जहाजवाली नदी (राजस्थान)
इस लेख में सत्यापन हेतु अतिरिक्त संदर्भ अथवा स्रोतों की आवश्यकता है। कृपया विश्वसनीय स्रोत जोड़कर इस लेख में सुधार करें। स्रोतहीन सामग्री को चुनौती दी जा सकती है और हटाया भी जा सकता है। (सितंबर 2020) स्रोत खोजें: "जहाजवाली नदी" राजस्थान – समाचार · अखबार पुरालेख · किताबें · विद्वान · जेस्टोर (JSTOR) |
परिचय
संपादित करेंजहाजवाली नदी के जलागम में जहाज नामक स्थान की खास महत्ता है। इस स्थान पर एक अखण्ड झरना है। यह झरना अमृतधारा की भांति है। स्वच्छ और निर्मल धारा का स्रोत! यहाँ पर हनुमान जी का एक मन्दिर है।
नामकरण
संपादित करेंकहते हैं कि पौराणिक काल में यहाँ जाजलि ऋषि ने तपस्या की थी। जाजलि ऋषि बड़े विद्वान और वेद-वेदांगों के ज्ञाता तो थे ही, वह आयुर्वेद के सोलह प्रमुख विशेषज्ञों में से भी एक थे। धन्वन्तरिर्दिवोदासः काशिराजोऽश्विनी सुतौ। नकुलः सहदेवार्की च्यवनों जनको बुधः॥जाबलो जाजलिः पैलः करभोऽगस्त्य एवं चऽएते वेदा वेदज्ञाः षोडश व्याधिनाशकाः।। अर्थात् धन्वन्तरि, दिवोदास, काशिराज, दोनों अश्विनी कुमार, नकुल, सहदेव, सूर्यपुत्र यम, च्यवन, जनक, बुध, जाबाल, जाजलि, पैल, करभ और अगस्त्य-ये सोलह विद्वान् वेद-वेदांगों के ज्ञाता तथा रोगों के नाशक वैद्य हैं। [1] जाजलि मुनि ने आयुर्वेद संहिता के अन्तर्गत स्वतंत्र रूप से वेदाङ्ग सार तंत्र की रचना भी की थी। बहुत संभव है कि इस तंत्र की रचना वर्तमान 'जहाज' नामक स्थान पर ही की गई हो। यह विस्तृत जंगल आयुर्वेदिक औषधियों के लिए सदैव प्रसिद्ध रहा है। जाजलि ऋषि के नाम पर ही इस स्थान का नाम अपभ्रंश होते-होते। जाजलि से जाजली, जाजल, जाज, जहाज और अंत में जहाज हो गया। जहाज के नामकरण की यही संदर्भ कथा मौजूद है। थाई का डंका- जहाज के वर्तमान कुण्ड व हनुमान जी के मंदिर के पश्चिमोत्तर में। ऊपर दो थाँई हैं। पहली बड़ी थाँई और दूसरी छोटी थाँई के नाम से जानी जाती है।
जहाजवाली नदी उद्मम
संपादित करेंजहाजवाली नदी का जलागम क्षेत्र 89 किलोमीटर है। [2]
नदी के उद्रम मंगलांसर बाँध तक इसकी घुमावदार कुल लम्बाई 20 किलोमीटर है। इसके जलागम क्षेत्र में तरुण[3] भारत संघ द्वारा जन-सहभागिता से कुल 126 जल-संरचनाओं का निर्माण हुआ है। विश्व भू-मानचित्र में जहाजबाली नदी जलागम क्षेत्र 27° 11' 39" उत्तरी अक्षाश से 27° 18' 21" उत्तरी अक्षांश तथा 76° 24' 15" पूर्वी देशान्तर से 76° 31' 20" पूर्वी देशान्तर के बीच स्थित है। [4]
इतिहास
संपादित करेंजहाजवाली नदी के जलागम क्षेत्र के 3 गांव सरिस्का की मुख्य क्षेत्र में पढ़ते हैं। 1978 में यहां सरिस्का [5] योजना की शुरुआत के साथ ही पूरे सरिस्का के 866 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को बफर और कोर दो क्षेत्रों में बाट दिया गया। [6]
