जौरासी

जिला अल्मोड़ा में चौखुटिया व स्याल्दे ब्लॉक़ों के बीचों-बीच बसा एक खूबसूरत पर्वत श्रृंखला

जौरासी (Jaurasi) भारत के उत्तराखण्ड राज्य के कुमाऊँ मण्डल में हिमालय की एक सुंदर पर्वतमाला है। यही नाम यहाँ स्थित अल्मोड़ा ज़िले के एक गाँव का भी है।[1][2]

जौरासी
Jaurasi
जौरासी का सुंदर दृश्य
जौरासी का सुंदर दृश्य
जौरासी is located in उत्तराखंड
जौरासी
जौरासी
उत्तराखण्ड में स्थिति
निर्देशांक: 29°31′12″N 79°31′37″E / 29.520°N 79.527°E / 29.520; 79.527निर्देशांक: 29°31′12″N 79°31′37″E / 29.520°N 79.527°E / 29.520; 79.527
देश भारत
राज्यउत्तराखण्ड
ज़िलाअल्मोड़ा ज़िला
भाषा
 • प्रचलितहिन्दी, कुमाऊँनी
समय मण्डलभामस (यूटीसी+5:30)


जौरासी सल्ट व द्वाराहाट विधानसभाओं के बीच में स्थित एक खूबसूरत पर्वतमाला है। लगभग 6500 फुट से भी ऊँची यह पर्वतमाला रामगंगाविनोद नदियों के बीच स्थित है। इस पर्वत शृंखला का विस्तार रामगंगा व विनोद नदियों के संगम, केदार से शुरू होकर दूधातोली की चोटी तक फैला है। इस पर्वत श्रृंखला के आस-पास बसे क्षेत्र को 'जौरासी क्षेत्र' के नाम से भी जाना जाता है। ये पर्वत श्रृंखला मुख्यतः जौरासी, गैरखेत, घन्याल पोखर, असुर गड़ी, दाणू थान, चौबटिया, गढ़वाल बुंगा, जाड़ापानी, दुर्गा देवी, कलिया लिंगुड़ा, नागचुलाखाल और फुलांग पर्वत को जोड़ता हुआ दूधातोली के घनघोर जंगलों में समाहित हो जाता है। इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह उत्तराखंड के तीन जिलों - अल्मोड़ा, चमोली और पौड़ी की संयुक्त सीमा पर बसा है। इसके एक ओर चौखुटिया, मासी, रानीखेत है तो दूसरे ओर देघाट, स्याल्दे, भिकियासैंण और इसके ऊपरी तरफ नागचुलखाल, गैरसैंण स्तिथ है। अंग्रेजों द्वारा यहाँ पर अपने ठहरने के लिए कई डाक बगलों का निर्माण किया था, जिसमें से अभी सिर्फ जौरासी डाक बंगला ही मौजूद है और जिसका रख-रखाव अभी राज्य सकरार द्वारा किया जाता है। केलानी डाक बंगला अभी खंडहर में तब्दील हो चुका है जिसके अभी सिर्फ अवशेष ही मौजूद हैं। ऊंचाई पर स्थित होने के कारण यहां पर पानी की भारी कमी है, जो यहाँ से पलायन का मुख्य कारण भी है। पानी की इस कमी को पूरा करने के लिए सरकार द्वारा रामगंगा से असुरगढ़ी पम्पिंग पेयजल योजना को स्वीकृत दी गयी है, जिस कारण क्षेत्र में पर्यटन को बढ़ावा मिलने की भी सम्भावना है।[3]

