ठाकुर रामसिंह
ठाकुर रामसिंह (16 फ़रवरी 1915 - ०६ सितम्बर २०१०) राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक एवं इतिहास संकलन समिति के संस्थापक सदस्य थे।
जीवन परिचय
संपादित करेंअखिल भारतीय इतिहास-संकलन योजना के संस्थापक-अध्यक्ष ठाकुर रामसिंह जी का जन्म 16 फ़रवरी 1915 को हिमाचल प्रदेश के ग्राम झण्डवी, तहसील भोन्राज, जिला हमीरपुर में हुआ था। आपके पिता का नाम श्री ठाकुर भागसिंह एवं माता का नाम श्रीमती निहातु देवी था। ठाकुर रामसिंह 5 भाई-बहन थे। आपकी प्राइमरी शिक्षा प्राइमरी पाठशाला में हुई। सन् 1935 में उन्होंने राजपूत हाईस्कूल, भोरवाहा से प्रथम श्रेणी में मैट्रिकुलेशन की परीक्षा उत्तीर्ण की तथा सन् 1938 में डी॰ए॰वी॰ कालेज (होशियारपुर, पंजाब) से इंटरमीडिएट एवं 1940 में सनातन धर्म कालेज (लाहौर) से बी॰ए॰ की परीक्षा उत्तीर्ण की। सन् 1942 में उन्होने लाहौर विश्वविद्यालय के एफ॰सी॰ कालेज़ से स्नातकोत्तर (इतिहास) की परीक्षा उत्तीर्ण की।
राजनीतिविज्ञान एवं अंग्रेजी के इनके ज्ञान की प्रशंसा सभी प्राध्यापक करते थे। कालेज में हाकी-टीम के प्रमुख थे।
पढ़ाई पूरी करने के बाद सन् 1942 में ठाकुर जी ने संघ के प्रचारक के रूप में स्वयं को देश-सेवा में समर्पित कर दिया। पठन-पाठन में अत्यधिक रुचि के कारण संघ-कार्यालय में उन्होंने एक पुस्तकालय की स्थापना की जिसमें उन्होंने 5 हज़ार पुस्तकों का संग्रह किया।
सन् 1948 में गाँधी-हत्या के बाद संघ पर प्रतिबन्ध के विरुद्ध उन्होंने योल कैम्प जेल में 42 दिन भूख-हड़ताल पर रहे 1,400 स्वयंसेवकों का नेतृत्व किया। भूख-हड़ताल के फलस्वरूप पंजाब के गोपीचन्द भार्गव शासन का पतन होकर भीमसेन सच्चर सरकार बनी। प्रतिबन्ध समाप्त होने के बाद पूरे देश में संघ का कार्य पुनः खड़ा होने लगा। श्री गोलवालकर जी ने ठाकुर रामसिंह जी को असम-क्षेत्र में संघ-कार्य खड़ा करने के लिए भेजा। सितम्बर, 1949 से अप्रैल, 1971 तक 22 वर्ष असम प्रान्त के प्रथम प्रांत-प्रचारक के रूप में कार्य करते हुए ठाकुरजी ने सम्पूर्ण असम-क्षेत्र को संगठन की दृष्टि से सुदृढ़ किया। असम में सभी संस्थाओं से संबंध स्थापितकर सबको एकसूत्र में पिरोने का कार्य उन्होंने अविश्रान्त भाव से किया।
सन् 1962 के चीनी-आक्रमण के समय गैर-असमी लोग असम से भागकर देश के अन्य सुरक्षित स्थानों पर जा रहे थे। उस समय ठाकुर जी न केवल डटे रहे, बल्कि चीनियों के असम पर अधिकार कर लेने की स्थिति में संघ-स्वयंसेवकों को लेकर उनसे मुक़ाबला करने की, उस समय के वरिष्ठ प्रचारक एकनाथ रानाडे के साथ मिलकर, रणनीति बनाने में व्यस्त थे। उसी वर्ष एक सड़क-दुर्घटना में उनका दाहिना पैर टूट गया, किन्तु अपनी अदम्य इच्छाशक्ति के कारण वह पुनः अपने पैर पर खड़े हो गये तथा फिर उसी तत्परता से 1971 तक असम के प्रांत-प्रचारक के रूप में कार्य करते रहे। उन्हें असमिया भाषा लिखना, पढ़ना और बोलना अच्छी तरह से आता था। असम में अपने स्नेहपूर्ण व्यवहार व सम्पर्क से 50 से अधिक प्रचारक निकाले।
सन् 1971 में ठाकुरजी की नियुक्ति पंजाब के सह-प्रांत-प्रचारक के रूप में हुई जो उत्तर क्षेत्र-प्रचारक के रूप में 1989 तक चली। सन् 1990 ‘बाबा साहेब आपटे स्मारक समिति’ एवं 1994 में ‘अखिल भारतीय इतिहास-संकलन योजना’ का दायित्व भी ठाकुर रामसिंह जी के पास आया। इस दायित्व का बाद उन्होंने का कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक सम्पूर्ण देश का प्रवास किया तथा अनेक इतिहासकारों को संगठितकर भारतीय-इतिहास में एक नया अध्याय प्रारम्भ कर दिया। अधिक उम्र हो जाने पर सन् 2003 की संघ की कुरुक्षेत्र-बैठक में ठाकुर जी को सभी दायित्वों से मुक्त किया गया। लेकिन कार्य करने की उत्कट इच्छा और जीवनपर्यंत आराम न करने की दृढ़ता का परिणाम था कि ठाकुर जी निरन्तर कार्य में लगे रहे और अखिल भारतीय इतिहास-संकलन योजना, बाबा साहेब आपटे स्मारक समिति का अनवरत मार्गदर्शन करते रहे। जीवन के अन्तिम वर्षों में ठाकुर जी योजना के शोध-प्रकल्प के रूप में नेरी, हिमाचलप्रदेश में ‘ठाकुर जगदेव चन्द शोध-संस्थान’ के निर्माण में संलग्न रहे। 95 वर्ष की आयु में भी आपने अगले 5 वर्षों की कार्ययोजना बना रखी थी। दिनांक 06 सितम्बर 2010 को उनका स्वर्गवास हो गया।