शरीर के किसी एक या अनेक अंगों का जलना एक प्रकार की दुर्घटना है जो उष्मा, विद्युत, रसायन, प्रकाश, विकिरण या घर्षण .वहाँ भी है जलने का रोग [3] . आदि से हो सकती है। बहुत ठण्डी चीजों के सम्पर्क में आने से भी शरीर "जल" सकता है जिसे "शीत-जलन" (कोल्ड बर्न) कहते हैं। विश्व में प्रति वर्ष सहस्त्रों व्यक्ति दाह से मरते हैं और इससे बहुत अधिक संख्या में अपंग होकर समाज के भार बन जाते हैं। दाह रोग प्राय: असाध्य नहीं होता। [4] .

जलना
द्वितीय-डिग्री तक जला हाथ
विशेषज्ञता क्षेत्रत्वचाविज्ञान सघन देख-भाल चिकित्सा, प्लास्टिक सर्जरी[1]
लक्षणपहला डिग्री: छाला/फफोला रहित लाल
दूसरा डिग्री: फफोला और दर्द
तीसरी डिग्री: त्वचा का कठोर हो जाना और दर्द नहीं होना
चौथा डिग्री: हड्डियों और कंडरा को हानि[2]
जटिलतासंक्रमण
अवधिदिनों से सप्ताह तक
प्रकारपहला डिग्री, दूसरा डिग्री, तीसरा डिग्री, चौथा डिग्री
कारणऊष्मा, ठंड, विद्युत, रसायन, घर्षण, विकिरण
संकटखाना पकाते समय लगी आग, असुरक्षित चूल्हे, धुम्रपान, शराबीपन, खतरनाक कार्यक्षेत्र
चिकित्साजले हुये की तीव्रता/स्थिति पर निर्भर
औषधिदर्द की दवाई, अंतःशिरा तरल, टिटनस टॉक्सॉइड
आवृत्ति6.7 करोड़ (2015)
मृत्यु संख्या176,000 (2015)

प्रकार संपादित करें

शुष्क उष्मा से ऊतकविनाश, दाह (burn) और नम ऊष्मा से उत्पन्न छाला (cold burn) कहलाता है। गहराई और व्यापकता की दृष्टि से दाह विभिन्न प्रकार के होते हैं। व्यापकता के अनुसार दाह के वर्गीकरण के लिए प्रभावित क्षेत्र को समग्र देहपृष्ठ के प्रतिशत में निरूपित करते हैं। आपाती कार्य में लिए "नौ का नियम" सुविधाजनक है। तदनुसार "सिर, गर्दन" और प्रत्येक ऊपरी सिरा समग्र देहपृष्ठ का नौ प्रतिशत, सामने और पीछे का धड़ तथा प्रत्येक निचला सिरा 18 प्रतिशत और मूलाधार एक प्रतिशत होता है। एक अन्य नियमानुसार रोगी की फैली हुई हथेली समग्र शरीरपृष्ठ का एक प्रतिशत होती है। [5] .

गहराई के आधार पर दाह दो प्रकार के होते हैं, उत्तल और गहरा। उत्तल दाह में त्वचा प्रभावित तो होती है, किंतु विनष्ट नहीं होती। कुछ उपकला कोशिकाएँ (Epithrehal cells) बची रहती हैं, जिनका स्वत: पुनर्जनन संभव है। गहरे दाह में दग्ध क्षेत्र के किसी स्थल के सभी सवयंपुनरुत्पादक उपकला कोशिकाओं का विनाश हो जाता है, अत: पुनर्जनन संभव नहीं होता। गहरे दाह के उपशमन के लिये दाहाक्रांत और मृत त्वचा का अपच्छेदन के पश्चात् त्वचा कलमन (skin grafting) द्वारा उस क्षेत्र का पुन: पृष्ठनिर्माण करते हैं।

दाह में दाहव्यापकता का निर्धारण भी बड़े महत्व का है, क्योंकि दाहोत्तर आघात (post burns shock) शरीरपृष्ठ के दाहाक्रांत क्षेत्र के अनुपात में उत्पन्न होता है। रुधिरवाहिकाएँ विस्तारित होती हैं, उनकी दीवारों की प्रवेश्यता बढ़ जाती है और अतिरिक्त रक्तधर ऊतकों (extra vascular tissues) में प्लाविका (plasma) और विद्युद्विश्लेष्य (electrolytes) निकलते हैं। प्लाविका की हानि से संचारी रुधिर आयतन का ह्रास होता है, जिसके परिणामस्वरूप मर्मं अंगों में ऊतक रक्तआक्सीक्षीणता उत्पन्न हो जाती है और यदि शीघ्र अवमुक्त न किया जाए तो रोगी की मृत्यु तक हो सकती है। पीलापन, बेचैनी और प्यास 'आरंभी, असामान्य, रक्ताल्पता आघात' (incipient oligaemic shock) के लक्षण हैं और इनमें से किसी एक का प्रकट होना अविलंब तरल प्रयोग की आवश्यकता का संकेत करता है।

