चिदंबरा
चिदंबरा’ वह कविता संग्रह है जिसके लिए १९६८ में सुमित्रानंदन पंत को ज्ञानपीठ से सम्मानित किया गया। यह संग्रह उनकी काव्य-चेतना के द्वितीय उत्थान की परिचायिका है, उसमें ‘युगवाणी’ से लेकर ‘अतिमा’ तक की रचनाओं का संचयन है, जिसमें ‘युगवाणी, ‘ग्राम्या’, ‘स्वर्ण-किरण’, ‘स्वर्णधूलि’, ‘युगपथ’, ‘युगांतर’, ‘उत्तरा’, ‘रजतशिखर’, ‘शिल्पी’, ‘सौवर्ण और‘अतिमा’ की चुनी हुई कृतियों के साथ ‘वाणी’ की अंतिम रचना ‘आत्मिका’ भी सम्मिलित है। ‘पल्लविनी’ में, सन् 1918 से लेकर’ 1936 तक, उनके उन्नीस वर्षों को संजोया गया हैं और ‘चिदंबरा’ में, सन् 1937 से’ 1957 तक, प्रायः बीस वर्षों की विकास श्रेणी का विस्तार हैं।
चिदंबरा | |
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चिदंबरा का मुखपृष्ठ | |
लेखक | सुमित्रानंदन पंत |
देश | भारत |
भाषा | हिंदी |
विषय | गीत और कविताएँ |
प्रकाशक | राजकमल प्रकाशन, नयी दिल्ली |
प्रकाशन तिथि | 1958 (पहला संस्करण) |
पृष्ठ | 354 |
आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ | 81-267-0491-8 |
सुमित्रानंदन पंत की द्वितीय उत्थान की रचनाएँ, जिनमें युग की, भौतिक आध्यात्मिक दोनों चरणों की, प्रगति की चापें ध्वनित हैं, समय-समय पर विशेष रूप से, कटु आलोचनाओं एवं आक्षेपों की लक्ष्य रही हैं। ये आलोचनाएँ, प्रकारांतर से, उस युग के साहित्यिक मूल्यों तथा रूप-शिल्प संबंधी संघर्षों तथा द्वन्द्वों को स्पष्ट करती हैं, जो अपने आपमें एक मनोरंजक अध्ययन है।[1]
इस संग्रह के विषय में सुमित्रानंदन पंत ने स्वयं लिखा है -- "चिदंबरा की पृथु-आकृति में मेरी भौतिक, सामाजिक, मानसिक, आध्यात्मिक संचरणों से प्रेरित कृतियों को एक स्थान पर एकत्रित देखकर पाठकों को उनके भीतर व्याप्त एकता के सूत्रों को समझने में अधिक सहायता मिल सकेगी। इसमें मैंने अपनी सीमाओं के भीतर, अपने युग के बहिरंतर के जीवन तथा चैतन्य को, नवीन मानवता की कल्पना से मण्डित कर, वाणी देने का प्रयत्न किया है। मेरी दृष्टि में युगवाणी से लेकर वाणी तक मेरी काव्य-चेतना का एक ही संचरण है, जिसके भीतर भौतिक और आध्यात्मिक चरणों की सार्थकता, द्विपद मानव की प्रकृति के लिए सदैव ही अनिवार्य रूप से रहेगी। पाठक देखेंगे कि (इन रचनाओं में) मैंने भौतिक-आध्यात्मिक, दोनों दर्शनों से जीवनोपयोगी तत्वों को लेकर, जड़-चेतन सम्बन्धी एकांगी दृष्टिकोण का परित्याग कर, व्यापक सक्रिय सामंजस्य के धरातल पर, नवीन लोक जीवन के रूप में, भरे-पूरे मनुष्यत्व अथवा मानवता का निर्माण करने का प्रयत्न किया है, जो इस युग की सर्वोपरि आवश्यकता है?"[2]
सन्दर्भ
संपादित करें- ↑ "चिदंबरा". भारतीय साहित्य ऑनलाइन. मूल (पीएचपी) से 14 अक्तूबर 2007 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 27 नवंबर 2007.
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में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद) - ↑ "चिदंबरा". भारतीय साहित्य ऑनलाइन. मूल (पीएचपी) से 14 अक्तूबर 2007 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 27 नवंबर 2007.
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में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)