जाने भी दो यारों (1983 फ़िल्म)
जाने भी दो यारों १९८३ में बनी हिन्दी भाषा की व्यंगात्मक तथा हास्य फ़िल्म है।
जाने भी दो यारों | |
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जाने भी दो यारों का पोस्टर | |
अभिनेता |
नसीरुद्दीन शाह, ओम पुरी, सतीश शाह, सतीश कौशिक, पंकज कपूर |
प्रदर्शन तिथि |
1983 |
देश | भारत |
भाषा | हिन्दी |
संक्षेप
संपादित करेंपेशेवर फोटोग्राफर विनोद चोपड़ा (नसीरुद्दीन शाह) और सुधीर मिश्रा (रवि वासवानी) मुंबई में एक फोटो स्टूडियो खोलते हैं लेकिन उनकी दुकान चलती नहीं है। एक विनाशकारी शुरुआत के बाद, उनको "खबरदार" प्रकाशन के संपादक द्वारा कुछ काम दिया जाता है। यह प्रकाशन शहर के अमीर और प्रसिद्ध लोगों के अपवादात्मक जीवन को उजागर करता है। वे दोनों संपादक शोभा सेन (भक्ति बर्वे) के साथ मिलकर एक बेईमान बिल्डर तरनेजा (पंकज कपूर), और भ्रष्ट नगर निगम आयुक्त डी मेलो (सतीश शाह) के बीच चल रहे भ्रष्टाचार को प्रकाश में लाने के लिए एक कहानी पर काम शुरू कर देते हैं। अपनी जांच के दौरान उनको पता लगता है कि एक और बिल्डर आहूजा (ओम पुरी) भी इस घोटाले में शामिल है।
अपनी कहानी पर काम करने के दौरान सुधीर और विनोद एक फोटोग्राफी प्रतियोगिता में हिस्सा लेते हैं जिसकी पुरस्कार राशि रु ५००० है और सारे शहर में तस्वीरें खींचते हैं। फ़ोटो धुलाई के दौरान एक फ़ोटो में वे एक आदमी को किसी को गोली मारते हुए देखते हैं। फ़ोटो बड़ी करने पर उनको यह ऐहसास होता है कि हत्यारा तरनेजा के अलावा अन्य कोई नहीं है। वे तुरंत उस पार्क में जाते हैं जहाँ उन्होंने वह तस्वीर खींची थी और उनको ऐहसास होता है कि लाश झाड़ियों के पीछे पड़ी है।। इससे पहले कि वे लाश तक पहुँचते, लाश ग़ायब हो जाती है, लेकिन उनको सोने का एक कफ़लिंक मिल जाता है। कुछ समय उपरान्त, वे स्वर्गवासी नगर निगम आयुक्त डी मेलो की स्मृति को समर्पित एक पुल के उद्घाटन में भाग लेने जाते हैं। यहाँ उनको दूसरा कफ़लिंक भी मिल जाता है। वे रात में लौटकर उस क्षेत्र की खुदाई करते हैं तो उनको एक ताबूत मिलता है जिसमें डी मेलो की लाश होती है।
वे दोनों लाश की कई तस्वीरें खींचते हैं, और इस उम्मीद से कि अब तरनेजा का पर्दाफ़ाश हो जाएगा, ताबूत में पहिये लगाकर अपने साथ ले जाने की तैयारी करते हैं। लेकिन अचानक ताबूत गायब हो जाता है। बाद में उनको पता चलता है कि नशे की हालत में तरनेजा के प्रतिद्वंद्वी आहूजा ताबूत को अपनी कार से बांधकर अपने ले गया है। वे यह जानकारी शोभा को देते हैं, जो को ब्लैकमेल करना शुरू कर देती है जिसकी जानकारी इन दोनों को नहीं है। तरनेजा इन तीनों को सौदा करने के लिए अपने यहाँ आमंत्रित करता है और उन्हें मारने के लिए एक बम रखवा देता है। दुर्भाग्य से बम तरनेजा और उसके गुर्गे के मुँह में फट जाता है, और दृश्य से यह तिकड़ी भागने में कामयाब हो जाती है।
कुछ समय पश्चात् इन दोनों को यह ऐहसास हो जाता है कि आहूजा से तरनेजा को पकड़वाने की उम्मीद रखना बेकार है और शोभा तरनेजा को ब्लैकमेल करके अपना उल्लू सीधा कर रही है और इसलिए वे लाश को आहूजा के फार्म हाउस से गायब करते हैं, और लाश को स्केट्स पहनाकर भागने की कोशिश करते हैं लेकिन तरनेजा, आहूजा, नए नगर आयुक्त श्रीवास्तव (दीपक काज़िर), शोभा और तरनेजा व आहूजा के सहयोगी उनका पीछा करते हैं जिसके उपरान्त बुरख़ा पहनी महिलाओं के भेष में उनके कई हास्यास्पद दृश्य हैं।
चरमोत्कर्ष दृश्य एक स्टेज पर चल रहे महाभारत के द्रौपदी चीर हरण प्रकरण नाटक पर दर्शाया गया है जिसमें यह दोनों और इनका पीछा कर रहे लोग नाटक के बीच में घुसकर नाटक को एक मनोरंजक मोड़ दे देते हैं और महाभारत के बीच में सलीम-अनारकली की प्रेम गाथा भी शामिल कर देते हैं। इस पूरे प्रकरण में डी मेलो की लाश पहले द्रौपदी और फिर अनारकली का रोल अदा करती है।