प्रेम नारायण शुक्ल
प्रेम नारायण शुक्ल ( 2 अगस्त, 1914 - 12 जनवरी 1991) एक भारतीय हिंदी साहित्यकार, प्राध्यापक, लेखक तथा संपादक थे। उन्होने अखिल भारतीय हिंदी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग के साहित्य मंत्री एवं संपादक के रूप में अनेक जन्मशती विशेषांकों, ग्रंथों का संपादन किया।
उनकी प्रमुख कृतियां 'भारतेन्दु की नाट्यकला', 'हिंदी साहित्य में विविधवाद', 'संत साहित्य', 'संत कबीर' हैं।
जीवन परिचय
संपादित करेंप्रेम नारायण शुक्ल का जन्म कानपुर जिले की घाटमपुर तहसील के अंतर्गत ओरिया ग्राम में २ अगस्त, १९१४ को हुआ था। जब वे पांच वर्ष के थे तब उनकी माता का निधन हो गया था, पिता श्री नन्द किशोर शुक्ल, वैद्य थे। प्रारंभिक जीवन बहुत अभावों में बीता, पर कभी हार नहीं मानी, संघर्ष करते हुए जीवन में निरंतर अग्रसर रहे । उनकी सम्पूर्ण शिक्षा-दीक्षा कानपुर में ही हुई। वे डी॰ ए॰ वी॰ कॉलेज , कानपुर के मेधावी छात्रों में से थे। १९४१ में आगरा विश्वविद्यालय से एम. ए.(हिंदी साहित्य) की परीक्षा में प्रथम श्रेणी में सर्वप्रथम स्थान प्राप्त हुआ था (उस समय कानपुर के अधिकतर कॉलेज आगरा विश्वविद्यालय के अंतर्गत आते थे)। अखिल भारतीय हिंदी साहित्य सम्मेलन की 'साहित्यरत्न' परीक्षा में भी प्रथम श्रेणी में सर्वप्रथम स्थान प्राप्त हुआ। १९५२ में उनको आगरा विश्वविद्यालय (वर्तमान में डॉ भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय, आगरा के नाम से जानी जाती है) ने ' हिंदी साहित्य में विविध वाद' [1] शीर्षक प्रबंध पर पी-एच॰ डी॰ तथा 1965 में ' संत साहित्य (भाषा परक अध्ययन)' पर डी॰ लिट्॰ की उपाधियाँ प्रदान कीं। इन दोनों ही ग्रंथों को उत्तर प्रदेश सरकार ने सम्मानित किया [2]
गणेश शंकर विद्यार्थी द्वारा चलाये गए अखबार 'प्रताप' से उन्होंने ने अपने जीवन की शुरुआत एक लेखक के रूप में कीl १९४३ से उन्होंने डी॰ ए॰वी॰ डिग्री कॉलेज कानपुर में हिंदी विभाग में व्याख्याता के रूप में कार्य प्रारम्भ किया और १९६२ से १९७७ तक वहीं पर विभागाध्यक्ष के पद पर रहे। अवकाश ग्रहण करने के पश्चात् १९८२ तक विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के विशिष्ट प्रोफेसर के मानक पद पर रहेl[3] अध्यापन के समय संत साहित्य, साहित्यालोचन, उनके प्रिय विषय थे। अनेक छात्रों ने अपने शोध ग्रन्थ उनके निर्देशन में पूरे किये। वे निरन्तर अखिल भारतीय हिंदी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग से जुड़े रहे और लगभग तीन दशक तक साहित्य-मंत्री के पद पर कार्य कियाl
