तुरतुरिया
छत्तीसगढ़ अपनी पुरातात्विक सम्पदा के कारण आज भारत ही नहीं विश्व में भी अपनी एक अलग पहचान बना चुका है। यहां के 15000गांवो में से 1000ग्रामो में कही न कही प्राचीन इतिहास के साक्ष्य आज भी विद्यमान है जो कि छत्तीसगढ़ के लिए एक गौरव की बात है। इसी प्रकार का एक प्राकृतिक एवं धार्मिक स्थल रायपुर जिला से 84 किमी एवं बलौदाबाजार जिला से 29 किमी दूर कसडोल तहसील]] से 22 किमी दूर प०ह्०न्० ४ बोरसी से ५किमी दूर तथा खुड़मुड़ी से 3 किमी.और् सिरपुर से 23 किमी की दूरी पर स्थित है जिसे तुरतुरिया के नाम से जाना जाता है। उक्त स्थल को सुरसुरी गंगा के नाम से भी जाना जाता है। यह स्थल प्राकृतिक दृश्यो से भरा हुआ एक मनोरम स्थान है जो कि पहाडियो से घिरा हुआ है। इसके समीप ही बारनवापारा अभ्यारण भी स्थित है। तुरतुरिया बहरिया नामक गांव के समीप बलभद्री नाले पर स्थित है। जनश्रुति है कि त्रेतायुग में महर्षि वाल्मीकि का आश्रम यही पर था और लवकुश की यही जन्मस्थली थी।[1]
इस स्थल का नाम तुरतुरिया पडने का कारण यह है कि बलभद्री नाले का जलप्रवाह चट्टानो के माध्यम से होकर निकलता है तो उसमे से उठने वाले बुलबुलों के कारण तुरतुर की ध्वनि निकलती है। जिसके कारण उसे तुरतुरिया नाम दिया गया है। इसका जलप्रवाह एक लम्बी संकरी सुरंग से होता हुआ आगे जाकर एक जलकुंड में गिरता है जिसका निर्माण प्राचीन ईटों से हुआ है। जिस स्थान पर कुंड में यह जल गिरता है वहां पर एक गाय का मोख बना दिया गया है जिसके कारण जल उसके मुख से गिरता हुआ दृष्टिगोचर होता है। गोमुख के दोनो ओर दो प्राचीन प्रस्तर की प्रतिमाए स्थापित है जो कि विष्णु जी की है इनमे से एक प्रतिमा खडी हुई स्थिति में है तथा दूसरी प्रतिमा में विष्णुजी को शेषनाग पर बैठे हुए दिखाया गया है। कुंड के समीप ही दो वीरो की प्राचीन पाषाण प्रतिमाए बनी हुई है जिनमे क्रमश: एक वीर एक सिंह को तलवार से मारते हुए प्रदर्शित किया गया है तथा दूसरी प्रतिमा में एक अन्य वीर को एक जानवर की गर्दन मरोडते हुए दिखाया गया है। इस स्थान पर शिवलिंग काफी संख्या में पाए गए हैं इसके अतिरिक्त प्राचीन पाषाण स्तंभ भी काफी मात्रा में बिखरे पडे है जिनमे कलात्मक खुदाई किया गया है। इसके अतिरिक्त कुछ शिलालेख भी यहां स्थापित है। कुछ प्राचीन बुध्द की प्रतिमाए भी यहां स्थापित है। कुछ भग्न मंदिरो के अवशेष भी मिलते हैं। इस स्थल पर बौध्द, वैष्णव तथा शैव धर्म से संबंधित मूर्तियो का पाया जाना भी इस तथ्य को बल देता है कि यहां कभी इन तीनो संप्रदायो की मिलीजुली संस्कृति रही होगी। ऎसा माना जाता है कि यहां बौध्द विहार थे जिनमे बौध्द भिक्षुणियो का निवास था। सिरपुर के समीप होने के कारण इस बात को अधिक बल मिलता है कि यह स्थल कभी बौध्द संस्कृति का केन्द्र रहा होगा। यहां से प्राप्त शिलालेखो की लिपि से ऎसा अनुमान लगाया गया है कि यहां से प्राप्त प्रतिमाओ का समय 8-9 वी शताब्दी है। आज भी यहां स्त्री पुजारिनो की नियुक्ति होती है जो कि एक प्राचीन काल से चली आ रही परंपरा है। पूष माह में यहां तीन दिवसीय मेला लगता है तथा बडी संख्या में श्रध्दालु यहां आते हैं। धार्मिक एवं पुरातात्विक स्थल होने के साथ-साथ अपनी प्राकृतिक सुंदरता के कारण भी यह स्थल पर्यटको को अपनी ओर आकर्षित करता है। ऊपर पहाड़ी में काली माता का मंदिर विराजमान हैं। मान्यता है की श्रद्धालुवों की मन्नतें पूरी की जाती है और बकरे की बलि दी जाती है। कुछ दूर बाघ गुफा भी मौजूद है। पहले यहां बाघ शयन करने को आते थे। जो अभी मूर्तियां स्थापित कर दी गई है। [[चित्र:
तुरतुरिया के रामायणकालीन इतिहास को देखते हुए राज्य सरकार द्वारा तुरतुरिया को राम वन गमन पथ हेतु नामांकित किया गया है।[2] राम वन गमन पथ, केंद्र एवं राज्य सरकारों की एक बहूद्देशीय पहल है जिसके अंतर्गत पूरे भारत में 248 स्थानों को चिन्हित किया गया है, जहाँ श्री राम नें अपने 14 वर्ष के वनवास में निवास किया था।[3] इस योजना के अंतर्गत तुरतुरिया को धार्मिक पर्यटन स्थल के रूप मे विकसित किया जाएगा।
इन्हें भी देखें
संपादित करेंबाहरी कड़ियाँ
संपादित करें- ↑ "Birthplace of Luv-Kush Turturiya area of Chhattisgarh to be developed as eco-tourism spot: Ram Van Gaman Path | Chhattisgarh News". world360news.com. मूल से 29 मार्च 2023 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2022-05-09.
- ↑ "Birthplace of Luv-Kush Turturiya area of Chhattisgarh to be developed as eco-tourism spot: Ram Van Gaman Path | Chhattisgarh News". world360news.com. मूल से 29 मार्च 2023 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2022-05-09.
- ↑ "Ram Van Gaman Path Explainer: क्या है राम वन गमन पथ जहां पड़े श्री राम के पग, जानिए सबकुछ". Navbharat Times. अभिगमन तिथि 2022-05-09.