जौरासी क्षेत्र में आने वाले गांव

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गेवाड़ के गाँवों की सूची जौरासी, जाला, फड़ीका, जैंठा मल्ला, जैंठा तल्ला, सुरना रेखाडी, सुरना गोपालगाँव, सुरना बग्वालीखेत, तया सुरना, छानी, डांग, भैल्टगाँव, खत्याड़ी मल्ली, खत्याड़ी बिचली, खत्याड़ी तल्ली, कौराली, सेलिपाटली, चमड़गांव, सारतोली, तिमिलखाल, टनहला, बसौली, आदिग्राम कॉनोड़ियां, आदिग्राम फुलोरिया, मलसाखेत, सुखालौ, कोटिड़ा, सीमार, सीमा, सुमंतेश्वर, रुगढ़ई बखाली,आदिग्राम बाग़री, मसिवॉ बाखली, बोहरागाँव, सुनोली, कौगाड, कुसगाँव, हाट, अगरमनराल, पसोली, मैनपुरी, बसनलगाँव, सतीगाँव, लमकाँसूँ, सिसौड़ियाँ, पथरखानी, ककड़ाखत, जयरामबाखल, झलां कारचुली, उडलीखान,परथोला, मुसखन, रोटापानी, बंगारी गांव, मोटातिमिला, क्वारीपीगाँव और मोहाण, कौंधर, सन गाँव, ,मनिया ढही, झल्याखत,वीरमदियो, आमाडाली आदि।

चौकोट के गाँव की सूची जौरासी, कुणाखाल, कालीगाड़, ग्वालबीना, मल्ला कफलटाना तल्ला कफलटाना, मल्ला सौगड़ा तल्ला सौगड़ा, गवांखील,मल्ला घनियाल, तल्ला घनियाल, बिचला घनियाल, घनियाल पल्ला, मंगरू, बागोटियाछाना, महगयारी, कलछिपा जोशी, कैहड़गाँव, टामढौन, जोशी पचरूवा, अगयरी पचरूवा, बचुली सीमा, जीठनी खत्ता, बासीसीमा, मोटातिमला, सेलीपाटली, कनारीखिल, मोहाली, सुनोली, टिटरी, गुरना, धौलियागाजर, लंबसीमार, केलानी, बाखली, चौना, सनड़भीड़ा, उप्राड़ी, जैखाल, दुपसील, तल्ला खल्डुवा, मल्ला खल्डुवा, भेली वार, भेली पार, चम्याडी सबोलीछाना, संसखेत, कुलसीरा, फूटीकुहां, गोलना, कुमालेश्वर आदि।

जौरासी में शिक्षा एवं स्वास्थ्य सेवायें

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GIC जौरासी

जौरासी में स्थित आदर्श राजकीय इंटर कालेज, जौरासी [4] की स्थापना सन 1948 में की गयी थी। यह विद्यालय उत्तराखण्ड में सबसे पुराने विद्यालयों में गिना जाता है। स्याल्देचौखुटिया ब्लॉक में सबसे पहले साइंस साइड भी इसी विद्यालय में शुरू किया गया था। इस समय विद्यालय में लगभग 465 छात्र व छात्राएं अपनी शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। अध्यापकों की भारी कमी[5] होने की बजह से यह विद्यालय अभी बदहाली की मार झेल रह है। यह जौरासी क्षेत्र का एकमात्र विद्यालय है जिसमें क्षेत्र के बच्चे 12 वी तक की शिक्षा प्राप्त करते हैं। इस स्कूल का काफी पुराना इतिहास रहा है। इसको बनाने के लिए क्षेत्र के कर्मठ समाजसेवियों का बहुत बड़ा योगदान है। इसका पुराना नाम गांधी उच्चतर माध्यमिक विद्यालय था और यहां उस समय काफी दूर दूर से बच्चे यहां पढ़ने आते थे। यह स्कूल अपनी खूबसूरती के लिए प्रसिद्ध है। इसके अलावा यहां पर पांचवी तक प्राइमरी पाठशाला भी है, जिसका निर्माण सन 1928 किया गया था। एक समय ये स्कूल पूरे उत्तराखंड में सबसे बेहतरीन स्कूलों में गिना जाता है, लेकिन काफी पुराना होने के कारण जीर्ण हालात में है।

