जहाँ परंपरा के नाम पर बलात वेश्या वृत्ति या तो कराई जाति है या वे महिलाए खुद इसे करती हैं। उस महिला के मुह से उन्होंने जो सुना और उसका दर्द भी महसुश किया। उसी सन्दर्भ में वह वहाँ 1983 में पथरिया ग्राम रहीं। यह गाँव भोपाल-सागर रोड़ पर सागर से 28 किलो मीटर दूरी पर है वहाँ पहुँच कर जो कुछ भी देखा वह दुखत आश्चर्य ही था। और वहीं से उन्होंने संकल्प लिया और वहीं रहना भी शुरू कर दिया। अपने काम की शुरुआत के लिए लोगों के पास गयी उन्हीं लोगों में से एक भाई ने आश्रम के लिए ढाई एकड़ जमीन दी और यहीं से उनके काम की शुरुआत हुई। धीरे-धीरे वहां की महिलाएं उनके पास आकार बैठने लगी। और उन्होंने गांधी आश्रम विनोवा आश्रम और बहुत से लोगों से मदद मांगी और देश के खादी भंडारों से बिस्तर और कपड़े भी मांगे। वह कहती हैं कि एक दिन उन बहनों ने उनसे कहा कि हम अपनी लड़कियों को इस नर्क में नहीं धकेलेंगी बल्कि उनकी शादिया करेंगे। इससे उनको और अधिक साहस मिला, कुछ महिलाओं ने उनका पूरा साथ दिया और इसी विश्वास के साथ 10 अप्रैल 1984 के रामनवमी के पर्व पर सत्यशोधन आश्रम की स्थापना की। तब से उस गाँव की एक भी बालिका देह व्यापार में नहीं गयी। उनका प्रयास सफल रहा आज लगभग 40 से जादा लोग सरकारी नौकरी में है जो देश का सम्मान बढ़ा रहे हैं। और 22 जनवरी 2011 को वह दुखत घड़ी भी आ गयी जब चम्पा बहन का बीमारी से निधन हो गया।[1]

समाजसुधार संपादित करें

चंपा ने बेड़िया समुदाय की महिलाओं के उत्थान के लिए कार्य किया। उनके बेड़िया समाज की महिलाओं के उत्थान संबंधी कार्यों के लिए उन्हें 2002-03 में छत्तीसगढ़ का इंदिरा गांधी समाज सेवा पुरस्कार[2] प्रदान किया गया था। स्वतंत्रता संग्राम के वातावरण में चम्पा बहिन का पालन पोषण हुआ, पिता जी लौहर में भगत सिंह के जूनियर थे और भगत सिंह की कमेटी की तमाम खबरे इधर उधर पहुँचने का काम किया करते थे। दादा जी की जिद से ब्रिटिश आर्मी मे भर्ती हुये। लेकिन सान 1945 में सुभाष चंद्र बोस की पराजय के बाद ब्रिटिश आर्मी को छोड़ दिया। किसी भी प्रकार की शासकीय सुविधा उपलब्ध नहीं हुयी। माता जी का यही कहना था कि फीस देकर पढ़ो फीस माफ कराने से हीन भावना आती है।

सत्य शोधन आश्रम संपादित करें

सत्य शोधन आश्रम मध्य प्रदेश के सागर जिले के पथरिया ग्राम में 1984 से बेड़िया समुदाय के बीच सतत सुधार का काम कर रहा है। बेड़िया जाति (समुदाय) को देह व्यापार से मुक्त कर उन्हें शिक्षा, रोजगार एवं आत्म सम्मान का जीवन देने की दिशा में आश्रम चुनौती पूर्ण भूमिका निभा रहा है।[3]

बेड़िया जाति (समुदाय) की पृष्ठभूमि संपादित करें

भारत विविध सांस्कृतिक परंपराओं का देश है। विभिन्न जाति, धर्म, भाषा और मत मतांतरों वाले इस उपद्वीप में कई प्राचीन प्रथाएँ समाज का अभिन्न हिस्सा है। किन्तु दुर्भगय से कुछ रूढ़ियाँ परंपरएन अपने विकृत रूप से समाज और राष्ट्र का ही नहीं बल्कि मानवता को भी कलुषित कर रही है। ऐसी ही एक प्रथा देह व्यापार है। यह मूलता मध्य प्रदेश की लगभग छत्तीस जातियों में सदियों से चली आ रही है। इसंकी एक मुख्य जाति बेड़िया के नाम से जानी जाती है। एक अनुमान के अनुसार पूरे भारत में इस जाती के लगभग पाँच लाख से भी अधिक लोग निवास करते है। यह मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, बिहार और बगला देश में पाये जाते हैं। इसी समुदाय की एक मशहूर महिला जिनका नाम गुलाब बाई है नौटंकी की मशहूर अदकारा मनी जाती है राष्ट्रीय पुरस्कार (पद्म श्री) से सम्मानित भी किया गया।

मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र में प्रसिद्ध लोक नृत्य 'राई' बेड़िया जाति के द्वारा ही किया जाता है। और राई के साथ ही देह व्यापार भी जुड़ा हुआ है इस जाति मे नियमानुसार घर की पूंजी (लड़की) से देह व्यापार करवाया जाता है। कम उम्र में ही (लगभग 13-14) में लड़की की 'राई' का प्रशिक्षण देकर 'बेडनी' बना दिया जाता है। नृत्य के लिए एक बार खड़ी हुयी लड़की जीवन में कभी व्याह नहीं कर सकती है। अर्थात उसके लिए लौटने का कोई और रास्ता नहीं होता है। बस वह किसी की रखैल (बिन व्यही औरत बन के) रह सकती है।

बेड़िया जाती (समुदाय) की अर्थव्यसथा परिवार की स्त्रियों द्वारा किए जाने वाले देह व्यापार और राई पर ही निर्भर होती है। सामान्य तौर पुरुष छोटे मोटे अपराध भी करते हैं इस जाति में शिक्षा का प्रतिशत काफी कम है। अशिक्षा के अंधार में दुबे इनलोगों को समाज की घोर उपेक्षा का शिकार भी होना पड़ता है। मूलता ग्रामीण परिवेश में रहने वाली यह जाति के लिए अलग-अलग कई गाँव बसये गए हैं। जिससे ये मुख्य धारा में नहीं आ सके। बेड़िया समाज के बच्चों की स्थिति अन्यबच्चों की तुलना में कई तरह से बदतर है ये बच्चे हिन भावना से ग्रसित रहते हैं। लड़के तो किशोर अवस्था तक अपराधी बन जाते हैं। या घर छोड़ कर चले जाते हैं किंतू लड़कियों को ग्रायरह बारह साल का होते होते ही बेडनी बना दिया जाता है।

इस जाति में लोक नृत्य 'राई' की परंपरा विकृत हैकर कई स्थानो पर अब सिर्फ देह व्यापार ही शुरू हो गया

अब निर्धन हो चुकी बेड़िया जाति स्वयं अपना शोषण करवाने को मजबूर है। जब पुराने समय से राजा महाराजा और स्थानिय जमींदार इन्हें आरक्षण देते थे। जमींदारी समाप्त होने पर यह खानाबदोश जाति जयन तहाँ बस गयी और रोजगार के लिए सिर्फ देह व्यापार पर ही आश्रित हो कर रह गयी। लेकिन इसकी निर्मिती में मुख्य समाज की भूमिका काफी अहम नजर आती है। आजादी के बाद इस समुदाय को अनुसूचित जाति की श्रेणी में तब्दील कर दिया गया जब यह आजादी से पहले जनजाति के तौर पर अपना जीवन बिताते थे। चूंकि इसके इनके संबंध सामन्ती लोगों के साथ थे, साथ ही यह किसी नहीं जाति के साथ अपने संबंध भी नहीं बनाते है। इसके न बढ़ने के यह भी कारण हो सकते है। लेकिन इस समुदाय को समझने के लिए आप को पूरे इतिहास और इसकी निर्मिती को भी देखना पड़ेगा तभी हम कह सकते हैं। जो इनका काम है वह सही है गलत है।

सेवा को समर्पित सत्य शोधन आश्रम संपादित करें

चम्पा बहन के प्रयासो से ही सत्य शोधन आश्रम का निर्माण 1984 को हुआ, और इनका यह सपना साकार हुआ और इसका विधिवत उद्घाटन 1987 में निर्मला देश पांडे के हाथों से हुआ। आठ एकड़ में फैले इस आश्रम में बेड़िया जाति के लगभग 100-200 बच्चों के रहने और खाने के इंतजाम किए गए। और आश्रम में ही इनके खाने और रहने की व्यवस्था भी की गयी। आश्रम परिसर में ही एक छोटा सा उद्योग भी है। जिसमे बच्चे श्रम दान करते हैं। आश्रम में लगभग 30 से 35 सदस्य है जो आश्रम की गतिविधियों का संचालन करते है। जैसे- बच्चों को पढ़ाना लिखाना, उनके लिए खाना बनाना और खिलाना, उनका बिस्तर लगाना आदि।