अक्टूबर सन १९४० में आचार्य रामचंद्र शुक्ल का १५-२० दिन के लिए कानपुर आना हुआ था, उस समय प्रेम नारायण जी की मुलाकात उनसे कई बार हुई और अनेक साहित्यिक चर्चाएं भी, परन्तु ये भेट प्रथम और अन्तिंम बन कर रह गयी। उसके बाद ही रामचंद्र जी की मृत्यु हो गयी। उनकी पुण्य स्मृति में प्रेम नारायण जी एवं श्रीनारायण जी ने कानपुर में 'साधना-सदन' संस्था की स्थापना के द्वारा हिंदी साहित्य की मौलिक और ठोस सेवा का बीड़ा उठाया। सूरदास पर आलोचनात्मक सामग्री के अभाव को पूरा करने के लिए 'सूर सौरभ' नामक पुस्तक संस्था का प्रथम प्रयास था। [4] कालांतर में अनेक साहित्यिक अनुष्ठान पूर्ण हुए। उसी की एक प्रस्तुति आचार्य रामचंद्र जी शुक्ल जन्मशती विशेषांक के रूप में साहित्य जगत के सामने आयी, जिसका संपादन प्रेमनारायण जी ने साहित्य सम्मेलन के अपने कार्यकाल में किया। उन्होंने हिंदी साहित्य के विकास के लिए अनेक महत्त्वपूर्ण साहित्यकारों पर सम्मेलन पत्रिका के स्मृति विशेषांक, जन्मशती विशेषांक सम्पादित किये। उनके संपादन में 'कुछ दिवंगत साहित्यकारों के पत्र' शीर्षक ग्रन्थ का प्रकाशन किया गया था, जो कालांतर में पुस्तक के रूप में भी प्रकाशित हुई। [5] कतिपय अन्य महत्त्वपूर्ण विशेषांकों ने भी पुस्तक का रूप लिया।
३ दिसंबर १९७७ को कानपुर में आचार्य मुंशीराम शर्मा जी 'सोम' का उनके ७५ वर्ष पूरे होने पर भव्य अभिनन्दन किया गया था जिसमें दिग्गज के साहित्यकारों जैसे श्रीमती महादेवी वर्मा, डॉ रामकुमार वर्मा, आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी, आचार्य किशोरीदास बाजपेई, डॉ भगीरथ मिश्र, डॉ विजयेन्द्र स्नातक, पंडित लक्ष्मी शंकर मिश्र 'निशंक', आचार्य सीताराम चतुर्वेदी, आचार्य श्री नारायण चतुर्वेदी, डॉ वागीश दत्त पाण्डेय आदि ने भाग लिया था। उसके बाद कानपुर को ऐसे साहित्यिक विद्वतजनों का समागम वर्षों तक देखने को नहीं मिला। इस अवसर पर 'साधना और सर्जना' अभिनन्दन ग्रन्थ भेंट किया गया, जिसका सम्पादन प्रेमनारायण शुक्ल तथा वाल्मीकि त्रिपाठी ने किया था।।[6]
१२ जनवरी, १९९१ को वे पंचतत्व में विलीन हुएl ठीक एक वर्ष पूर्व १२ जनवरी, १९९० को इसी दिन उनके गुरु डॉ मुंशीराम शर्मा "सोम" - वेद मनीषी, का भी निधन हुआ था, उनकी प्रथम पुण्य तिथि को स्मरण पर्व के रूप में मनाना चाहते थे और उसी के लिए प्रयत्नशील भी थेl दो दिन पूर्व ही (१० जनवरी) हृदय में दर्द उठा, अस्पताल में भर्ती किया गया, सारा समय उनका ध्यान अपने गुरु की पुण्य तिथि को सफल बनाने पर था और अस्पताल में भी उसी के लिए प्रयत्नशील थेl जीवन पर्यन्त गुरु का आशीर्वाद ले साहित्य साधना में लीन रहने वाले शिष्य शुक्ल जी का भी महाप्रयाण उसी दिन हुआl गुरु-शिष्य परम्परा का अनूठा उदाहरण प्रस्तुत हुआ l [7]
कृतियाँ
संपादित करेंपुस्तकें
संपादित करें- भारतेन्दु की नाट्यकला (1949) कानपुर: साधना सदन
- प्रेमचंद (1952) कानपुर: पद्मजा प्रकाशन
- हिंदी साहित्य में विविधवाद (1970) ( 2 संस्करण) इलाहबाद: लोकभारती प्रकाशन
- कथा-वीथी (1970) कानपुर: ग्रन्थम
- संत साहित्य (भाषा परक अध्ययन)(1986) (2 संस्करण) कानपुर: ग्रन्थम
- संत कबीर कानपुर: ग्रन्थम
