ददरेवा
ददरेवा भारतीय राज्य राजस्थान के चूरू जिले में स्थित एक गाँव है। यह गांव हिसार-बीकानेर राजमार्ग पर सादुलपुर और तारानगर के मध्य स्थित है। भारत के महारजिस्ट्रार एवं जनगणना आयुक्त कार्यालय के आंकड़ों के अनुसार सन् 2011 में हुई जनगणना के मुताबिक इस गांव के कुल परिवारों की संख्या 1387 है। ददरेवा की कुल जनसंख्या 7199 है, जिसमें पुरुषों की संख्या 3708 और महिलाओं की संख्या 3491 है।[2]
ददरेवा | |
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गाँव | |
देश | भारत |
राज्य | राजस्थान |
जिला | चुरु |
जनसंख्या (2011) | |
• कुल | 7,199 |
भाषा | |
• आधिकारिक | [[राजस्थानी, हिन्दी]] |
समय मण्डल | आईएसटी (यूटीसी+5:30) |
पिनकोड | 331023 |
दूरभाष कोड | 01559 |
वाहन पंजीकरण | RJ-10 |
स्थानीय प्रशासन
संपादित करेंभारत के संविधान और पंचायती राज अधिनियम के तहत ददरेवा गांव का स्थानीय प्रशासन गांव के सरपंच के तहत है। सरपंच गांव के मतदाताओं द्वारा चुना गया गया जन-प्रतिनिधि है जो ग्राम पंचायत के जरिए गांव के संसाधनों और विकास कार्यों की देखरेख करता है। सरपंच को पंचायती राज अधिनियम के तहत सीमित कानूनी अधिकार भी प्राप्त हैं।
विवरण | कुल संख्या | पुरुष | महिला |
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परिवारों की कुल संख्या | 1,387 | ||
जनसंख्या | 7,199 | 3,708 | 3,491 |
धार्मिक स्थल
संपादित करें1.हिन्दुओं के प्रसिद्ध गोगाजी पीर का जन्म ददरेवा में हुआ।[3] 2.दादा कायम खाँ का जन्म ददरेवा मे हुआ था। 3.ददरेवा मे गोरख गंगा तालाब (ढाब) विख्यात है।
ददरेवाधाम जाहरवीर गोगाजी का जन्मस्थान है, जो राजस्थान के चुरू जिले की राजगढ़ तहसील में स्थित है।गोगादेव की जन्मभूमि पर आज भी उनके घोड़े का अस्तबल है और सैकड़ों वर्ष बीत गए, लेकिन उनके घोड़े की रकाब अभी भी वहीं पर विद्यमान है। उक्त जन्म स्थान पर गुरु गोरक्षनाथ का आश्रम भी है और वहीं है गोगाजी की घोड़े पर सवार मूर्ति । भक्तजन इस स्थान पर कीर्तन करते हुए आते हैं और जन्म स्थान पर बने मंदिर पर मत्था टेककर मन्नत माँगते हैं।
यहाँ पर सभी धर्म और सम्प्रदाय के लोग मत्था टेकने के लिए दूर-दूर से आते हैं । नाथ परम्परा के साधुओं के लिए यह स्थान बहुत महत्व रखता है। दूसरी ओर कायमखानी मुस्लिम समाज के लोग उनको जहरपीर के नाम से पुकारते हैं तथा उक्त स्थान पर मत्था टेकने और मन्नत माँगने आते हैं। इस तरह यह स्थान हिंदू और मुस्लिम एकता का प्रतीक है।मध्यकालीन महापुरुष गोगाजी हिंदू, मुस्लिम, सिख संप्रदायों की श्रद्घा अर्जित कर एक धर्मनिरपेक्ष लोकदेवता के नाम से पीर के रूप में प्रसिद्ध हुए।
जातरु ददरेवा आकर न केवल धोक आदि लगाते हैं बल्कि वहां अखाड़े (ग्रुप) में बैठकर गुरु गोरक्षनाथ व उनके शिष्य जाहरवीर गोगाजी की जीवनी के किस्से अपनी-अपनी भाषा में गाकर सुनाते हैं। प्रसंगानुसार जीवनी सुनाते समय वाद्ययंत्रों में डैरूं व कांसी का कचौला विशेष रूप से बजाया जाता है। इस दौरान अखाड़े के जातरुओं में से एक जातरू अपने सिर व शरीर पर पूरे जोर से लोहे की सांकले मारता है। मान्यता है कि गोगाजी की संकलाई आने पर ऐसा किया जाता है।
लोक देवता जाहरवीर गोगाजी की जन्मस्थली ददरेवा में भादवा मास के दौरान लगने वाले मेले मे श्रद्धालुओं की संख्या काफी बढ़ जाती है। मेले में राजस्थान के अलावा दिल्ली, उत्तराखंड, पंजाब, हरियाणा, उत्तरप्रदेश, मध्य प्रदेश, हिमाचल, महाराष्ट्र, बिहार व गुजरात सहित विभिन्न प्रांतों से श्रद्धालु पहुंचते हैं।
सन्दर्भ
संपादित करें- ↑ "ददरेवा का गूगल नक्शा". google.co.in. अभिगमन तिथि 2017-08-06.
- ↑ "ददरेवा की जनसंख्या". census2011.co.in. मूल से 6 अगस्त 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2017-08-06.
- ↑ "Gogaji Jaharveer of Churu Rajasthan born in Dadrewa Village History." hindumythology. मूल से 2 अगस्त 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2 अगस्त 2017.
साबीर खौखर
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