पानीपत
पानीपत (अँग्रेज़ी: Panipat), ऐतिहासिक रूप से पांडुप्रस्थ के रूप में जाना जाता है[1]
पानीपत (पांडुप्रस्थ) Panipat (Panduprastha) | |
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निर्देशांक: 29°23′N 76°58′E / 29.39°N 76.97°Eनिर्देशांक: 29°23′N 76°58′E / 29.39°N 76.97°E | |
देश | भारत |
राज्य | हरियाणा |
ज़िला | पानीपत ज़िला |
जनसंख्या (2011) | |
• कुल | 2,95,970 |
भाषा | |
• प्रचलित | हरियाणवी, हिन्दी |
समय मण्डल | IST (यूटीसी+5:30) |
आगे चलकर ब्रह्मव्रत के बाबोलगढ़ ग्राम के आदि गौड़ ब्राह्मणों के अत्रि गौत्र के बाबोलिया शासन के सदस्यों ने बुढ़ी यूमना के आँचल में 498 ई०(555 विक्रमी संवत) में पानप्रस्थ नामक, ग्राम को स्थापित किया।बाबा जलपत अत्रि के पुत्र पंडित नरोतम अत्रि, पानीपत के दो बड़े युद्ध खत्म होने के 20 वर्ष बाद, 1576 में पानीपत को परिवार के साथ छोड़कर, रोहतक के खोरड़ा गांव में परिवार के साथ बसे।इनकी की पत्नी दादी ब्रहम दे, 1628 ई० में सती हुई।
गगन ऋषि
बबरीक ऋषि
बिंद्रावन ऋषि
चंचल ऋषि
देव ऋषि
कायम ऋषि
पदार्थ ऋषि
राईमल ऋषि
पंडित धरणीधर अत्रि
पंडित हंशराज अत्रि
पंडित कैलासर अत्रि
पंडित ब्रह्मदेव अत्रि
पंडित अन्नदास अत्रि
पंडित मनोहर अत्रि
पंडित लाला अत्रि
पंडित कामश्रम अत्रि
पंडित जलपत अत्रि - पंडितजी का कुनबा, पानप्रस्थ ग्राम का आखरी मूल परिवार था।
भारत के हरियाणा राज्य के पानीपत ज़िले में स्थित एक ऐतिहासिक नगर है। यह ज़िले का मुख्यालय भी है। यहाँ सन् 1526, 1556 और 1761 में तीन महत्वपूर्ण युद्ध लड़े गए थे। पानीपत की भाषा हरियाणवी हैं। पानीपत राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र का एक हिस्सा हैं। [2][3][4]
विवरण
संपादित करेंपानीपत एक प्राचीन और ऐतिहासिक शहर है। पानीपत का प्राचीन नाम 'पाण्डवप्रस्थ' था। यह दिल्ली-चंडीगढ राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या-१ पर स्थित है। यह राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र, दिल्ली के अन्तर्गत आता है और दिल्ली से ९० किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। भारत के मध्य-युगीन इतिहास को एक नया मोड़ देने वाली तीन प्रमुख लड़ाईयां यहां लड़ी गयी थी। प्राचीन काल में पांडवों एवं कौरवों के बीच महाभारत का युद्ध इसी के पास कुरुक्षेत्र में हुआ था, अत: इसका धार्मिक महत्व भी बढ़ गया है। महाभारत युद्ध के समय में युधिष्ठिर ने दुर्योधन से जो पाँच स्थान माँगे थे उनमें से यह भी एक था। आधुनिक युग में यहाँ पर तीन इतिहासप्रसिद्ध युद्ध भी हुए हैं। प्रथम युद्ध में, सन् 1526 में बाबर ने भारत की तत्कालीन शाही सेना को हराया था। द्वितीय युद्ध में, सन् 1556 में अकबर ने उसी स्थल पर अफगान आदिलशाह के जनरल हेमू को परास्त किया था। तीसरे युद्ध में, सन् 1761 में, अहमदशाह दुर्रानी ने मराठों को हराया था। यहाँ अलाउद्दीन द्वारा बनवाया एक मकबरा भी है। इसे बुनकरों की नगरी भी कहा जाता है। नगर में पीतल के बरतन, छुरी, काँटे, चाकू बनाने तथा कपास ओटने का काम होता है। यहाँ शिक्षा एवं अस्पताल का भी उत्तम प्रबंध है।
शिक्षा
संपादित करें- श्री सोम सन्तोश एजुकेशनल सोसाइटी, पानीपत - गरीब बच्चो के लिये नि:शुल्क सिलाई केम्प की वय्व्स्था।
- एलीमेंट्री एंड टेक्निकल स्किल कौंसिल ऑफ़ इंडिया - गरीब बच्चो के लिये नि:शुल्क कंप्यूटर शिक्षा, नि:शुल्क ब्यूटी एंड वैलनेस एवं नि:शुल्क सिलाई केम्प की वय्व्स्था।
- गर्ग सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान, पानीपत
- दीक्षा एजुकेशनल एंड वेलफेयर सोसाइटी, पानीपत
- गरीब बच्चो के लिये नि:शुल्क कंप्यूटर शिक्षा एवं नि:शुल्क सिलाई केम्प की वय्व्स्था।