- आचार्य मुंशीराम शर्मा 'सोम' : साधना और सर्जना (वाल्मीकि त्रिपाठी के साथ) (1977) कानपुर: ग्रन्थम
संकलित एवं सम्पादित (पाठ्य पुस्तक के रूप में)
संपादित करें- हिंदी गद्य पारिजात (1953) प्रयाग: हिंदी साहित्य सम्मेलन
- सुकवि सुधा
- आधुनिक गद्य संग्रह (1979) प्रयाग: हिंदी साहित्य सम्मेलन
सम्पादित
संपादित करें- सम्मेलन पत्रिका: जन्मशती विशेषांक (1955) ) प्रयाग: हिंदी साहित्य सम्मेलन
- आचार्य रामचंद्र शुक्ल: जन्मशती विशेषांक (1963/2005) ) प्रयाग: हिंदी साहित्य सम्मेलन
- राजर्षिपुरुषोत्तम दास टंडन: जन्मशती विशेषांक (1958/2003) प्रयाग: हिंदी साहित्य सम्मेलन
- सम्मेलन पत्रिका भाग 62 : हिंदी दिवस - एक अंतर्दर्शन (1976) प्रयाग: हिंदी साहित्य सम्मेलन
- कुछ दिवंगत साहित्यकारों के पत्र (1999) प्रयाग: हिंदी साहित्य सम्मेलन
- गया प्रसाद शुक्ल 'सनेही': जन्मशती विशेषांक (1982) प्रयाग: हिंदी साहित्य सम्मेलन
- सनेही रचनावली(1984) प्रयाग: हिंदी साहित्य सम्मेलन
- सभापतियों के सम्भाषण (भाग ३)(1987) प्रयाग: हिंदी साहित्य सम्मेलन
- आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी- स्मृति विशेषांक
- आचार्य परशुराम चतुर्वेदी -स्मृति विशेषांक
- आचार्य नन्ददुलारे बाजपेई -स्मृति विशेषांक
- राष्ट्रकवि मैथलीशरण गुप्त - स्मृति विशेषांक आदि।
सम्मान
संपादित करें- 1990 में उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान, लखनऊ ने उनकी साहित्यिक सेवाओं के लिए उन्हें विशेष पुरस्कार (रूपये 21,000/-) से सम्मानित किया था। ( विभिन्न सम्मानों से सम्मानित एवं पुरस्कृत साहित्यकार : विवरण पत्रिका (२०१६) लखनऊ : उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान, पृष्ठ13) [3] Archived 2020-09-25 at the वेबैक मशीन
- छत्रपति शाहूजी महाराज यूनिवर्सिटी, कानपुर विश्वविद्यालय में एम. ए. हिंदी की परीक्षा में सर्वप्रथम आने वाले विद्यार्थी को प्रतिवर्ष उनके नाम का स्वर्ण पदक दिया जाता है।
इन्हे भी देखें
संपादित करेंसन्दर्भ
संपादित करें- ↑ केशव के काव्य का शैलीवैज्ञानिकअध्ययन/ प्रणव शर्मा (2009), दिल्ली: वाणी प्रकाशन पृष्ठ 112, 117 केशव के काव्य का शैलीवैज्ञानिक अध्ययन (पृष्ठ ११२)
- ↑ आधुनिक गद्य संग्रह (1979) प्रयाग: हिंदी साहित्य सम्मेलन पृष्ठ 156, [1]
- ↑ ' डॉ प्रेम नारायण शुक्ल नहीं रहे', स्वतंत्र भारत. (समाचार पत्र), कानपुर, रविवार , १३ जनवरी, १९९१ पृष्ठ 1
- ↑ सूर सौरभ निवेदन
- ↑ बच्चन पत्रों के दर्पण में / [सम्पादक,] रामनिरंजन परिमलेन्दु (2009) दिल्ली :वाणी प्रकाशन, पृष्ठ 8-9 बच्चन : पत्रों के दर्पण में (पृष्ठ ८)
- ↑ आचार्य मुंशीराम शर्मा" सोम" का साहित्य: संवेदना और शिल्प / रानी अग्रवाल पृष्ठ १७-१८ [2]
- ↑ 'गुरु की पुण्यतिथि पर शिष्य की आत्मांजलि' , आज (समाचार पत्र) , कानपुर, 13 जनवरी 1991 पृष्ठ 2