ज़फ़रनामा (पत्र)
ज़फ़रनामा अर्थात 'विजय पत्र' गुरु गोविंद सिंह द्वारा मुग़ल शासक औरंगज़ेब को लिखा गया था। ज़फ़रनामा, दसम ग्रंथ का एक भाग है और इसकी भाषा फ़ारसी है।
भारत के गौरवमयी इतिहास में दो पत्र विश्वविख्यात हुए। पहला पत्र छत्रपति शिवाजी महाराज के द्वारा राजा जयसिंह को लिखा गया तथा दूसरा पत्र गुरु गोविन्द सिंह जी के द्वारा शासक औरंगज़ेब को लिखा गया, जिसे ज़फ़रनामा अर्थात 'विजय पत्र' कहते हैं। नि:संदेह गुरु गोविंद सिंह का यह पत्र आध्यात्मिकता, कूटनीति तथा शौर्य की अद्भुत त्रिवेणी है।
गुरु गोविंद सिंह जहां विश्व की बलिदानी परम्परा में अद्वितीय थे वहीं वे स्वयं एक महान लेखक, मौलिक चिंतक तथा कई भाषाओं के ज्ञाता भी थे। उन्होंने स्वयं कई ग्रंथों की रचना की। वे विद्वानों के संरक्षक थे। उनके दरबार में ५२ कवियों तथा लेखकों की उपस्थिति रहती थी, इसीलिए उन्हें 'संत सिपाही' भी कहा जाता था। वे भक्ति तथा शक्ति के अद्वितीय प्रतीक थे।
वह ऐतिहासिक पत्र
संपादित करेंअपने पिता गुरु तेग बहादुर और अपने चारों पुत्रों के बलिदान के पश्चात १७०६ ई. में खिदराना की लड़ाई के पश्चात गुरु गोविंद सिंह ने भाई दया सिंह को एक पत्र (जफरनामा) देकर मुगल सम्राट औरंगजेब के पास भेजा। उन दिनों औरंगजेब दक्षिण भारत के अहमदनगर में अपने जीवन की अंतिम सांसें गिन रहा था। भाई दया सिंह दिल्ली, आगरा होते हुए लम्बा मार्ग तय करके अहमदनगर पहुंचे। गुरु गोविंद सिंह के इस पत्र से औरंगजेब को उत्तर भारत, विशेषकर पंजाब की वास्तविक स्थिति का पता चला। वह समझ गया कि पंजाब के मुगल सूबेदार के गलत समाचारों से वह भ्रमित हुआ था, साथ ही उसे गुरु गोविंद सिंह की वीरता तथा प्रतिष्ठा का भी अनुभव हुआ। औरंगजेब ने जबरदार और मुहम्मद यार मनसबदार को एक शाही फरमान देकर दिल्ली भेजा, जिसमें गुरु गोविंद सिंह को किसी भी प्रकार का कष्ट न देने तथा सम्मानपूर्वक लाने का आदेश था। परन्तु गुरु गोविंद सिंह को काफी समय तक यह ज्ञात नहीं हुआ कि भाई दया सिंह अहमदनगर में औरंगजेब को जफरनामा देने में सफल हुए या नहीं। अत: वे स्वयं ही अहमदनगर की ओर चल पड़े। अक्तूबर, १७०६ ई. में उन्होंने दक्षिण भारत की ओर प्रस्थान किया। उन्होंने मारवाड़ के मार्ग से दक्षिण जाने का विचार किया। मार्ग में राजस्थान के अनेक राजाओं ने उनका स्वागत किया। बापौर नामक स्थान पर उनकी भाई दया सिंह से भेंट हुई, जो वापस पंजाब लौट रहे थे। गुरु गोविंद सिंह को सभी समाचारों की जानकारी हुई। यात्रा के बीच में ही २० फ़रवरी १७०७ को उन्हें अहमदनगर में औरंगजेब की मौत का समाचार मिला, अत: उनकी औरंगजेब से भेंट न हो सकी।
४२ वर्षीय एक आध्यात्मिक तथा वीरत्व के धनी महापुरुष की ९० वर्षीय मतान्ध तथा बर्बर औरंगजेब से भेंट होती तो क्या होता, कहना कठिन है। एक विद्वान ने लिखा है कि 'विश्वास, अविश्वास से मिलने चला था, किंतु उसके पहुंचने से पूर्व ही अविश्वास दम तोड़ चुका था।' जून, १७०७ ई. में जाजू नामक स्थान पर शहजादा मुअज्जम को 'बहादुरशाह' के नाम से सम्राट बनाया गया, जिसने गुरु गोविंद सिंह का राजकीय सम्मान किया।
ज़फ़रनामा का इतिहास
संपादित करेंज़फ़रनामा का शाब्दिक अर्थ है 'जीत की चिट्ठी'। गुरु गोविंद सिंह ने इसे मूलत: फ़ारसी में लिखा है। इसमें मामूली परिवर्तन भी हुए हैं। अनेक भाषाओं में इसके अनुवाद किये गये हैं। हिन्दी में इसका अनुवाद बालकृष्ण मुंजतर (कुरुक्षेत्र, १९९०) तथा जनजीवन जोत सिंह आनंद (देहरादून, २००६) ने किया। महेन्द्र सिंह ने गुरुमुखी में तथा सुरेन्द्र जीत सिंह ने अंग्रेजी में इसका अनुवाद किया है। कुछ समय पूर्व नवतेज सिंह सरन ने भी इसका अंग्रेजी में अनुवाद किया। इस पत्र में फारसी में कुल १११ काव्यमय पद (शेर) हैं। जफरनामा में गुरु गोविंद सिंह ने वीरता तथा शौर्य से पूर्ण अपनी लड़ाइयों तथा क्रियाकलापों का रोमांचकारी वर्णन किया है। इस काव्यमय पत्र में एक-एक लड़ाई का वर्णन किसी में भी नवजीवन का संचार करने के लिए पर्याप्त है। इसमें खालसा पंथ की स्थापना, आनंदपुर साहिब छोड़ना, फ़तेहगढ़ की घटना, चालीस सिखों की शहीदी, दो गुरु पुत्रों का दीवार में चुनवाया जाना तथा चमकौर के संघर्ष का वर्णन है। इसमें मराठों तथा राजपूतों द्वारा औरंगजेब की करारी हार का वृत्तांत भी शामिल किया गया है। साथ ही गुरु गोविंद सिंह ने औरंगजेब को यह चेतावनी भी दी है कि उन्होंने पंजाब में उसकी (औरंगजेब की) पराजय की पूरी व्यवस्था कर ली है।
