चिनाब रेल सेतु
चिनाब रेल सेतु एक इस्पात और कंक्रीट का मेहराब पुल या डाटदार पुल है जो भारत के जम्मू और कश्मीर के जम्मू मंडल के रियासी जिले में बक्कल और कौरी के बीच स्थित है तथा एक एकल-मार्ग रेलवे लाइन सेतु है।[4][5] यह पुल नदी तल से 359 मी॰ (1,178 फीट) की ऊंचाई पर चिनाब नदी पर विस्तृत है, जिससे यह दुनिया का सबसे ऊँचा रेल सेतु और दुनिया का सबसे ऊँचा मेहराब सेतु बन गया है।[6][7] यह सेतु संगलदान रेलवे स्टेशन और रियासी रेलवे स्टेशन के मध्य बनाया गया है तथा अगस्त 2022 में पूरी तरह से बन कर तैयार हो गया था।[8]
चिनाब रेल सेतु | |
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निर्देशांक | 33°9′3″N 74°52′59″E / 33.15083°N 74.88306°E |
आयुध सर्वेक्षण राष्ट्रीय ग्रिड | [1] |
वहन | भारत |
पार | चिनाब नदी बक्कल और कौड़ी के मध्य |
अन्य नाम | चिनाब पुल |
रखरखाव | उत्तर रेलवे |
लक्षण | |
डिज़ाइन | मेहराब सेतु |
सामग्री | इस्पात और कंकरीट |
कुल लम्बाई | 1,315 मी॰ (4,314 फीट)[1] |
ऊँचाई | नदी तल से 359 मी॰ (1,178 फीट)[1] |
दीर्घतम स्पैन | 467 मी॰ (1,532 फीट) |
स्पैन संख्या | 17 नग |
अधिकतम आयुकाल | 120 वर्ष |
इतिहास | |
डिज़ाइनर | DRDO, कोंकण रेलवे कॉर्पोरेशन लिमिटेड और एफकॉन्स इंफ्रास्ट्रक्चर |
निर्माणकर्ता | मैसर्स चिनाब ब्रिज प्रोजेक्ट अंडरटेकिंग [अल्ट्रा-एएफसीओएनएस-वीएसएल (जेवी)] |
खुला | दिसम्बर 2022[2] |
उद्घाटन | 13 अगस्त 2022[3] |
उधमपुर-श्रीनगर-बारामूला रेलवे लाइन (USBRL) | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
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मार्ग पर स्थित प्रमुख स्थलों को |
नवंबर 2017 में आधार भाग के निर्मित हो जाने की घोषणा के पश्चाचात मुख्य भाग का निर्माण प्रारम्भ कर दिया गया था ।[9] अप्रैल 2021 में इसका मेहराब बनाने का कार्य पूर्ण हुआ और समग्र पुल का निर्माण अगस्त 2022 में पूरा हुआ। इसके दिसंबर 2023 तक या जनवरी/फरवरी 2024 तक रेल यातायात के लिए खुलने की उम्मीद थी, लेकिन इसे जुलाई में पुनर्निर्धारित किया गया।[10][11]
20 फरवरी 2024 को भारत के प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी ने आधिकारिक तौर पर USBRL परियोजना (उधमपुर-श्रीनगर-बारामूला रेल लिंक) का शुभारंभ किया, जिसमें 48.1 किलोमीटर बनिहाल-संगलदान खंड शामिल है।[12]
20 जून 2024 को इस पुल पर प्रथम परीक्षण करते हुए मेमू ट्रेन को चलाया गया।[13]
तकनीकी आंकड़े
संपादित करेंपत्र सूचना कार्यालय, भारत सरकार द्वारा जारी पुल सम्बंधी कुछ प्रमुख तकनीकी आंकड़े इस प्रकार हैं :- [14]
- पुल की नदी तल से ऊंचाई: 359 मी॰ (1,178 फीट)
- फ्रांस के प्रतिष्ठित एफिल टॉवर से 35 मीटर ऊंचा
- पुल की लंबाईः 1,315 मी॰ (4,314 फीट)
- मेहराब की चौड़ाई: 467 मी॰ (1,532 फीट)[15]
- मेहराब की लंबाईः 480 मी॰ (1,570 फीट)[16]
- डिजाइन गति : 100 किलोमीटर प्रति घंटा
- कुल इस्पात निर्माण: 28660 मीट्रिक टन (लगभग)
- डिजाइन वायु गति: 266 किलोमीटर प्रति घंटा
- यह पुल एक खंभे/ सहारे को हटाने के बाद भी 30 किलोमीटर प्रति घंटे की गति पर परिचालित रहेगा
- ढांचे के विभिन्न भागों को जोड़ेने के लिए लगभग 584 किलोमीटर वेल्डिंग की गई है जो जम्मू तवी से दिल्ली की दूरी के बराबर है
इन सब विशेषताओं के कारण चिनाब रेल पुल है :
- दुनिया का सबसे ऊँचा मेहराब पुल
