बबूल
बबूल या कीकर (वानस्पतिक नाम : आकास्या नीलोतिका) अकैसिया प्रजाति का एक वृक्ष है। यह अफ्रीका महाद्वीप एवं भारतीय उपमहाद्वीप का मूल वृक्ष है।
आकास्या नीलोतीका | |
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वैज्ञानिक वर्गीकरण | |
जगत: | पादप |
संघ: | माग्नोल्योफ़्इउता |
वर्ग: | माग्नोल्योप्सीदा |
गण: | फ़ाबालेस् |
कुल: | फ़ाबासेऐ |
उपकुल: | मीमोसोईदेऐ |
वंश समूह: | आकाक्येऐ |
वंश: | आकास्या |
जाति: | आ. नीलोतीका |
द्विपद नाम | |
आकास्या नीलोतीका (L.) विल्ड. एक्स डेलिले | |
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बबूल का प्राप्ति क्षेत्र | |
पर्यायवाची | |
बबुल का पेड़ जिसे स्थानीय भाषा में देशी कीकर कहा जाता है। पुरानी मान्यताओं के अनुसार इस पेड़ में भगवान विष्णु का निवास माना जाता है।प्राचीन समय में इस पेड की पुजा की जाती थी । इस पेड़ को काटना महापाप माना जाता है। जिस जगह यह पेड होता है वह जगह अत्यंत शुभ मानी जाती है। ऐसा माना जाता है कि जिस घर में यह पेड़ पाया जाता है कि वह घर हमेशा धन धान्य से परिपूर्ण रहता है। यह पेड़ एक मात्र पश्चिमी राजस्थान में पाया जाता है इस पेड़ की गिनती दुर्लभ क्षेणी में होती है ।बबूल का गोद औषधीय गुणों से भरपूर होता है तथा अनेक रोगों के उपचार में काम आता है बबूल की हरी पतली टहनियां दातून के काम आती हैं। बबूल का गोद उतम कोटि का होता है जो औषधीय गुणों से भरपूर होता है तथा सेकडो रोगों के उपचार में काम आता है ।बबूल की दातुन दांतों को स्वच्छ और स्वस्थ रखती है। बबूल की लकड़ी का कोयला भी अच्छा होता है। हमारे यहां दो तरह के बबूल अधिकतर पाए और उगाये जाते हैं। एक देशी बबूल जो देर से होता है और दूसरा मासकीट नामक बबूल. बबूल लगा कर पानी के कटाव को रोका जा सकता है। जब रेगिस्तान अच्छी भूमि की ओर फैलने लगता है, तब बबूल के जगंल लगा कर रेगिस्तान के इस आक्रमण को रोका जा सकता है। [2]
होडल, फरीदाबाद में बबूल वृक्ष
सन्दर्भसंपादित करें
- ↑ ILDIS LegumeWeb
- ↑ > [http://www.cfilt.iitb.ac.in/~corpus/hindi/find.php?word=%E0%A4%AC%E0%A4%AC%E0%A5%82%E0%A4%B2&submit=Search&limit=20&start=0[मृत कड़ियाँ] बबूल के प्रयोग
विकिस्पीशीज़ पर सूचना मिलेगी, Acacia nilotica के विषय में |