छत्रपति शाहू जन्म आदित्य मिश्रा 18 अगस्त सन 2007 लखीमपुर खीरी सुबह 8:50 पर हुआ उनके बचपन का नाम था सन 1818 में छत्रपति प्रताप सिंह की मृत्यु के बाद 1818 ईस्वी में उनको छत्रपति की गति प्राप्त हुई 1818 से लेकर 1831 तक उन्होंने संपूर्ण भारत में करने का प्रयास किया 1831 ईसवी में उन्होंने मैसूर के खिलाफ एक अभियान चलाया जिसमें उनकी जीत हुई। उसके बाद उन्होंने अंग्रेजों को बक्सर में 1833 में पराजित किया जिसमें मोरोपंत पिंगले ने कमान संभाली हुई थी उन्होंने धनाजी जाधव को तिब्बत से मंगोलो को भगाने के लिए 1835 में भेजा परंतु तानाजी इस मिशन में सफल नहीं हुए और उनकी पराजित हुए पराजय की मंगोलिया में घुस के गानों को पराजित किया बाद में उन्होंने ऑक्सफोर्ड में पुत॔गालियों को पराजित किया। कमान संभाली हुई थी उसके बाद उन्होंने कश्मीर से तूकिश को भगाया। और 1843 में उन्होंने बर्मा में जीत हासिल की और म्यांमार की सेनाओं को पराजित किया जिसमें उन्होंने मोरोपंत पर विश्वास दिखाया 1843 में अहोम राज्य को पराजित करने के बाद उन्होंने अपनी सेना में बहुत बड़ी जीत दर्ज की। डर्बी में उन्होंने अंग्रेजों को 1843 में पराजित किया यह उनके जीवन की सफलता उसके बाद उन्होंने पेशवा पद शाहजी को दिया स्वयं अपनी शिक्षा पूरी करने के लिए सीतापुर की ओर चले गए। परंतु इस धरती पर 1845 में ही मंगोलो ने आक्रमण कर दिया बीजिंग पर और उन्होंने सदाशिवराव को पराजित करने के बाद वहां जीत हासिल की उसके बाद ध्यान में ही मंगोलो नेक और अभियान किया और धनाजी को पराजित किया। अहोम ने भी बढ़ती सकती को रोकने के लिए मणिपुर पर किया और नाना फडणवीस को पराजित किया मंगोल और अहोम ने एक साथ में स्टेशन स्थापित कर श्रीनगर और कोलकाता को भी जीत लिया अंग्रेजों ने भी इस फायदा उठाते हुए लंदन पर आक्रमण कर दिया और वहां रवि वर्मा को पराजित किया दो बार । निजाम ने 1847 जामखेड़ में अपने आप को स्वतंत्र घोषित कर दिया। उसके बाद मंगोल पानीपत तक पहुंच गए जहां पर उन्होंने और करीब चार लाख लोगों को कतल करने के बाद परंतु मंगोलो को हराने के लिए जानूजी को शाहजी ने भेजा परंतु पानीपत में जानूजी की पराजय हुई 1851 में और जानूजी उस युद्ध में मारा गया। 1852 मे मुगलों को दिल्ली से पहले रोकने के लिए अमृतराव को भेजा गया अमृतराव पानीपत में मंगोलो को हरा दिया। जिससे वह लोग कश्मीर की और वापस लौट गए सफाविद ने कमजोरी का फायदा उठाते हुए मराठा और प्रांतों को जीतने के लिए उन्होंने खास मित्र थे और मेवाड़ के राजा पराजित कर दिया। उमराजादू का मणिपुर पर हमला करा और शिवाजी राव को पराजित कर दिया। मांगोलो ने तराइन और तिब्बत पर एक और अभियान किया परंतु अमृतराव और टीम वर्क ने पराजित कर उनके अभियान को रोक दिया। 1858 ईस्वी में निजाम और त्रावणकोर ने मिलकर मराठों को हराने का प्रयास किया परंतु पेशवा शाहजी ने उन्हें आडवाणी में पराजित कर दिया इसके तहत वापस मराठा साम्राज्य मेल हार का सिलसिला खत्म होना शुरू हो गया। एक इतिहासकार मनुष्यी के अनुसार ""छत्रपति शानू 19वीं शताब्दी के सबसे महानतम सेनापतियों और राज्यों में से एक थे और एक पूरे विश्व में उनके नाम की तूती बोलती थी और उनके जैसा महान और रणनीतिक उन्होंने राज्यों को बढ़ाने का प्रयास किया। करो की दर को कम किया और उनके समय में गनना और चीनी का उत्पाद संपूर्ण विश्व में होता है उन्होंने अपनी जल सेना को भी काफी मजबूत किया और कई सारी तोपे खरीदी और कान्होजी आंग्रे को जल सेना की कमान दी और उनके समय में कई सारे तो पर और आज भी भारत ने बना कर दी थी भारत उस वक्त व्यापार की दृष्टि से संपूर्ण था 1845 में जब एक उत्तर भारत में अकाल आया तो उन्होंने अपनी जनता को 5 करोड़ रुपिया दान में दिए और जनता का कोई और लोगों को भुखमरी से बचा लिया गया"" अपने देश के झोंकों से बचा पाएंगे या नहीं इस बात को देखने वाली बात है हम सब चाहते हैं कि जल्द से जल्द सीतापुर से वापस आए और हमारे देश को बचाएं।

  • हिस्ट्री ऑफ द मराठा जेस गां ङफ