- दुनिया का सबसे ऊंचा रेलवे पुल
- दुनिया का 16वाँ सबसे ऊँचा पुल
- दुनिया का 11वाँ सबसे लंबा मेहराब पुल
- 5 फीट 6 इंच (676 मिमी) ब्रॉड गेज रेलवे नेटवर्क में सबसे लंबे विस्तार वाला पुल
परिचय और स्थलाकृति
संपादित करेंउत्तर रेलवे ने जम्मू के पास बसे उधमपुर और कश्मीर घाटी के उत्तर-पश्चिमी किनारे पर बसे बारामूला शहरों के मध्य भारतीय केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर में एक नई रेलवे लाइन के निर्माण की वृहद परियोजना शुरू की है। इस परियोजना को वर्ष 2004 में एक राष्ट्रीय परियोजना घोषित किया गया था।[17] इसका निर्देशन उत्तर रेलवे द्वारा किया जाता है।
इस परियोजना की असाधारण चुनौती बड़ी संख्या में सुरंगों (कुल 63 किलोमीटर लंबी) और पुलों (7.5 किलोमीटर) के निर्माण में है, जिन्हें हिमालय की कठिन भूगर्भीय स्थिति वाले अत्यंत ऊबड़-खाबड़ और पहाड़ी इलाकों में बनाया जाना है।[18] सबसे कठिन कार्य इस पुल का सलाल जलविद्युत बांध के पास चेनाब नदी की गहरी खाई को पार करना माना जाता है।[19]
यह पुल भूकंपीय क्षेत्र V में स्थित है जो रिक्टर पैमाने पर 8 की तीव्रता तक भूकंप, उच्च तीव्रता वाले विस्फोटों और 266 किलोमीटर प्रति घंटे की गति तक हवाओं का सामना कर सकता है।[20]
डिजाइन
संपादित करेंस्थानीय विशेषज्ञता, निर्माण सामग्री की उपलब्धता तथा लागत को ध्यान में रखते हुए चिनाब रेल पुल को एक बड़े एकल मेहराब स्टील पुल के रूप में निर्मित किया गया है जिसके दोनों ओर संपर्क मार्ग हैं। मेहराब दोहरी तिरछी ढाल वाले स्टील के त्रिकोणों से बना है। इसको आंतरिक रूप से कंकरीट भर के इस प्रकार बनाया गया है कि अधिक मजबूती के साथ-साथ सुंदरता भी बनी रहे।
पुल के निर्माण में बेयरिंग की संख्या को कम किया गया है जिससे कम रखरखाव और निरीक्षण के साथ अधिक कार्यक्षमता को प्राप्त किया जा सके। पुल के खंभे कंकरीट के हैं। मेहराब के पास के खंभों का निर्माण भारतीय मानक जैसे कि भारतीय रेलवे मानक (आईआरएस), भारतीय सड़क कांग्रेस (आईआरसी) और भारतीय मानक (आईएसएस) के अनुरूप करने पर अपर्याप्तता की आशंका को ध्यान में रखते हुए चिनाब पुल के बड़े विस्तार के लिए ब्रिटिश मानक (बी.एस.) और यूरो जैसे अंतर्राष्ट्रीय मानकों का भी साथ लिया गया है ताकि अपेक्षित परिणाम प्राप्त हो सकें।
उदाहरण के लिए, भारतीय रेलवे मानक (आई. आर. एस.) मुख्य रूप से 100 मीटर तक के विस्तार वाले पुलों के लिए है (हालांकि इनका 154 मीटर तक के उच्च विस्तार के लिए सफलतापूर्वक उपयोग किया गया है)। चिनाब रेल पुल का विस्तार इस सीमा से बहुत अधिक है, इसलिए एक सुरक्षित डिजाइन सुनिश्चित करने के लिए भारतीय राष्ट्रीय मानकों के पूरक के रूप में अंतर्राष्ट्रीय मानकों का सहारा लिया गया है। इसके अलावा परियोजना को सफल बनाने के लिए बहुमुखी और प्रासंगिक अनुभव वाले कई वैश्विक विशेषज्ञों को भी सम्मिलित किया गया है।
निर्माण के समय डिज़ाइन संबंधी निम्नलिखित विचारों को ध्यान में रखा गया है :-
- अंतर्राष्ट्रीय और भारतीय मानकों का पालन
- पवन सुरंग परीक्षणों के अनुसार पवन भार प्रभावों की गणना
- भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आई.आई.टी.) रुड़की द्वारा विकसित स्थल विशिष्ट भूकंपीय स्पेक्ट्रा
- लंबे और खोखले आयताकार आर.सी.सी. घाटों के लिए यूरो कोड 8 का प्रावधान
- यूआईसी-774-3R दिशानिर्देशों के अनुसार परिणामी बल गणना करके पुल पर पटरियों का विस्तार