जौरासी में स्वास्थ्य सुविधाओं हेतु अतिरिक्त स्वास्थ्य केंद की स्थापना सन 1990 में की गई थी। अतिरिक्त स्वास्थ्य केंद्र होने की वजह से यहां पर सुविधाएं न के बराबर हैं। इसलिए क्षेत्रीय लोगों को स्वास्थ्य सुविधा हेतु दूसरे स्थानों का रुख करना पड़ता है। निकटम प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र चौखुटिया व रानीखेत में है जो क्षेत्र से काफी दूरी पर स्तिथ हैं।

दर्शनीय स्थल

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  • जौरासी भगवती मंदिर- भगवती मंदिर जौरासी के बीच में स्थित है और बाबा ओमी द्वारा बनाया गया है। पुराने लोगों के कहावत के अनुसार इस मंदिर का निर्माण ओम बाबा (अभी उनको ओमी बाबा के नाम से भी जाना जाता है) द्वारा किया गया था। ये उस समय की बात है जब हमारा देश अलग अलग रियासतों में बंटा था और उस समय गवालबीना के राजा श्री दौलत सिंह जी द्वारा यहां पर भगवती माता की मूर्ति की स्थापना की गई थी। अब यहां हर वर्ष चैत्र मास के नवमी को जौरासी के मेले का भी आयोजन किया जाता है।
  • मृत्युंजय महादेव मंदिर: यह पौराणिक मंदिर ग्रामसभा ग्वालबीना व कफलटाना की सयुंक्त सरहद पर स्तिथ है। स्थानीय लोगों द्वारा खुदाई के दौरान यहाँ पर प्राचीन दुर्लभ मूर्तियां व शिवलिंग प्राप्त हुआ था। जिसके बाद दोनों ग्रामसभा के निवासियों द्वारा यहाँ पर शिवालय की स्थापना की गयी थी। यहाँ पर सड़क मार्ग न होने के कारण इस मदिर की जानकारी स्थानीय निवासिओं तक ही सीमित है। इस जगह पर चौकोट साइड के गाँवों का घाट है।
  • भैरव मंदिर - भैरव मंदिर - जौरासी से 1.5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहां से हिमालय के दर्शन बड़े आसानी से हो जाते हैं। यहाँ पर अग्रेजों द्वारा बसाया गया डाक बंगला भी है। वन विभाग द्वारा इस जगह पर अपना कार्यालय खोल दिया है और डाक बंगले को गेस्ट हाउस में तब्दील कर दिया है। ये वन विभाग का का दोनों क्षेत्रों का एकमात्र ऑफिस है। यहाँ पर वन विभाग की नर्सरी भी है। रामनगर के बाद पुरे क्षेत्र का वन सम्बन्धी समस्याओं का निपटारा इसी कार्यालय द्वारा किया जाता है।
  • असुरगढ़ी मंदिर - लगभग 7000 फुट की ऊंचाई स्तिथ जौरासी क्षेत्र में सबसे ऊँची पहाड़ी है। यहां से चारों दिशाओं के दर्शन बड़ी आसानी से हो जाते हैं। यहां से नदीणा (गेवाड़), मनिला (चौकोट), दूधातोली, बुग्याल, ब्रह्मढूँगी व हिमालय के साक्षात दर्शन होते हैं। कहावत के अनुसार अज्ञातवास के दौरान पांडव जिस स्थान पर छुपे हुए थे वह अभी चौखुटिया के नाम से भी जाना जाता है, उस समय इसका नाम विराटनगरी था और असुरगढ़ी में कीचक दैत्य का राज्य था। भीमसेन और कीचक की इस जगह पर भयंकर लड़ाई हुई थी जो नितई रौ (रामपादुका) में भीम द्वारा कीचक को मारने के बाद खत्म हुई। स्थानीय लोगों द्वारा यहां पर असुर माता के मंदिर की स्थापना की और इसका नाम बदलकर असुरगढ़ी मंदिर रख दिया है। भाद्र मास की पहली तारीख में घी सक्रांति के दिन यहां पर हर वर्ष मेला भी लगता है। जौरासी क्षेत्र की सबसे महत्वपूर्ण योजना रामगंगा से असुरगढ़ी पेयजल योजना [6] भी इसी जगह पर स्थापित की जाने वाली है।
 
