दारा प्रथम [2] (पुरातन फ़ारसी: 𐎭𐎠𐎼𐎹𐎺𐎢𐏁, दारयवहुश, लातिन: Dārayavaʰuš, नवीन फ़ारसी: داریوش दार्यूश, यूनानी : Δαρεῖος दारेयोस, इब्रानी: דָּֽרְיָוֶשׁ दारायावेस‎, c. 550–486 ईसा पूर्व) प्राचीन ईरान के हख़ामनी वंश का प्रसिद्ध शासक था जिसे इतिहास में धार्मिक सहिष्णुता तथा अपने शिलालेखों के लिए जाना जाता है।[3] वह फ़ारसी साम्राज्य के संस्थापक कुरूश (साइरस) के बाद हख़ामनी वंश का सबसे प्रभावशाली शासक माना जाता है। कम्बोजिया के मरने के बाद बरदिया नामक माग़ी ने सिंहासन के लिए दावा किया था। छः अन्य राजपरिवारों के साथ मिलकर उसने बरदिया को मार डाला और इसके बाद उसका राजतिलक हुआ। उसने अपने शासन काल में पश्चिमी ईरान के बीसतून में एक शिलालेख ख़ुदवाया था जिसे प्राचीन ईरान के इतिहास का एक महत्वपूर्ण दस्तावेज़ माना जाता है।

दारा प्रथम
𐎭𐎠𐎼𐎹𐎺𐎢𐏁
बीसतून में दार्यूश महान् का राहत पत्थर
हख़ामनी साम्राज्य का शहंशाह
शासनावधि29 सितम्बर 522 ई.पू. – अक्टूबर 486 ई.पू.
राज्याभिषेकPasargadae
पूर्ववर्तीBardiya
उत्तरवर्तीक्षयार्ष
Pharaoh of Egypt
Reignसितम्बर 522 ई.पू. – अक्टूबर 486 ई.पू.
पूर्ववर्तीBardiya
उत्तरवर्तीक्षयार्ष साँचा:Ancient Egyptian royal titulary case[1]
जन्मल. 550 ई.पू.
निधनअक्टूबर 486 ई.पू.
(उम्र लगभग 64 वर्ष)
समाधि
जीवनसंगी
संतान
पूरा नाम
Dārayava(h)uš
राजवंशAchaemenid
पिताHystaspes
माताRhodogune or Irdabama
धर्मIndo-Iranian religion
(possibly Zoroastrianism)

उसके शासन काल में हख़ामनी साम्राज्य मिस्र से सिन्धु नदी तक फैल गया था।[4] उसने यूनान पर कब्जा किया और उत्तर में शकों से भी युद्ध लड़ा। उसने इतने बड़े साम्राज्य में एक समान मुद्रा चलाई और आरामाईक को राजभाषा करार दिया। उसने पर्सेलोलिस तथा पसरागेड जैसी जगहों पर महत्वपूर्ण निर्माण कार्य भी शुरु करवाया जो सदियों तक हख़ामनी स्थापत्य की पहचान बने रहे।

दारा प्रथम (ई.पू. ५२२ से ४८६ ई.पू.) ईसवी पूर्व ५२१ में कम्बूज़िय (Cambyses) के बाद हिस्टास्पीस (Hystaspeas) का लड़का दार्यूश (Darius) या दारा परशिया की गद्दी पर बैठा। उसे प्रारंभ में जबरदस्त विद्रोहियों का सामना करना पड़ा। विद्रोहियों में सबसे प्रबल गौमता (Gaumata) नाम का व्यक्ति था, जिसने ईरान के सिंहासन पर अधिकार कर लिया था। लेकिन दारा के सहायकों ने शीघ्र ही गौमता को मारकर खत्म कर दिया (ई.पू. ५२१)। परशिया के अनेक प्रांतों ने भी दारा के खिलाफ विद्रोह कर स्वतंत्र होने का प्रयत्न किया।[5] एलाम, बैबीलोनिया, मीडिया, आर्मीनिया, लीडिया, एवं मिस्र तथा परशिया तक में विद्रोह हुए। लेकिन साहसी और प्रतिभाशाली दारा ने समस्त विद्रोहियों को कुचलकर पारसीक साम्राज्य को पुन: सुदृढ़ कर दिया। लगभग तीन वर्ष उसे विद्रोह दबाने में लगे (ई.पू. ५१८); इसके बाद फारस के विस्तृत साम्राज्य में शांति स्थापित हो गई।

 
दारा का साम्राज्य ई.पू. ५२२ से ४८६ ई.पू.

