छात्री संघ (छात्राओं का संघ) एक भारतीय महिला छात्र संगठन था जिसने महिला क्रांतिकारियों की भर्ती की और उन्हें प्रशिक्षण दिया, अध्ययन मंडलियों का आयोजन किया और साइकिल चलाने, गाड़ी चलाने और सशस्त्र युद्ध का प्रशिक्षण दिया।[1] यह अखिल भारतीय छात्र संघ के लड़कियों के प्रभाग के रूप में कार्य करता था।[2] इसकी स्थापना १९२८ में हुई थी।

1928 में सुभाष चंद्र बोस की अध्यक्षता में अखिल बंगाल छात्र संघ की एक बैठक हुई। उसके बाद, कल्याणी दास ने अपने सहपाठियों और सुरमा मित्र, कमला दासगुप्त और अन्य लोगों की मदद से सितंबर 1928 में डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन के तत्वावधान में कलकत्ता विश्वविद्यालय में कलकत्ता की पहली महिला छात्र संघ की स्थापना की।[3] सुरमा मित्र अध्यक्ष और कल्याणी दास सचिव थे।[4] उनका सीधा संपर्क दीपाली संघ से था जो लीला रॉय के नेतृत्व में ढाका स्थित एक महिला क्रांतिकारी संगठन था।[5]

1930 के दशक की शुरुआत में छात्री संघ ने कलकत्ता में क्रांतिकारी गतिविधियों के आयोजक दिनेश मजूमदार के साथ घनिष्ठ संबंध विकसित किए। दिनेश मजूमदार युवा लड़कियों को शारीरिक व्यायाम और 'लाठी चलाने का प्रशिक्षण देते थे।[6] कम्युनिस्ट पार्टी सियालदह और अन्य जगहों पर शरणार्थी शिविरों में स्वयंसेवी के रूप में काम करने के लिए छात्री संघ को लगाती थी। इसमें भोजन परोसने जैसे राहत कार्य शामिल थे।[7] कुछ छात्राएँ छात्रावासों में रहतीं थीं जहाँ बम छिपाए जाते थे और क्रांतिकारियों को दिए जाते थे।

इस समूह के सदस्यों में कल्पना दत्त शामिल थीं, जिन्हें चटगांव विद्रोह में उनकी भूमिका के लिए गिरफ्तार किया गया था और आजीवन निर्वासित कर दिया गया था। 1932 में रेलवे ऑफिसर्स क्लब पर आक्रमण का नेतृत्व करने के बाद प्रीतिलता वाद्देदार की कार्रवाई में मृत्यु हो गई।[8] इस समूह में शांति और सुनीति भी शामिल थीं, जिन्होंने कोमिला के जिला मजिस्ट्रेट को गोली मार दी थी, जिसके लिये उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। बीना दास ने 1932 में एक कॉलेज के दीक्षांत समारोह में बंगाल के ब्रिटिश गवर्नर को गोली मार दी जिसके लिये उन्हें जेल में डाल दिया गया। कमला दास गुप्ता ने एक कूरियर के रूप में काम किया, और बम आदि भी पहुँचाया।[9][10]

छात्री संघ के कई सदस्य सुभाष चंद्र बोस से प्रेरित थे जो 1930 के दशक के प्रमुख समाजवादी नेताओं में से एक थे तथा जिन्होंने बाद में अंग्रेजों से लड़ने के लिए भारतीय राष्ट्रीय सेना का गठन किया था।उन्होंने रानी झांसी रेजिमेंट नामक महिला सेना में शामिल होकर महिलाओं से संघर्ष में शामिल होने का आह्वान किया था। इस आह्वान पर छात्री संघ की अनेक छात्राएँ इसमें भर्ती हुईं। रानी झांसी रेजिमेंट का नेतृत्व कैप्टन लक्ष्मी सहगल ने किया था, जो इसकी कप्तान थी।[8] इनमें से अधिकांश महिलाओं को आतंकवादी करार दिया गया था, और वे बाद में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की नीतियों का विरोध करते हुए भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी में शामिल हो गईं।[1]

  1. Morgan, Robin (2016-03-08). Sisterhood Is Global: The International Women's Movement Anthology (अंग्रेज़ी में). Open Road Media. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-1-5040-3324-4. सन्दर्भ त्रुटि: <ref> अमान्य टैग है; ":0" नाम कई बार विभिन्न सामग्रियों में परिभाषित हो चुका है
  2. Chakravartty, Gargi (2005). Coming Out of Partition: Refugee Women of Bengal (अंग्रेज़ी में). Bluejay Books. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-88575-45-9.
  3. Ghosh, Ratna (2006). Netaji Subhas Chandra Bose and Indian Freedom Struggle: Subhas Chandra Bose : his ideas and vision (अंग्रेज़ी में). Deep & Deep. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-7629-843-8.
  4. Biśvāsa, Kr̥shṇakali (1987). Svādhīnatā saṃgrāmera mañce Bhāratera nārī (Bengali में). Phārmā Keelaema.
  5. Singh, M. K. (2009). Encyclopaedia of Indian War of Independence, 1857-1947: Swarajists and women freedom fighters : Motilal Nehru, C. Das, Sri Aurobindo, Annie Besant, Sarojini Naidu, Vijya [i.e. Vijaya] L. Pandit and Allama Iqbal (अंग्रेज़ी में). Anmol Publications. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-261-3745-9.
  6. Manushi (अंग्रेज़ी में). Samta. 1991.
  7. Chakravartty, Gargi (2005). Coming Out of Partition: Refugee Women of Bengal (अंग्रेज़ी में). Bluejay Books. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-88575-45-9.
  8. Jayawardena, Kumari (2016-09-01). Feminism and Nationalism in the Third World (अंग्रेज़ी में). Verso Books. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-1-78478-430-0. सन्दर्भ त्रुटि: <ref> अमान्य टैग है; ":1" नाम कई बार विभिन्न सामग्रियों में परिभाषित हो चुका है
  9. Jayawardena, Kumari (1982). Feminism and Nationalism in the Third World in the 19th and Early 20th Centuries (अंग्रेज़ी में). Institute of Social Studies.
  10. Many Voices, One Chant: Black Feminist Perspectives (अंग्रेज़ी में). Feminist Review. 1984.