चिवहे (अंग्रेजी: Chivhe Koli) महाराष्ट्र के कोलियों का गोत्र है। जो की खासकर ज़मीदार थे और मराठा साम्राज्य में किलेदार थे जो नाइक और सरनाईक की उपाधियों से सम्मानित थे। चिवहे गोत्र के कोलियों ने छत्रपति राजाराम राजे भोंसले के कहने पर मुग़लों से पुरंदर किला छीन लिया था। पुरंदर किले और सिंहगड किले पर चिवहे कोलियों की ही सरदारी रही है। ईसू चिवहे नाम के कोली को पुरंदर के सरनाईक की उपाधि से नवाजा गया और उसे 6030 बीघा जमीन भी दी गई थी।[1]

विद्रोह संपादित करें

1763 में पेशवा ने आभा पुरंदरे को सरनाईक बना दिया था जिसके कारण चिवहे कोलियों ने पेशवा के खिलाप विद्रोह कर दिया और पुरंदर एवं सिंहगढ़ किले पर कब्जा कर लिया था। कोलियों को आभा पुरंदरे पसंद नही आया तो आभा ने कोलियों को किलेदारी से हटा दिया और नए किलेदार तैनात कर दिए थे जिसके कारण कोलियों ने 7 मई 1764 में किलों पर आक्रमण कर दिया और अपने कब्जे में ले लिया। पांच दिन बाद रुद्रमल किले को भी कब्जे में ले लिया और मराठा साम्राज्य के प्रधान मंत्री पेशवा रघुनाथराव को चुनोती पेश की। कुछ दिन बाद पेशवा पुरंदर किले के अंदर देवता की पूजा करने के लिए किले में आया लेकिन पेशवा कोलियों में हथथे चढ़ गया। कोलियों ने पेशवा का सारा सामान और हथियार लूट लिए और उसको बन्दी बना लिया लेकिन कुछ समय बाद छोड़ दिया। इसके बाद कोलियों ने आस पास के छेत्र से कर बसूलना सुरु कर दिया। इसके बाद कोलियों के सरनाईक कोंडाजी चिवहे ने पेशवा के पास पत्र भेजा जिसमे लिखा हुआ था 'और जनाब क्या हाल चाल है,सरकार कैसी चल रही है मज़े में हो'। यह पत्र पढ़कर पेशवा कुछ ज्यादा ही अपमानित महसूस करने लगा और बौखलाकर मराठा सेना को आक्रमण का आदेश दे दिया लेकिन सेना कुछ भी नही कर पाई क्योंकि कोली खुद ही किलेदार थे और किलों की अछि तरह से किलेबन्दी कर रखी थी और पेशवा को नाकामी का मुहूं देखना पड़ा।[2][3] इश्के बाद अपमानित पेशवा ने चिवहे गोत्र (वंस) के कोलियों को बंदी बनाना सुरु कर दिया। जितने भी चिवहे गोत्र के कोली पेशवा के अधिकृत हिस्से में रह रहे थे सभी को बाघी घोसित कर दिया और बन्दी बनाना सुरु कर दिया। इसके बाद चिवहे कोलियों ने माधवराव के पास पत्र भेजा और पेशवा को समझाया गया इसके बाद कोलियों ने किलों को माधवराव को सौंप दिया और चिवहे कोलियों को फिर से किलेदारी सौंप दी गई।[1][4]

संदर्भ संपादित करें

  1. Guha, Sumit (2006-11-02). Environment and Ethnicity in India, 1200-1991 (अंग्रेज़ी में). Cambridge University Press. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9780521028707.
  2. Sardesai, Govind Sakharam (1934). Documents Illustrating Maratha Administration (मराठी में). Government Central Press.
  3. Selections from the Peshwa Daftar (मराठी में). Government Central Press. 1932.
  4. State), Bombay (India : (1885). Gazetteer of the Bombay Presidency ... (अंग्रेज़ी में). Government Central Press.सीएस1 रखरखाव: फालतू चिह्न (link)