कत्यूरी राजाओं का किला, लखनपुर
  • लखनपुर कोट का कत्यूरी राजाओं का किला - जौरासी क्षेत्र के लखनपुर कोट के उडलिखान गांव के ऊपर पहाडी पर स्थित है जो पाली के कत्यूरी शासकों का किला हुआ करता था। इसको उस समय आसन - बासन सिंहासन के नाम से भी जाना जाता था। कत्यूरी राजा आसन्ति बासन्ति देव का राज्य था। इनका नाम बसंतदेव भी हो सकता है और जो राजा ललितसूर देव की संतान में से थे। लखनपुर के निकट कलिरौ-हाट नामक बाजार था लेकिन अभी यहां सिर्फ गांव है। लखनपुर का किला अब खंडहर मे तब्दील हो चुका है, यहाँ के तरासे हुए पत्थरों को ठेकेदारों ने सड़क निर्माण में दफन कर दिए हैं। ऐतिहासिक महत्व की अनेक वस्तुएं जमीन के गर्त में समा गई है, इस पहाड़ी के नीचे की ओर महलों व किलों के खंडहर अभी भी विद्यमान है। राजा वीरम देव यहाँ के अंतिम शासक थे तथा इस किले के 200 मीटर नीचे व हाट गांव के ऊपर वीरम देव का नौला अभी भी बना हुआ है और यह बारह मास पानी भरा रहता है। उस समय पीने के पानी की आपूर्ति इन्हीं नौलों से होती थी। यहाँ पर नर्सिंग भगवान का मंदिर, नौ लाख कत्यूरी मंदिर, सरस्वती मंदिर, गायत्री मंदिर, शेषावतार मंदिर, हनुमान मंदिर, लक्ष्मण मंदिर, 108 शिवलिंग आदि स्थापित है। इसके अलावा यहां पर एक विशाल घंटा, यज्ञशाला, साधना कक्ष, कत्यूरी झूला तथा स्वर्ग सीढ़ी विद्यमान हैं। यहाँ से कत्यूरी रानियों के स्नान के लिए एक सुरंग का निर्माण किया गया था जिसके अवशेष अभी भी विद्यमान हैं।
  • डाणुथान व वन विभाग का रेंज ऑफिस- डाणुथान जौरासी से लगभग एक किलोमीटर की दूरी पर स्तिथ बेहद सुंदर, शांत व समतल जगह है। ये जगह लगभग 4 से 5 किलोमीटर के एरिया में फैला, बिना पेड़ों का एक कृतिम गोल्फ कोर्स के लायक जगह है। 7000 हज़ार फ़ीट की ऊँचाई पर स्तिथ होने के बावजूद भी ये जगह एकदम समतल है। यहां से नागचुलाखाल 7 किलोमीटर, गैरसैण 20 से 25 किलोमीटर व दुर्गा देवी मंदिर 3 किलोमीटर दूरी पर हैं। इन जगहों पर जाने के लिए अभी तक लोगों पैदल ही जाना पड़ता है, लेकिन अभी यहां से सरकार द्वारा नागचुलाखाल तक रोड़ प्रस्तावित कर दी है। नागचुलाखाल से आगे गैरसैंण तक पहले से ही रोड़ बानी हुई है।
  • जौरासी फारेस्ट रेंज आफिस अंग्रेज़ो द्वारा बसाया गया वन विभाग का जिला अल्मोड़ा में सबसे पुराना आफिस है। यह आफिस पूरी तरह से अभी तक सुरक्षित है और यहां पर सुचारू रूप से काम चलता है। इस जगह पर वन विभाग के आफिस के अलावा उनका रेस्ट हाउस भी बना है। रामनगर के बाद ये फारेस्ट का सबसे बड़ा आफिस है।[7]
  • जाड़ापानी का दलदल - जौरासी से 3 से 4 किलोमीटर की दूरी पर स्थित तथा लगभग 7500 फ़ीट की ऊँचाई पर स्थित ये शायद दुनिया का एक अनूठा दलदल हो सकता है। लगभग 1 किलोमीटर के एरिया में फैला हुआ इतनी ऊंचाई पर स्थित होने वाबजूद और वो भी बिना कोई स्रोत के, यहां पर ये दलदल कैसे पैदा हुआ ये एक जांच का भी विषय हो सकता है। फिलहाल अभी इसको चारों ओर से बंद कर रखा है क्योंकि यहां पर कई जानवर इस दलदल में डूबकर मर चुके हैं। कहा जाता है कि इस दलदल से ही रिस कर पानी चौखुटिया व और इसके आस पास के इलाकों में पीने के पानी की आपूति करता है लेकिन इसकी सत्यता इसकी जांच करके ही पुख्ता तथ्य पर पहुँचा जा सकता है।

