तेभागा आंदोलन
तेभागा आंदोलन बंगाल का प्रसिद्ध उत्तेजक किसान आंदोलन था। सन् 1946 ई. में इस आंदोलन में किसानों ने 'फ्लाइड कमीशन' की सिफ़ारिश के अनुरूप लगान की दर को घटाकर एक तिहाई करने की माँग की थी। इस आंदलन के संचालक 'कंपाराम सिंह' तथा 'भवन सिंह चड्डा' थे।
शीतयुद्ध तथा ब्रिटिश के खिलाफ किसान आंदोलन का भाग | |||||
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योद्धा | |||||
बंगाल | भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी
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सेनानायक | |||||
चारु मजुमदार कंसारी हलदर ईला मित्रा मोनी सिंह बिष्णु चट्टोपाध्याय एम.ए. रसूल मोनी गुहा हाजी मोहम्मद दानेश सुशील सेन सुबोध रॉय गणेश दास अबानी लहिरी गुरुदास तालुकदार समर गांगुली बिमोला मंडल सुधेर मुखर्जी सुदीपा सेन मोनी कृष्णा सेन बूड़ी मा (বুড়ি মা) नियामत अली |
इतिहास
संपादित करेंउस समय बँटाईदारों ने अपनी फसल का आधा हिस्सा जमींदारों को देने का अनुबंध किया था। तेभागा (तिहाई हिस्सा) आंदोलन की माँग ज़मींदारों के हिस्से को घटाकर एक तिहाई करने की थी।[1] कई क्षेत्रों में आंदोलन हिंसक हो गए जिसके कारण जमींदार ग्रामीण इलाकों को किसान सभा के हाथों में छोड़कर चले गए। 1946 में बँटाईदारों ने दावा किया कि वे केवल एक-तिहाई का भुगतान करेंगे तथा बँटवारे से पहले फ़सल उनके गोदामों में रहेगी न कि जोतदारों के गोदामों में। बँटाईदारों को इस तथ्य से बल मिला कि बंगाल भूमि राजस्व आयोग ने सरकार को अपनी रिपोर्ट में यह सिफ़ारिश पहले ही भेज दी थी। आंदोलन के परिणामस्वरूप जोतदारों और बँटाईदारों के बीच संघर्ष हुआ। आंदोलन की प्रतिक्रियास्वरूप प्रांत में मुस्लिम लीग मंत्रालय ने बरगदरी अधिनियम शुरू किया। उसमें प्रावधान था कि जमींदारों को दी जाने वाली फ़सल का हिस्सा कुल फ़सल के एक तिहाई तक सीमित होगा।[2] हालाँकि यह पूरी तरह से लागू नहीं किया गया था। बाढ़ आयोग के नाम से लोकप्रिय बंगाल भूमि राजस्व आयोग ने बँटाईदारों के पक्ष में सिफ़ारिश की।
इन्हें भी देखें
संपादित करेंसन्दर्भ
संपादित करें- ↑ अशोक मजूमदार (2011). द तेभागा मूवमेंट : पॉलिटिक्स ऑफ़ पीज़ैंट इन बंगाल 1946-1950. आकर बुक्स. पृ॰ 13. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-9350021590.
- ↑ "डिस्ट्रिक्ट ह्यूमन डेवेलपमेंट रिपोर्ट: साउथ 24 परगनास". चैप्टर 1.2, साउथ 24 परगनास इन हिस्टॉरिकल पर्सपेक्टिव, पेजेस 7-9. विकास और योजना विभाग, पश्चिम बंगाल सरकार, 2009. मूल से 5 अक्तूबर 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 3 नवंबर 2019.