दमोह
दमोह (Damoh) भारत के मध्य प्रदेश का एक मुख्य शहर है। यह मध्य प्रदेश के प्रमुख शहरों में से एक है। यह मध्य प्रदेश में पांचवां सबसे बड़ा शहरी समूह है। यह जागेश्वरनाथ महादेव मंदिर (बांदकपुर), सिंगरामपुर झरना, सिंगरगढ़ किला, नोहलेश्वर मंदिर, नोहटा, आदि के लिए भी जाना जाता है। यह ज़िले का मुख्यालय भी है। राष्ट्रीय राजमार्ग ३४ यहाँ से गुज़रता है।[1][2]
दमोह Damoh | |
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ऊपर से, बाएँ से दाएँ: वर्धमान झील-कुंडलपुर के जैन मंदिर, बडे बाबा मंदिर का पूरा मंदिर जो निर्माणाधीन और क्लॉक टॉवर (घंटाघर) है। | |
निर्देशांक: 23°50′N 79°26′E / 23.84°N 79.44°Eनिर्देशांक: 23°50′N 79°26′E / 23.84°N 79.44°E | |
ज़िला | दमोह ज़िला |
प्रान्त | मध्य प्रदेश |
देश | भारत |
ऊँचाई | 595 मी (1,952 फीट) |
जनसंख्या (2011) | |
• कुल | 1,25,101 |
भाषाएँ | |
• प्रचलित | हिन्दी |
समय मण्डल | भारतीय मानक समय (यूटीसी+5:30) |
पिनकोड | 470661 |
दूरभाष कोड | 07812 |
वाहन पंजीकरण | MP-34 |
वेबसाइट | www |
दमोह भारत का एक महत्वपूर्ण पर्यटन, संस्कृति, औद्योगिक, व्यापार केंद्र और आर्थिक केंद्र है और व्यापार और सेवाओं में आसानी के लिए भी दमोह भारत का सबसे अच्छा शहर है।[3]
हीडलबर्ग सीमेंट, नरसिंहगढ़ में भारत का सबसे बड़ा सीमेंट प्लांट और इमलाई क्षेत्र में मैसूर सीमेंट्स लिमिटेड दमोह में स्थित लोकप्रिय उद्योग हैं और रोजगार के लिए महत्वपूर्ण हैं।[4]
विवरण
संपादित करेंयह बुंदेलखंड अंचल का शहर है। हिन्दू पौराणिक कथाओं के राजा नल की पत्नी दमयंती के नाम पर ही इसका नाम दमोह पड़ा। अकबर के साम्राज्य में यह मालवा सूबे का हिस्सा था। परतुं जानकारों एवं इतिहासकारों ने लिखा है कि यह क्षेत्र पहले दमोह नगर के साथ आस-पास हटा, मड़ियादो, बटियागढ़ आदि क्षेत्र गोंड़वाना साम्राज्य के महान शक्तिशाली सम्राट संग्राम शाह के 52 गढ़ों में शामिल थे फिर उसके बाद उनकी पुत्र बधु महाराज दलपति शाह मरावी वंश की पत्नी विश्व की महान वीरांगना महारानी दुर्गावती मरावी गोंड़वाना राज्य में शामिल थे। बाद में अकबर के सेनापति आसफ खां से युद्ध के दौरान 16 वे युद्ध में परास्त हो गई थी और यह गोंड़वाना की क्षति के साथ मुगल साम्राज्य में शालिम हो गया था। वर्तमान में आज भी गोंड़वाना साम्राज्य के किले ,वाबड़ी, मंदिर, तालाब, कुआं,महल आदि जीवित हैं जो की गोंड़वाना काल के इतिहास के जीते जागते उदाहरण देखे जा सकते हैं और यहीं जिले मुख्यालय से तकरीबन 35 किमी दुरी पर [लोधी] वंश का राजा तेजीसिंह का गढ़ था जिसका नाम उन्ही लोधी राजा