स्वाभिमान और शौय का घोष
संपादित करेंगुरु गोविंद सिंह के ज़फ़रनामा में वर्णित मंतव्य को स्पष्ट करने के लिए उनके कुछ प्रमुख पदों का यहां भावार्थ देना उपयुक्त होगा। गुरु गोविंद सिंह ने जफरनामा का प्रारंभ ईश्वर के स्मरण से किया है। उन्होंने अपने बारे में लिखा है कि 'मैंने खुदा की कसम खाई है, जो तलवार, तीर-कमान, बरछी और कटार का खुदा है और युद्धस्थल में तूफान जैसे तेज दौड़ने वाले घोड़ों का खुदा है।' उन्होंने औरंगज़ेब को सम्बोधित करते हुए लिखा, 'उसका (ईश्वर का) नाम लेकर, जिसने तुम्हें बादशाहत दी और मुझे धर्म की रक्षा की दौलत दी है, मुझे वह शक्ति दी है कि मैं धर्म की रक्षा करूं और सच्चाई का झंडा ऊंचा हो।' गुरु गोविंद सिंह ने इस पत्र में औरंगज़ेब को 'धूर्त', 'फरेबी' और 'मक्कार' बताया। साथ ही उसकी इबादत को 'ढोंग' कहा तथा उसे अपने पिता तथा भाइयों का हत्यारा भी बताया।
गुरु गोविंद सिंह ने अपने स्वाभिमान तथा वीरभाव का परिचय देते हुए लिखा, व्मैं ऐसी आग तेरे पांव के नीचे रखूंगा कि पंजाब में उसे बुझाने तथा तुझे पीने को पानी तक नहीं मिलेगा। व् गुरु गोविंद सिंह ने औरंगजेब को चुनौती देते हुए लिखा, 'मैं इस युद्ध के मैदान में अकेला आऊंगा। तुम दो घुड़सवारों को अपने साथ लेकर आना।' फिर लिखा, व्क्या हुआ (परवाह नहीं) अगर मेरे चार बच्चे (अजीत सिंह, जुझार सिंह, फतेह सिंह, जोरावर सिंह) मारे गये, पर कुंडली मारे डंसने वाला नाग अभी बाकी है।'
गुरु गोविंद सिंह ने औरंगज़ेब को इतिहास से सीख लेने की सलाह देते हुए लिखा, 'सिकंदर और शेरशाह कहां हैं? आज तैमूर कहां है, बाबर कहां है, हुमायूं कहां है, अकबर कहां है?' उन्होंने पुन: औरंगज़ेब को ललकारते हुए लिखा, 'अगर (तू) कमजोरों पर जुल्म करता है, उन्हें सताता है, तो कसम है कि एक दिन आरे से चिरवा दूंगा।' इसके साथ ही गुरु गोविंद सिंह ने युद्ध तथा शांति के बारे में अपनी नीति को स्पष्ट करते हुए लिखा, 'जब सभी प्रयास किये गये हों, न्याय का मार्ग अवरुद्ध हो, तब तलवार उठाना सही है तथा युद्ध करना उचित है।' और अंत के पद में ईश्वर के प्रति पूर्ण आस्था व्यक्त करते हुए उन्होंने लिखा, 'शत्रु भले हमसे हजार तरह से शत्रुता करे, पर जिनका विश्वास ईश्वर पर है, उनका कोई बाल भी बांका नहीं कर सकता।'
वस्तुत: गुरु गोविंद सिंह का ज़फ़रनामा केवल एक पत्र नहीं बल्कि एक वीर का काव्य है, जो भारतीय जनमानस की भावनाओं का द्योतक है। अतीत से वर्तमान तक न जाने कितने ही देशभक्तों ने उनके इस पत्र से प्रेरणा ली है। गुरु गोविंद सिंह के व्यक्तित्व तथा कृतित्व की झलक उनके ज़फ़रनामा से प्रकट होती है। उनका यह पत्र संधि नहीं, युद्ध का आह्वान है। साथ ही शांति, धर्मरक्षा, आस्था तथा आत्मविश्वास का परिचायक है। उनका यह पत्र पीड़ित, हताश, निराश तथा चेतनाशून्य समाज में नवजीवन तथा गौरवानुभूति का संचार करने वाला है। यह पत्र औरंगज़ेब के कुकृत्यों पर नैतिक तथा आध्यात्मिक विजय का परिचायक है।
इन्हें भी देखें
संपादित करेंबाहरी कड़ियाँ
संपादित करें- ज़फ़रनामा (गुरुमुखी और देवनागरी में, अंग्रेजी में अर्थ सहित)
- Manuscripts of Zafarnama
- English Translation of Zafarnama
- Zafarnama in Gurmukhi, Perso-Arabic and Latin script with English translations
- Epistle of Victory[मृत कड़ियाँ]
- Hindustan Times, The Zafarnama