दारा के साम्राज्य में २० प्रान्त थे। प्रान्त का शासक सात्राप (अर्थात् क्षत्रप) कहलाता था। दारा प्रथम की गणना महान विजेताओं में की जाती है। उसने भारत पर भी चढ़ाई की थी और पंजाब तथा सिंध का बहुत सा भाग अपने अधिकार में कर लिया था (ई.पू. ५१२)। अत: उसके २० प्रान्तों में पंजाब और सिंध का क्षेत्र भी अनुर्भूक्त था। भारतीय प्रांत से ईरान को राजस्व के रूप में अमित सोना मिलता रहा। दारा के यूनानी सेनापति स्काईलक्स (Scylax) ने सिंधु से भारतीय समुद्र में उतरकर अरब और मकरान के तटों का पता लगाया था। उसकी मुख्य राजधानियाँ सूसा, पर्सीपौलिस, इकबतना (हमदान) और बैबीलोन थीं। वह ज़रयुस्त्री धर्म का माननेवाला था।

दूरस्थ प्रांतों से संबंध बनाए रखने के लिए साम्राज्य भर में सुदंर विस्तृत सड़कें बनी हुई थीं। नील नदी से लेकर लाल समुद्र तक एक नहर भी बनी हुई थी। दारा के विरुद्ध एशिया माइनर के आयोनियन यूनानियों ने विद्रोह किय। लेकिन यह विद्रोह दबा दिया गया। विद्रोह के केंद्र माइलेतस (Miletus) नगर पर कब्जा करने के बाद वहाँ के समस्त पुरुषों को ईरानियों ने कत्ल कर दिया और स्त्रियों तथा बच्चों को बंदी बनाकर ले गए (४९९ से ४९४ ई.पू.)।

एशिया माइनर के यूनानियों को एथेंस के यूनानियों ने विद्रोह के लिय भड़काया था। अत: ई.पू. ४९० में, दारा ने एथेंस को ध्वस्त करने के लिए एक विशाल सेना लेकर यूनान पर चढ़ाई कर दी। लेकिन इस आक्रमण में दारा को सफलता नहीं मिली और माराथॉन के युद्ध में (ई.पू. ४९०) पराजित होकर ईरानियों को वापस लौट जाना पड़ा। दारा माराथॉन की हार को नहीं भूला; और बदला लेने के लिए वह फिर जोरदार तैयारी में लग गया। लेकिन तैयारी के बीच ही ई.पू. ४८५ में उसकी मृत्यु हो गई।[6]

इन्हें भी देखिए

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  1. Jürgen von Beckerath, Handbuch der ägyptischen Königsnamen (= Münchner ägyptologische Studien, vol 46), Mainz am Rhein: Verlag Philipp von Zabern, 1999. ISBN 3-8053-2310-7, pp. 220–21.
  2. Āra. Pī Siṃha (2010). Viśva vikhyāta yuddha. Atmaram & Sons. पपृ॰ 23–. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-89356-15-6.
  3. "The Arya in Iran".
  4. "संग्रहीत प्रति". मूल से 25 सितंबर 2013 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 18 अप्रैल 2014.
  5. कूक, जे॰एम॰ (1985). "The Rise of the Achaemenids and Establishment of their Empire". The Median and Achaemenian Periods. कैम्ब्रिज हिस्ट्री ऑफ़ ईरान (अंग्रेज़ी में). 2. लंदन: कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय प्रेस.
  6. शाहबाज़ी, शापुर (1996). "Darius I the Great". Encyclopedia Iranica [ईरान का विश्वकोश]. 7. न्यूयॉर्क: कोलम्बिया विश्वविद्यालय. मूल से 29 अप्रैल 2011 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 18 अप्रैल 2014. नामालूम प्राचल |langauge= की उपेक्षा की गयी (|language= सुझावित है) (मदद)