तेजीसिंह के नाम पर रखा गया था। जो की आज तेजगढ़ के नाम से प्रसिद्ध है यह दमोह से जबलपुर पाटन रोड़ पर स्थित है। लोधी राजा तेजीसिंह द्वारा तेजगढ़ नगर को बसाया था और उन्ही के द्वारा गढ़ किलों एवं मंदिरों का निर्माण करवाया गया। जिसमें प्राचीन गणेश मंदिर व किला के हनुमान मंदिर प्रसिद्ध हैं, जो आज भी देखने की मिलते हैं और वहां पर आज भी ग्रामीणों द्वारा पूजा पाठ की जाती है। वहीं अधिकांश प्राचीन जैन मंदिरों का जीणोंधार स्थानीय जैन समाज द्वारा कराया गया है।
दमोह के अधिकतर प्राचीन मंदिरों को मुग़लों ने नष्ट कर दिया तथा इनकी सामग्री एक क़िले के निर्माण में प्रयुक्त की गई। इस नगर में शिव, पार्वती एवं विष्णु की मूर्तियों सहित कई प्राचीन जैन प्रतिमाएँ हैं। दमोह में दो पुरानी मस्जिदें,कई घाट और जलाशय हैं। दमोह का 14 वीं सदी में मुसलमानों के प्रभाव से महत्त्व बढ़ा और यह मराठा प्रशासकों का केन्द्र भी रहा। ऐतिहासिक नगर दमोह के आस-पास का इलाका पुरातत्त्व की दृष्टि से समृद्ध है, जहाँ छित्ता एवं रोंड जैसे प्राचीन स्थल हैं। जिला पश्चिम में सागर, दक्षिण में नरसिंहपुर एवं जबलपुर, उत्तर में छतरपुर तथा पूर्व में पन्ना और कटनी से घिरा है।
दमोह जिले का सबसे प्रसिदध मंदिर जागेशवर धाम बांदकपुर है जिसे इलाके में ज्योतिर्लिंग की तरह प्रतिष्ठा प्रापत है। इसे मराठा दीवान चांदुरकर ने बनवाया था .इसकी कहानी बहुत रोचक है कहते हैं कि दीवान चांदुरकर शिकार पर निकले थे वहां एक स्थान पर उनका घोडा बारंबार उछल रहा था. वहीं विश्राम में उनको स्वप्न में उनको भगवान शिव की प्रतिमा होने की जानकारी मिली .दीवान ने वहां खुदाई करायी तो स्वयंभू शिवलिंग दिखा। दीवान चादुंरकर इसे दमोह में अपने निवास स्थान के समीप लाना चाहते थे .इसके लिए दमोह में सिविल वार्ड में एक मंदिर बनवाया गया . शिवलिंग असल में एक बडी चटटान से जुडा हुआ था इसलिए खुदाई के बाद भी वहीं से अलग नहीं हुआ . तब वहीं जागेश्वर मंदिर बनाया गया .जबकि दमोह में बने मंदिर में मराठों के कुलदैवत श्री राम की मूर्ति बिठाकर राममंदिर बना दिया गया. वहां आज भी मराठी पदधति से ही श्री राम की पूजा होती है।
संग्रामपुर की घाटी में पाषाण युगीन मानव के साक्ष्य प्राप्त हुए है। वीरांगना दुर्गावती अभ्यारण लगभग 24 किलो वर्ग मीटर में फैला है इस अभ्यारण की स्थापना 1977 में की गई. यहां पर प्रमुख रूप से तेंदुआ, जंगली सूअर, मगर, नीलगाय, मोर, सारस, आदि पाए जाते हैं।
शिक्षा
संपादित करेंविद्यालय
संपादित करें- केन्द्रीय विद्यालय
- महर्षि विद्या मन्दिर (BANDAKPUR)
- शास. उत्कृष्टता हा. से. स्कूल
- मिशन उ. मा. वि.
