चित्रांगदा
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महाभारत के अनुसार, चित्रांगदा, अर्जुन की एक पत्नी थीं।
जब अर्जुन इन्द्रप्रस्थ की ओर से मैत्री संदेश लिये मणिपुर (महाभारत) राजधानी पहुंचे तब वहाँ की राजकुमारी चित्रांगदा अर्जुन पर मोहित हो गई परन्तु अर्जुन के हृदय मे वो केवल एक राजकुमारी थी।[1] जब चित्रांगदा ने अर्जुन के सामने अपना प्रेम प्रस्ताव रखा तो अर्जुन ने उसे ठुकरा दिया जिससे राजकुमारी को अत्यंत पीड़ा हुई और आत्महत्या करने का निश्चय कर लिया। जब महाराज इस बात से अवगत हुये तो उन्होने अर्जुन के सामने यह शर्त रखी कि यदि वो मणिपुर की मित्रता चाहता है तो उसे चित्रांगदा से विवाह करना पड़ेगा अन्यथा वो उसी समय राज्य की सीमा से निकल जाए। श्री कृष्ण के परामर्श से अर्जुन ने यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया और चित्रांगदा से विवाह रचा लिया।
जब कुछ माह उपरांत अर्जुन नागलोक पहुंचे तो उनकी पत्नी नागकन्या उलूपी ने द्वेष भावना से चित्रांगदा के विरुद्ध अर्जुन को भड़का दिया। अर्जुन ने निराधार संदेह के कारणवश चित्रांगदा को उस समय त्याग दिया जब वो गर्भवती थी। तब चित्रांगदा ने ठान लिया की वो इस अपमान का बदला अर्जुन की पराजय से लेगी की उसे पराजय करने वाला और कोई नही बल्कि स्वयं उसका और अर्जुन का पुत्र है।
चित्रांगदा के वभ्रुवाहन नामक पुत्र हुआ। [2] वह उसे सारी युद्ध कलाओं मे निपुण कर अर्जुन को पराजित करने के काबिल बना दिया और उससे अर्जुन को पराजय करने का वचन और गुरूदक्षिणा माँग ली।
उधर जब महाभारत के युद्ध के उपरांत शान्ती अश्वमेघ यज्ञ का श्यामकर्ण अश्व मणिपुर की सीमा मे प्रवेश करता है तब वभ्रुवाहन भीम को मूर्च्छित कर कर्णपुत्र वृषकेतु का वध कर देता है और अन्त मे माँ गंगा के दिये हुये बाण से अर्जुन का भी वध कर देता है। जब चित्रांगदा घटनास्थल पर आती है तो वभ्रुवाहन को यह ज्ञात हो जाता है की अर्जुन ही उसके पिता है।
श्री कृष्ण के मार्गदर्शन से वभ्रुवाहन नागलोक से मणि लाकर अर्जुन को पुनर्जीवित करते है।
सन्दर्भ
संपादित करें- ↑ Tagore, Rabindranath (2015). Chitra - A Play in One Act. Read Books Ltd. पृ॰ 1. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9781473374263.
- ↑ Shastri Chitrao (1964), p. 213