498 वर्ग किलोमीटर कोर में आया वह 368 वर्ग किलोमीटर बफर क्षेत्र में आया कोर घोषित होने वाला इनका रिजर्व फॉरेस्ट रहा है। कोर चित्र तीन भागों में बांटा - पहला मुख्य क्षेत्र दूसरा और तीसरा कोर सेक्टर मुख्य कोर्स इत्र की राष्ट्रीय अभ्यारण में तब्दील है इसमें करीब 10 गांव गवाड़े हैं जिनमें जहाज वाली नदी के जलागम क्षेत्र में उक्त 3 गांव ही हैं। जहाजवाली नदी गुवाड़ा, देवरी के जंगलों से शुरू होकर जहाज के पास होते हुए नाडु मुरलीपुरा गेवर गांव से गुजरती है। और राज डोली के पास से निकल कर पहला के मंगला सर बांध में होती है। इसकी दूसरी धारा सोहना के जंगल से शुरू होकर नाडु के पास मुख्यधारा में मिलती है। तीसरी धारा गुर्जरों की लोसल से शुरू होती है और केला का बास होते हुए घर के पास जाकर मुख्यधारा में मिल जाती है। इस नदी की लंबाई लगभग 30 किलोमीटर है! जहाज वाली नदी के जलागम क्षेत्र में तरुण भारत संघ ने भी अभी तक कुल तहसी बांध और जोहड़ बनाएं। इन बांधों के पूजन के कारण ही अब यह नदी पूरे साल भर बहने लगी है इस नदी की इतिहास के बारे में कहा जाता है। 20 साल पहले तक इन जंगलों में जहाज वाला झरना बहता था जो कि पूरे साल बहता था लेकिन जंगलों की अंधाधुंध कटाई और पानी की कमी होने के कारण यह धरना 1985 में पूरी तरह सूख गया। इस झरने के किनारे कहते हैं मोनी बाबा का आश्रम था आश्रम में लोग आते-जाते रहते थे लेकिन पानी का संकट गहराया तो लोगों ने इधर से गुजरना छोड़ दिया। जब लोगों का आना बंद हो गया तो आश्रम वीराना सा हो गया तो मोनी बाबा से रहा नहीं गया और वह उपाय तलाशने लगे उस समय ही तरुण भारत संघ का काम शुरू हो गया था। बाबा ने संघ के बारे में सुनकर अपने शिष्यों को संघ के कार्यकर्ताओं के पास भेजा मोनी बाबा के शिष्यों ने कार्यकर्ताओं के साथ जहाज वाली नदी पर बांध बनाने की स्थिति में चर्चा शुरू की। कुछ ही दिनों बाद जहाज वाली नदी पर आश्रम के पास बाद बनकर तैयार हो गया इस भान का नाम जहाजवाला बांध रखा गया। इस बात को बनाने हेतु तरुण भारत संघ को कड़ा संघर्ष करना पड़ा। यह संघ द्वारा बनाए गए दो में से एक बड़ा बांध है इसको बनाने के लोगों को व्यापक सहयोग मिला। जहाजवाला बांध शुरू हुआ था तो जंगलात विभाग वाले ने बांध डालना शुरू किया। तरुण भारत संघ के नाम से राशि भी नहीं ले सकते थे उन लोगों ने तरुण भारत संघ के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की प्रक्रिया शुरू कर दी है। इस बांध के बनने से जहाजवाली नदी बहने लगी है।
सरिस्का वन क्षेत्र