- सरस्वती उ.मा. वि
- जैन स्कूल दमोह
- सीएम राइस स्कूल दमोह
महाविद्यालय
संपादित करें- सरकारी पीजी महाविद्यालय
- शास. कमला नेहरू कालेज
- गुरू रामदास कालेज
- टाइम्स कालेज
- जे एल वर्मा लॉ कालेज
- विजय लाल कालेज
- एकलव्य यूनिवर्सिटी (OJSWINI INTITUTE PAR EXILANCE)
धार्मिक स्थल
संपादित करेंकुंडलपुर
संपादित करेंकुण्डलपुर में जैन धर्म के लिए एक ऐतिहासिक तीर्थ स्थल है। यह मध्य प्रदेश के दमोह जिले में दमोह शहर से 35 किलोमीटर की दूरी पर स्थित कुंडलगिरी में है। कुण्डलपुर में बैठे (पद्मासन) आसन में बड़े बाबा (आदिनाथ) की एक प्रतिमा है।
यहाँ से यातायात:
- सड़क मार्ग - यह सभी दिशाओं से सड़कों से जुड़ा हुआ है। कुंडलपुर के आस-पास के शहर हटा दमोह, सागर, छतरपुर, जबलपुर से नियमित बस सेवा है|
- एयरपोर्ट कुंडलपुर से लगभग 155 किलोमीटर की दूरी पर निकटतम हवाई अड्डा, जबलपुर है।
- रेल - कुंडलपुर तक पहुँचने के लिए निकटतम रेलवे स्टेशन से 37 किलोमीटर की दूरी पर दमोह रेलवे स्टेशन है।
नोहलेश्वर मंदिर (NOHTA)
संपादित करेंयह शिव मंदिर नोहटा गांव से 01 कि॰मी॰ की दूरी पर स्थित है। शिव को यहाँ महादेव एवं नोहलेश्वर के नाम से जाना जाता है। इसका निर्माण 950-1000 ई.वी के आस पास हुआ था। कुछ लोग के अनुसार इस मंदिर के निर्माण का काम चालुक्य वंष के कलचुरी राजा अवनी वर्मा की रानी ने कराया था। 10 वीं शताब्दी के कलचुरी साम्राज्य की स्थापत्य कला का एक बेजोड़ एंव महत्तवपूर्ण नमूना है नोहलेश्वर मंदिर। यह एक ऊचें चबूतरे पर बना है। इसमें पंचरथ, गर्भगृह, अन्तराल, मण्डप एवं मुख मण्डप आदि भाग है।
पर्यटन स्थल
संपादित करें- नरसिंहगढ़
- गिरि दर्शन
- जागेश्वरनाथ महादेव मंदिर (बांदकपुर) जिला-दमोह(म.प्र.)