प्रकार[6] प्रभावित स्तर स्वरूप (Appearance) गठन (Texture) संवेदन (Sensation) ठीक होने में लगने वाला समय पूर्वानुमान और जटिलताएँ उदाहरण
सतही (प्रथम डिग्री) बाह्यत्वचा[7] लाल किन्तु बिना फफोला के[6] शुष्क पीड़ादायक[6] 5–10 days[6][8] ठीक हो जाता है।[6]  
Superficial partial thickness (द्वितीय डिग्री) Extends into superficial (papillary) चर्म (dermis)[6] लाली लिये हुए फफोला[6] Blanches with pressure.[6] नम (Moist)[6] बहुत पीड़ादायक[6] 2–3 weeks[6][9] Local infection (cellulitis) but no scarring typically[9]

 

Deep partial thickness (द्वितीय डिग्री) Extends into deep (reticular) dermis[6] पीला या सफेद. Less blanching. May be blistering.[6] अधिकांशतः शुष्क[9] Pressure and discomfort[9] 3–8 weeks[6] Scarring, contractures (may require excision and skin grafting)[9]  
तृतीय डिग्री Extends through entire dermis[6] Stiff and सफेद/भूरा.[6] No blanching.[9] चर्ममय (Leathery)[6] दर्दरहित[6] Prolonged (months) and unfinished/incomplete[6] Scarring, contractures, amputation (early excision recommended)[9]  
चतुर्थ डिग्री Extends through entire skin, and into underlying fat, muscle and bone[6] काला; charred with eschar शुष्क दर्द रहित ठीक नहीं होता ; Requires excision[6] Amputation, significant functional impairment and, in some cases, death.[6]  

उपचार संपादित करें

छाला और दाह के उपचार के मुख्य उद्देश्य तीन होते हैं :

(1) पृष्ठीय दाह में तरल, लवणद्रव और प्लाविका का समान भागों में प्रयोग करके तथा गहरे दाह में प्लाविका, रुधिर और लवणद्रव के प्रयोग से रोगी के प्राणों की रक्षा करना,

(2) रोगी को उपर्युंक्त प्रतिजीवाणु पदार्थ देकर और उसे धुले या विसंक्रमित चादर में अवगुंठित करके संक्रमण रोकना और

(3) समय रहते संक्रमण निरोध और त्वचाकलयन द्वारा पुन:पृष्ठनिर्माण करके अपकुंचन (contractures) और कीलायड जैसी जटिलताओं को न उत्पन्न होने देना।

पृष्ठीय परिचर्या का उद्देश्य शुष्क शीत पृष्ठ प्राप्त करके सूक्ष्माणुओं को उष्ण नम पर्यावरण से रहित करना है, ताकि उनका प्रचुरोद्भव हो सके। इसके लिये दाहाक्रांत क्षेत्र को खुला रखते हैं और ऐसा करना यदि अभीष्ट न हो तो उसे अवशोषी ड्रेसिंग से आवृत्त रखते हैं।

दस प्रतिशत से अधिक के सभी गहरे रासायनिक और पृष्ठीय दाहों में यदि शल्य आघात की संभावना हो, तो रोगी को अविलंब अस्पताल ले जाना चाहिए।

पृष्ठीय दाह में आघात के उपचार और रोगी के जीवन की रक्षा के पश्चात् संक्रमणनिरोध की समस्या तत्काल आती है। संक्रमणनिरोध होने पर अपने आप 14 से लेकर 21 दिनों तक में घाव भर जाता है। किंतु व्यापक रीति से इसका प्रयोग नहीं होता, क्योंकि गहरे दाह में यदि दाहाक्रांत त्वचा को निकाला न जाए तो घाव का भरना संभव नहीं। है। किसी दवा या व्ययसाध्य प्रतिजीवाणुओं के उपयोग से यह होने का नहीं।

बाहरी कड़ियाँ संपादित करें

सन्दर्भ संपादित करें

  1. "Burns - British Association of Plastic Reconstructive and Aesthetic Surgeons". BAPRAS.
  2. (वीर गडरिया) पाल बघेल धनगर
  3. "Ожоги" (रूसी में). ИНВИТРО-Объединенные коммуникации. मूल से 19 फ़रवरी 2024 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 19 फ़रवरी 2024.
  4. "जलना". Merck & Co, Inc. मूल से 19 फ़रवरी 2024 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 19 फ़रवरी 2024.
  5. "Timeline: What If You Were Burned Alive". vidData Comparisons. 2023. मूल से 2024-02-13 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2024. Invalid |url-status=suggested (मदद); |access-date= में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)
  6. सन्दर्भ त्रुटि: <ref> का गलत प्रयोग; Tint2010 नाम के संदर्भ में जानकारी नहीं है।
  7. सन्दर्भ त्रुटि: <ref> का गलत प्रयोग; EMP2009 नाम के संदर्भ में जानकारी नहीं है।
  8. सन्दर्भ त्रुटि: <ref> का गलत प्रयोग; AFP2012 नाम के संदर्भ में जानकारी नहीं है।
  9. Herndon D, संपा॰ (2012). "Chapter 10: Evaluation of the burn wound: management decisions". Total burn care (4th संस्करण). Edinburgh: Saunders. पृ॰ 127. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-1-4377-2786-9.