संपादित करेंसरिस्का वन क्षेत्र में अति महत्त्व की वनस्पति व जीव जन्तु प्रजातियों मिलती हैं! पेड़-पौधों की लगभग 1200 प्रजातियों यहाँ हैं। और जन्तुओं की पाँच सौ से अधिक प्रजातियां यहां हो सकती हैं, ऐसा अनुमान है। पेड़-पौधों-झाड़ियों बेलों आदि की सैकड़ों जातियाँ यहां पर मिलती हैं। धोख, सालार, खेर, तेन्दु,अर्जुन, ताक, बेल, बड़, पीपल, गूलर, जामुन, आंवला, बबूल जैसी वनस्पति की कई प्रजातियाँ यहाँ ज्यादा मात्रा में पायी जाती हैं। इस क्षेत्र में रहने वाले लोग विशेषतया मीणा आदिवासी पेड़ों को अपनी धराड़ी (गोत्र का पवित्र पेड़) मानकर पूजते हैं। गुर्जर भी यहाँ के पेड़ों को अपनी उपजाति के कुल वृक्षों के रूप में पूजा करते हैं तथा जंगली जीवों को भी अपने जैसा ही भगवान का बनाया हुआ मानकर उसकी सुरक्षा करते हैं। वन्य प्राणियों में भी यहाँ प्रचुर मात्रा में विविधता देखने को मिलती है। स्तनधारी वर्ग की लगभग 30 प्रजातियों तथा पक्षी वर्ग की 200 जातियों सामान्य रूप से दृष्टिगोचर होती हैं । सरीसूप वर्ग की भी कुछ जातियों जैसे साँप, गोह, व छिपकली आदि पायी जाती हैं। कीट-पतंगे बहुत हैं। उत्तर अरावली पहाड़ियों के पठारी क्षेत्र में स्थित सरका वन क्षेत्र का अपना एक अलग ही पारिस्थितिक और जैविक महत्त्व है। यहां पर पायी जाने वाली वनस्पति और प्राणियों की विविधता के कारण ही बहुत पहले से समय समय पर अलग-अलग नामों से इसका संरक्षित क्षेत्र घोषित हो जाना इसी तथ्य की ओर इंगित करता है। यहां पर तोता परी नाम की बकरी भी पाई जाती है!
देवरी अलवर से 30 किमी पश्चिम-दक्षिण में तथा कस्बा राजगढ़ से 17 किमी पश्चिम में स्थित है। यहां साल में वर्षा औसतन 600 मिमी होती है । गर्मी में इस इलाके का तापमान 45° से. से 47° से. तक चला जाता है और सर्दियों में 0° से. तक उतर जाता है वर्षा के दिनों में हरी-भरी घाटी गर्मी में रूखी-सूखी लगने लगती है। यहां गुर्जर, मीणा तथा कई बलाई परिवार बसे हुए हैं। यहां कुल 375 हेक्टेयर भूमि है। इसमें कृषि योग्य 75 हेक्टेयर भूमि है जो 1986 के समय पूरी असिंचित और एक फसल की थी। पहले लोग पशुपालन से अपनी जीविका चलाते थे। लोग दूध नहीं बेचते थे। धी बेचकर जीविका चलाते थे।
सन्दर्भ
संपादित करें- ↑ ब्रह्मवैवर्त. ब्रह्मवैवर्त पुराण.
- ↑ प्रो० मोहन, श्रोत्रिय. जी उठी जहाजवाली नदी. परमार्थ समाजसेवी संस्थान ,झाँसी ,उत्तर प्रदेश.
- ↑ [tarunbharatsangh.in "Tarun Bharat Sangh"] जाँचें
|url=
मान (मदद). - ↑ डा०नीलेश, हेडा. आओ नदी को समझे. परमार्थ समाजसेवी संस्थान ,झाँसी ,उत्तर प्रदेश.
- ↑ डा० राजेन्द्र, सिंह. सरिस्का वैभव. परमार्थ समाजसेवी संस्थान, झाँसी, उत्तर प्रदेश.
- ↑ जगदीश, गुर्जर. जहाज तुम बहती रहना. परमार्थ समाजसेवी संस्थान ,झाँसी ,उत्तर प्रदेश.