स्थानीय मेले व त्यौहार

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  • जौरासी मेला : चैत्र पूर्णिमा के दिन माँ भगवती मंदिर में लगता है।
  • घी सक्रांति : हर वर्ष भाद्र महीने के 1 गते को मनाया जाता है। इस दिन सूर्य, सिंह राशि में प्रवेश करता है इसलिए इसको सिंह संक्रांति भी कहते हैं। इस त्यौहार को पशुओं की रक्षा के रूप में भी मनाया जाता है तथा उनकी पूजा की जाती है और उनको अच्छे पकवान भी खिलाये जाते हैं। इस दिन घी से बने पकवान बनाये जाते हैं।
  • असुरगढ़ी मेला : भाद्र मास की पहली तारीख में घी सक्रांति के दिन यह मेला हर वर्ष मनाया जाता है।
  • अष्टमी मेला : चैत्र मास के नवरात्रियों में अष्टमी के दिन मनाया जाता है। यह मेला देघाट व चौखुटिया दोनों जगह मनाया जाता है। इस दिन माँ काली की पूजा की जाती है। पहले यहाँ पर भैसे की बलि देने की प्रथा थी जिसको अब राज्य सरकार द्वारा बंद करवा दिया गया है।

जौरासी काफी ऊंची पहाड़ी पर स्तिथि होने के कारण यहां पर एक मात्र जाने का रास्ता रोड़ है। जौरासी जाने के लिए पहले चौखुटिया जाना पड़ता यहां से लोकल टैक्सी सर्विस व सरकारी बसों द्वारा जौरासी पहुँचा जा सकता है। अभी यहां पर काफी रोडों पर काम चल रहा है जिसके बाद यहां से मासी, देघाट, नागचुलाखाल, स्याल्दे व गैरसैंण चारों दिशाओं से से जाना संभव हो सकता है। निकटम रेलवे स्टेशन रामनगर व काठगोदाम हैं।

चित्र दीर्घा

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इन्हें भी देखें

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  1. "Uttarakhand: Land and People," Sharad Singh Negi, MD Publications, 1995
  2. "Development of Uttarakhand: Issues and Perspectives," GS Mehta, APH Publishing, 1999, ISBN 9788176480994
  3. [1] Google Map of Jaurasi Range
  4. [2] जौरासी क्षेत्र का गूगल मैप
  5. [3] Archived 2019-07-21 at the वेबैक मशीन8 प्रवक्ताओं के पद खाली
  6. [4] Archived 2019-07-21 at the वेबैक मशीन दो पेयजल योजनाओं की स्वीकृति, झूमे ग्रामीण
  7. "संग्रहीत प्रति". मूल से 21 जुलाई 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 21 जुलाई 2019.