- पुरातत्व संग्रहालय
- प्रसिद्ध बुन्देली महोत्सव (14 दिन)
गिरीदर्शन
संपादित करेंयह स्थान दमोह से जबलपुर राष्ट्रीय मार्ग पर स्थित हैं जो कि जबेरा से 05 कि॰मी॰ एंव सिंग्रामपुर से 07 कि॰मी॰ कि दूरी पर हरे-भरे जगंलो से घिरी पहाड़ी पर स्थित है। यह दो मंजिला रेस्ट हाऊस कम वाच टावर वन विभाग के द्वारा निर्मित है। यह स्थाप्तय कला का बेजोड़ नमूना है। मेन रोड से एक सकरी गली टेंक के किनारे से होती हुई रेस्ट हाऊस तक पहुचती है। यहाँ ठहरने के लिए रिजर्वेशन दमोह के डी.एफ.ओ ऑफिस से करवाया जा सकता हैं। यहाँ की छोटी पहाड़ी के रास्ते हरियाली और सुन्दर दृश्य देखे जा सकते है तथा ऊपर से उगते और ढलते सूरज के दृश्य आने वालो को बहुत लुभाते है। ये दृश्य रेस्ट हाऊस की छत से देखे जा सकते है। रात के समय यहाँ जंगली जानवर भी दिखाई देते है।
सिंगोरगढ़ का किला
संपादित करेंसिंग्रामुपर से करीब 06 कि.मी दूर ऐतिहासिक महत्व वाला सिंगोरगढ़ का किला स्थित है। यहाँ प्राचीन काल में एक सम्यता थी। राजा बाने बसोर ने एक बड़ा और मजबूत किला बनवाया था। और राजा गावे ने लम्बे समय तक यहाँ राज किया। 15 वीं शताब्दी के अंत में राजा दलपत शाह और उनकी रानी दुर्गावती यहाँ रहते थे। राजा दलपत शाह की मौत के बाद रानी ने अकबर की सेना के सेनापति आसिफ खान से युद्ध किया था। यहाँ एक तलाब भी है। जो कमल के फूलो से भरा है। यह एक आदर्श पिकनिक स्पॉट है।
निदान कुण्ड
संपादित करेंभैंसाघाट रेस्ट हाऊस से करीब 1/2 कि॰मी॰ दूर भैसा गांव से एक सड़क इस जलप्रपात के लिए जाती है। मुख्य सड़क से 01 कि॰मी॰ से एक जलधारा 100 फिट की ऊचांई से काली चट्टान से नीचे गिरती है। इसे निदान कुण्ड कहते है। जुलाई से अगस्त माह में इस जलप्रपात में पानी बहुतायत से होता है। अतः सामने से इसका नजारा अद्भुत होता है। सितम्बर एंव अक्ट
भौंरासा
संपादित करेंभौंरासा दमोह जिले का एक छोटा सा गांव है। यहा की आबादी लगभग 2500 है, यह दमोह से पश्चिम 18 km दूर है। आपको यदि भौंरासा जाने का सौभाग्य मिले तो आप दमोह से सागर रोड से जाये और बांसा से भौंरासा तक गयी 7 km सड़क से जायें। स्थानीय मान्यता है कि यहां स्वयं महाबली हनुमान जी निवास है और यहा आने के साथ ही लोगों का मन शांत हो जाता है। स्थानीय निवासीयों का कहना है कि पवन पुत्र हनुमान स्वयं इस गांव की रक्षा करते हैं, इसलिये यह गांव हिन्दु धर्म का आस्था स्थल है यहां लोग कई मीलो की दूरी तय करके अपनी मनोकामनायें पूरी करते हैं। रोज सुबह और शाम घंटियों की झनझनाहट से गूंज उठता है । यहां पर रोज एक से डेड़ घन्टे की भव्य आरती होती है जिसका आनंद उठाने लोग मीलो दूर से आते है और आस्थानुसार मनोकामनायें पूरी करतें हैं। गांव मे 2 तालाब है और चारो ओर सुन्दर बृक्ष हैं जो गांव की सुंदरता का अलग ही चित्र प्रदर्शित करते हैं।
जनसंख्या
संपादित करें2024 में दमोह शहर की वर्तमान अनुमानित जनसंख्या 175,000 है, जबकि दमोह मेट्रो की जनसंख्या 207,000 अनुमानित है। भारत की जनगणना की अनंतिम रिपोर्ट के अनुसार, 2011 में दमोह की जनसंख्या 125,101 है। [5]
सन्दर्भ
संपादित करें- ↑ "Inde du Nord: Madhya Pradesh et Chhattisgarh Archived 2019-07-03 at the वेबैक मशीन," Lonely Planet, 2016, ISBN 9782816159172
- ↑ "Tourism in the Economy of Madhya Pradesh," Rajiv Dube, Daya Publishing House, 1987, ISBN 9788170350293
- ↑ "Tourist Places".
- ↑ "Mycem Cement".
- ↑ "Damoh Population 2024".