जगतसेठ
जगत सेठ नवाब सिराजुद्दौला के समय, भारतीय उपमहाद्वीप के बंगाल के मुर्शिदाबाद का एक समृद्ध व्यवसायी, बैंकिंग और ऋणदाता परिवार था।
'जगतसेठ', 'जगत्श्रेष्ठी' शब्द का अपभ्रंश है। राजस्थान के जोधपुर मंडल अधीन नागौर शहर में वणिकवंशी हीरानंद सा के सात पुत्र थे। सारे देश में इनकी हुंडी का व्यापार फैला था। इनके एक पुत्र माणिकचंद्र ने ढाका में एक कोठी बनाई तथा इन्हीं से इस वंश का नाम फैला। ये बंगाल के नवाब मुर्शिद कुली खाँ के कृपापात्र, मित्र एवं दाहिने हाथ थे।
सन् 1723 में सम्राट् मुहम्मदशाह ने धनकुबेर फतेहचंद को जगतसेठ की उपाधि से विभूषित किया तथा एक मरकत मणि भी प्रदान की जिस पर "जगत सेठ" अंकित था। आगे चलकर इन्होंने राजनीति में विशेष भाग लिया। ये नवाबों को बनाने और पदच्युत करने लगे। अलीवर्दी खाँ से मिल कर सरफराज खाँ की पराजय में भूमिका निभाई। सिराजुद्दौला को बंगाल से निकालने तथा मीरजाफर को हटाने में भी इनका गहरा हाथ था। अन्त में मीर कासिम ने इनके पुत्रों को कैद करवा लिया और बाद में उनका वध करा दिया। तदुपरान्त इनके वंशजों को बड़ी मुसीबत के दिन देखने पड़े।