- विस्फोट प्रतिरोधी डिजाइन का उपयोग
बड़े आकार का सेतु होने के कारण इसकी गुणवत्ता के पहलू पर अधिक जोर दिया गया है। मानक के अनुरूप ज्यादातर स्वदेशी सामग्री का उपयोग करने की योजना बनाई गई है जबकि डिजाइन के लिए अंतर्राष्ट्रीय और भारतीय मानकों का सामंजस्य स्थापित किया गया है।
निर्माण
संपादित करेंचिनाब रेल पुल को मूल रूप से दिसंबर 2009 में पूरा करने का इरादा था।[21] हालांकि, सितंबर 2008 में, पुल की स्थिरता और सुरक्षा पर आशंकाओं के कारण परियोजना को रोक दिया गया था।[22] पुनः 2010 में इसका निर्माण कार्य शुरू हुआ तथा 2015 तक पूरा करने का लक्ष्य रखा गया।[23][24]
डिजाइन और निर्माण का कार्य एफकॉन्स इन्फ्रास्ट्रक्चर को दिया गया था, जो आईआईएससी बैंगलोर की मदद से भारत के तीसरे सबसे बड़े निर्माण समूह शापूरजी पालोनजी समूह का एक हिस्सा है।[25] कोंकण रेलवे निगम द्वारा प्रमुख निर्माण निर्णय लिए गए। रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डी. आर. डी. ओ.) ने पुल के डिजाइन में मदद की, जिससे इसे विशेष स्टील का उपयोग करके ब्लास्ट-प्रूफ बनाया गया।[26]
पुल के निर्माण की योजना अपने आप में एक परियोजना है। नदी के दोनों ओर दो तोरण (लगभग 130 मीटर और 100 मीटर ऊँचे) बनाए गए थे, और दो सहायक स्व-चालित केबल क्रेन (प्रत्येक की क्षमता 20 टन) का उपयोग इन तोरणों पर अस्थायी सहायक रस्सियों को खींचने के लिए किया गया था। रस्सियों का उपयोग आंशिक रूप से तैयार मेहराब भागों को सहारा देने के लिए किया जाता था। मेहराब पूरा होने के बाद, ट्रस को जोड़ा गया तथा अंत में गर्डर का निर्माण क्षैतिज स्लाइडिंग प्रकार के मंच के रूप में किया गया।
परियोजना की स्थिति
संपादित करें- दिसम्बर 2003: परियोजना स्वीकृत।[27]
- फरवरी 2008: निर्माण के लिए अनुबंध किया गया।[28]
- सितम्बर 2008: सुरक्षा कारणों से परियोजना रुक गई।
- अगस्त 2010: निर्माण कार्य फिर से शुरू हुआ।[29]
- नवंबर 2017: मई तक पुल के मेहराब निर्माण कार्य के पूरा होने की उम्मीद थी पर नहीं हो पाया।[27]
- नवंबर 2018: सक्रिय निर्माण का पुनरारंभ किया गया।[30]
- दिसंबर 2018 के अंत तक परियोजना के पूरा होने की उम्मीद थी पर नहीं हो पाया।[31][32]
- अगस्त 2019: 80% निर्माण कार्य पूर्ण हुआ।[33]
- नवंबर 2019: निर्माण कार्य पूर्ण हुआ और मार्च 2021 में खुलने की उम्मीद थी।[34]
- जनवरी 2020: पुनः खुलने की तिथि को दिसंबर 2021 तक बढ़ाया गया।[35]
- अप्रैल 2021: पुल के मेहराब के दोनों सिरों पर कार्य पूर्ण हो गया और अब इसे 2022 में खोले जाने की उम्मीद थी।[36][2]
- जून 2022: निर्माण कार्य लगभग 90% पूर्ण हुआ।[37]
- अगस्त 2022: अंतिम बन्ध पर पुल का शेष काम पूरा हुआ और 13 अगस्त 2022 को इसका उद्घाटन किया गया था।[38][39]
- फरवरी 2023: पुल पर पटरी बिछाने का काम शुरू हुआ।[40][41][42]
- मार्च 2023: पटरियों को बिछाने का काम पूरा करके ट्रायल रन किया गया है।[43]
रखरखाव
संपादित करेंबड़े पुलों की नियमित पेंटिंग अथवा रंगाई एक बड़ा कार्य है इसलिए इस पुल की रंगाई में ऐसे पेंट का उपयोग किया गया है जो लगभग 15 वर्षों तक टिकाऊ है अर्थात अगले 15 वर्षों तक इसे पेंट करने की आवश्यकता नहीं है। अधिकांश अन्य भारतीय रेलवे पुलों में पेंटिंग की अवधि 5 से 7 वर्ष है।[44]
यह भी देखें
संपादित करेंसंदर्भ
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