आश्रम के उद्देश्य संपादित करें

बेड़िया समाज में फैली देह व्यापार की कुप्रथा को जड़ से समाप्त करना। बेड़िया समाज में जागरूकता और शिक्षा का प्रसार करना। पुरुष वर्ग को अपराध से मुक्त कर उनके लिए रोजगार की व्यवस्था या प्रशिक्षण देना। बेड़िया समाज की महिलाओं में आत्म सम्मान जगाना और सिक्षा के प्रसार के साथ आत्म निर्भर बना। लोक नृत्य को बढ़ावा देना और उसमे नए प्रयोग करना, उसे देह व्यापार की छवि से निकाल कर गौरव पूर्ण सम्मान दिलान। बेड़िया के बच्चों को उच्च शिक्षा के साथ खेल कूद और व्यावसायिक प्रशिक्षण देना।

आश्रम की गतिविधियाँ संपादित करें

आध्यात्मिक एवं नैतिक धरातल पर आश्रम की संस्थापक अध्यक्ष सुश्री चम्पा बहन इस समाज में अनेक गति विधियों का संचालन करती रही है। वे देह व्यापार करने वाली महिलाओं को मानसिक र्रोप इसे छोड़ने के लिए से प्रेरित करती रही है। पंचमी के दिन अनेक जाति के लोगोंका विवाह करना इस सामूहिक विवाह में पूरा गाँव सामील होता है। आश्रम की ओर साक्षरता के लिए जागरूकता अभियायन भी चलता रहा है। क्षेत्र के बेड़िया समुदाय के अनेक बच्चे जो यह से बहुत अधिक दूरी पर रहते है वह आश्रम में रह कर पढ़यी करते हैं। तथा उनके लिए नियमित खेलकूद और अन्य सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन करना। और उच्च शिक्षा के लिए बच्चों को प्रोत्साहन देना। तथा उनके लिए उचित व्यवस्था करना।

आश्रम की उपलब्धियाँ संपादित करें

शत प्रतिशत बेड़िया गाँव पथरिया से देह व्यापार का उन्मुलन गाँव की सभी लड़कियों का व्याह होता है। अब गाँव पूर्ण साक्षर है। आश्रम के बच्चे शहरों के अनेक संस्थानों में अध्ययन कर रहे है 40 से अधिक बच्चे सरकारी नौकरियों में है। गाँव की कृषि योग्य भूमि का उपयोंग करना समाज के अन्य तबकों के दृष्टिकोण में परिवर्तन

आगामी योजनायें संपादित करें

देह व्यापार में लगी महिलाओं के लिए अस्पताल का निर्माण करना। लोक नृत्य को उचाई पर ले जाने के लिए एक नृत्य विद्यालय का निर्माण। सामूहिक विवाह एवं सांस्कृतिक आयोजनों के लिए सभागार बनवाना। हायर सेकेन्ड्री तक स्कूल एवं कुटीर उधोगों पर आधारित व्यावसायिक प्रशिक्षिण देने केलिए संस्था का विस्तार। वेध व्यापार छोड़ने वाली महिलाओं के लिए रोजगार देना आश्रम परिसर में एक पुस्तकालय का निर्माण।

सन्दर्भ संपादित करें

  1. "बहन चंपाबेन का अंतिम संस्कार". Daily Hindi news.[मृत कड़ियाँ]
  2. "इंदिरा गांधी समाज सेवा पुरस्कार". social justice.
  3. "आयोजन.. सत्य शोधन आश्रम की बहनों से मजदूर संघ ने बंधवाई राखी". bhaskar.

बाहरी कड़ियाँ संपादित करें

http://hindi.oneindia.in/news/2011/01/23/20110123021410-aid0122.html
http://www.probharat.com/hindi-news/articles/bedia-community-bediaan-champa-breaking-ben-s-death-3762.html[मृत कड़ियाँ]