ज़ देवनागरी लिपि का एक वर्ण है। हिन्दी-उर्दू के कई शब्दों में इसका प्रयोग होता है, जैसे की ज़रुरत, ज़माना, आज़माइश, ज़रा और ज़ंग। अन्तर्राष्ट्रीय ध्वन्यात्मक वर्णमाला में इसके उच्चारण को z के चिन्ह से लिखा जाता है और उर्दू में इसको ز लिखा जाता है, जिस अक्षर का नाम ज़े है।

ज़ की ध्वनि सुनिए

घोष वर्त्स्य संघर्षी

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ज़ को भाषाविज्ञान के नज़रिए से "घोष वर्त्स्य संघर्षी" वर्ण कहा जाता है। अंग्रेजी में इसे "वाएस्लेस ऐल्वियोलर फ़्रिकेटिव" (voiced alveolar fricative) कहते हैं)।

भारतीय भाषाओं में

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'ज़' की ध्वनी के बारे में एक ग़लत धारणा है के इसे भारत में केवल अरबी-फ़ारसी या अंग्रेजी के शब्दों की वजह से ही मान्यता प्राप्त है। भारत में कई भाषाओं में यह संस्कृत से उत्पन्न मूल शब्दों के लिए भी प्रयोग होता है। मसलन कश्मीरी भाषा में अक्सर 'ज' की जगह 'ज़' आता है - कश्मीरी को देवनागरी लिपि में लिखने के लिए 'ज़' का भारी प्रयोग किया जाता है। ऐसा ही अन्य दार्दी भाषाओँ में भी देखा गया है। मसलन शीना भाषा में संस्कृत के "द्र" और "भ्र" की जगह अक्सर "ज़" आता है -

  • 'ज़ाच' - अर्थ: अंगूर, संस्कृत 'द्राक्ष' इसका मूल है
  • 'ज़्रा' या 'ज़ा' - अर्थ:भाई, संस्कृत 'भ्रात' इसका मूल है

असमिया भाषा में भी असमिया अक्षर জ়া (zô/ज़ॉ) का उच्चारण ज़ होता है -

  • 'পূজা' (puza/पुज़ा) - अर्थः 'पूजा'
  • 'জীৱন' (ziwôn/ज़िवॉन) - अर्थः 'जीवन'
  • 'জংঘল' (zôngghôl/ज़ॉंघॉल) - अर्थः 'जंगल'
  • 'ৰজা' (rôza/रॉज़ा) - अर्थः 'राजा'
  • 'জল' (zôl/ज़ॉल) - अर्थः 'जल'

कई पश्चिमी पहाड़ी भाषाओँ में भी 'ज़' प्रचलित है, मसलन हिमाचल की कुछ पहाड़ी भाषाओँ में 'आज' को अक्सर 'आज़' ही बोला जाता है।

ज और ज़ की सहस्वानिकी

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कुछ पश्चिमी हिन्दीभाषी क्षेत्रों में 'ज़' और 'ज' की मुक्त सहस्वानिकी देखी जाती है जिसमें बोलने वाले अपनी पसंद के अनुसार 'ज' और 'ज़' का प्रयोग करते हैं और कभी 'ज़' की जगह 'ज' या कभी 'ज' की जगह 'ज़' बोल देते हैं -

  • 'लहजे' की जगह 'लहज़ा' बोल देते हैं
  • 'ज़ंजीर' की जगह 'ज़ंज़ीर', 'जंजीर' या 'जंज़ीर' बोल देते हैं
  • अंग्रेज़ी बोलते हुए 'ऍजुकेटिड' (educated) की जगह 'ऍज़ुकेटिड' बोल देते हैं

इन्हें भी देखिये

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बाहरी कड़ियाँ

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