- युवा एकता पानीपत संस्था जो शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में दिन प्रतिदिन सामाजिक कार्य कर रही हैं ।
सामान्य महाविद्यालय
संपादित करेंअभियांत्रिकी संस्थान
संपादित करें- पानीपत इंस्टीट्यूट आफ़ टेक्सटाईल एंड इंजिनयरिंग, समालखा
- एशिया पैसिफ़िक इंस्टीट्यूट आफ़ इन्फ़ार्मेशन टेक्नालजी, पानीपत
- एन सी कालेज आफ़ इंजिनयरिंग, इसराना
स्कूल
संपादित करें- राजकीय आदर्श संस्कृति विद्यालय जी टी रोड
- एमएएसडी पब्लिक स्कूल
- बाल विकास विद्यालय, माडल टाऊन
- केन्द्रीय विद्यालय, एनएफ़एल - अब बंद
- डाक्टर एम के के आर्ये माडल स्कूल
- एस डी विद्या मंदिर, हूड्डा
- डी ए वी स्कूल, थर्मल
- सेंट मेरी स्कूल
- एस डी सीनीयर सेकेंडरी स्कूल
- आर्य सीनियर सेकेंडरी स्कूल
- आर्य बाल भारती पब्लिक स्कूल
- एस डी माडर्न सीनियर सेकेंडरी स्कूल
- एस डी बालिका विद्यालय
- राणा पब्लिक स्कूल (शिव नगर)
- प्रयाग इंटरनेशनल स्कूल
देवी मंदिर
संपादित करेंदेवी मंदिर पानीपत शहर, हरियाणा में स्थित है। देवी मंदिर देवी दुर्गा को समर्पित है। यह मंदिर पानीपत शहर का मुख्य मंदिर है तथा पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है। यह मंदिर एक तालाब के किनारे स्थित है जोकि अब सुख गया है और इस सुखे हुए तालाब में एक उपवन का निर्माण किया गया है जहां बच्चे व बुर्जग सुबह-शाम टहलने आते है। इस पार्क में नवरात्रों के दौरान रामलीला का आयोजन भी किया जाता है जोकि लगभग 100 वर्षों से किया जाता रहा है।
देवी के मंदिर में सभी देवी-देवताओं कि मूर्तियां है तथा मंदिर में एक यज्ञशाला भी है। मंदिर का पुनः निर्माण किया गया है जो कि बहुत ही सुन्दर तरीके से किया गया है, जो भारतीय वास्तुकला की एक सुन्दर छवि को दर्शाता है। इस मंदिर में भक्त दर्शन के लिए लगभग पुरे भारत से आते है। ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर का इतिहास लगभग 250 वर्ष पुराना है इस मंदिर का निर्माण 18वीं शाताब्दी में किया गया था। 18वीं शताब्दी के दौरान, मराठा इस क्षेत्र में सत्तारूढ़ थे, मराठा योद्धा सदाशिवराव भाऊ अपनी सेना के साथ युद्ध के लिए यहां आये थे। सदाशिवराव भाऊ अफगान से आया अहमदशाह अब्दाली जोकि आक्रमणकारी था, उसके खिलाफ युद्ध के लिए यहां लगभग दो महीने रूके थे। ऐसा माना जाता है कि सदाशिवराव को देवी की मूर्ति तालाब के किनारे मिली थी, तब सदाशिवराय ने यहां मंदिर बनाने का फैसला किया। ऐसा माना जाता है कि जब मंदिर का निर्माण किया जा रहा था तो देवी की मूर्ति को रात को एक स्थान से दूसरे स्थान पर रखा गया था परन्तु सुबह मूर्ति उसी स्थान मिली थी जहां से उसे पाया गया था, तब यह निर्णय लिया गया कि मंदिर उसी स्थान पर बनाया जाये जहां देवी की मूर्ति मिली है। देवी मंदिर में सभी त्यौहार मनाये जाते है विशेष कर दुर्गा पूजा व नवरात्र के त्यौहार पर विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है। इस दिन मंदिर को फूलो व रोशनी से सजाया जाता है। मंदिर का आध्यात्मिक वातावरण श्रद्धालुओं के दिल और दिमाग को शांति प्रदान करता है। पानीपत के ही गाँव सींक पाथरी मे एक और मंदिर है जिसको पाथरी वाली माता के नाम से जाना जाता है।
इन्हें भी देखें
संपादित करेंबाहरी कड़ियाँ
संपादित करेंसन्दर्भ
संपादित करें- ↑ "History". Panipat, Haryana. 20 October 2021. अभिगमन तिथि 31 October 2024.
- ↑ "General Knowledge Haryana: Geography, History, Culture, Polity and Economy of Haryana," Team ARSu, 2018
- ↑ "Haryana: Past and Present Archived 2017-09-29 at the वेबैक मशीन," Suresh K Sharma, Mittal Publications, 2006, ISBN 9788183240468
- ↑ "Haryana (India, the land and the people), Suchbir Singh and D.C. Verma, National Book Trust, 2001, ISBN 9788123734859