तख़्त-ए-ताऊस (फ़ारसी: تخت طاووس, अनुवाद. मयूर सिंहासन) वह प्रसिद्ध सिंहासन है जिसे मुग़ल बादशाह शाह जहाँ ने बनवाया था। पहले यह आगरे के क़िले में रखा था। वहाँ से इसे दिल्ली के लाल क़िले में ले जाकर रख दिया गया। इसका नाम 'मयूर सिंहासन' इसलिए पड़ा क्योंकि इसके पिछले हिस्से में दो नाचते हुए मोर दिखाए गए हैं।1739 के आक्रमण के समय, अफ़शारी ईरान के सम्राट नादिर शाह ने मयूर सिंहासन को लूट कर ईरान ले गया।

मयूर सिंहासन पर आसीन शाह जहाँ का चित्र

आकार और बनावट

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बादशाह शाह जहाँ ने ताज-पोशी के बाद अपने लिए इस बेशक़ीमती सिंहासन को तैयार करवाया था। इस सिंहासन की लम्बाई तेरह गज़, चौड़ाई ढाई गज़ और ऊँचाई पाँच गज़ थी। यह छह पायों पर स्थापित था जो सोने के बने थे। सिंहासन तक पहुँचने के लिए तीन छोटी सीढ़ियाँ बनाई गयी थी, जिनमें दूरदराज के देशों से मंगवाए गए कई क़ीमती जवाहरात जुड़े थे। दोनों बाज़ुओं पर दो ख़ूबसूरत मोर, चोंच में मोतियों की लड़ी लिये, पङ्ख पसारे, छाया करते नज़र आते थे और दोनों मोरों के सीने पर लाल माणिक जुड़े हुए थे। पीछे की तख़्ती पर क़ीमती हीरे जड़े हुए थे जिनकी क़ीमत लाखों रुपए थीं। इस सिंहासन को बनाने में कुल एक करोड़ रुपए ख़र्च किये गए थे। जब नादिर शाह ने दिल्ली पर आक्रमण किया तो दिल्ली की सारी धन-दौलत समेटने के समेत, इस सिंहासन तख़्त-ए-ताऊस से हीरे-जवाहरात (मणि) को लूट कर ले गया। बाद में सिख इस को अमृतसर ले आए। बाद में इस सिंहासन को लूट कर अंग्रेज़ ले गए। आज यूनाइटेड किंगडम की शोभा बढ़ा रहे हैं।

इन्हें भी देखें

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बाहरी कड़ियाँ

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