दार्शनिक मानवशास्त्र
दार्शनिक मानवशास्त्र (philosophical anthropology) अथवा मानवशास्त्रीय दर्शन (anthropological philosophy)[1][2] मानव के लिए तत्त्वमीमांसा और घटनाविज्ञान के प्रश्नों को समझने वाला संकाय है।[3]
दार्शनिक मानवशास्त्र और मानवशास्त्र का दर्शन अलग-अलग विषय हैं। मानवशास्त्र के दर्शन में मानवशास्त्रीय कार्य में अंतर्निहित दार्शनिक अवधारणाओं का अध्ययन किया जाता है।[4]
इतिहास
संपादित करेंप्लेटो ने मानव सार को आत्मा के साथ समझा। उनके अनुसार भौतिक शरीर उसकी जेल है जिससे आत्मा मुक्त होने की इच्छा रखती है। फीड्रस के अनुसार मृत्यु के बाद पुनर्जन्म के रूप में आत्मा एक शरीर से दूसरे शरीर में प्रवेश करती है। इस प्रकार प्लेटो ने मन-शरीर द्वैतवाद की अवधारणा दी।
अरस्तु ने मानव को शरीर, आत्मा और सार के युग्म के रूप में परिभाषित किया जिसे हीलोमोर्फिज्म (अर्थात् सृष्टिवाद) भी कहते हैं। मानव एक प्रकार का पशु है जिसे कुछ विशेष गुण अन्य जीवों की तुलना में बेहतर बनाते हैं। मानव तर्कसंगत आत्मा के साथ होता है। आत्मा कोई बाहरी अथवा असंगत वस्तु नहीं है बल्कि ये ऐसा विशेष तत्त्व है जो मानव शरीर के द्रव्यों को सुव्यवस्थित, संरचना और जीवन का रूप देता है। अरस्तु की आत्मा की अवधारणा को सैद्धान्तिक रूप में पेरी प्सिकिस (आत्मा के बारे में) में समझाया गया है। इसकी व्यावहारिक अवधारणा को पोलिटिक्स और निकोमेकियन नीतिशास्त्र में वर्णित किया गया है।[3]
ईसाई धर्म में शून्यतः सृष्टि की अवधारणा विकसित हुई जिसके अनुसार सभी जीव और पदार्थ ईश्वर की देन है। प्लेटो द्वारा परिभाषित आकाश मानव की शक्ति के बाहर की बात है और ये सभी ईश्वर द्वारा निर्मित हैं। समय की कल्पना एक रैखिक अवधारणा है जो चक्रिय रूप नहीं ले सकता। ईसाई धर्म में ईश्वर को अद्वितीय माना गया है। मानव और उस दिव्य पृकृति (सार) के सह-अस्तित्व को समझने के लिए मानव को निर्मित किया है।
सन्दर्भ
संपादित करें- ↑ Fikentscher (2004) pp.74, 89
- ↑ Cassirer (1944)
- ↑ अ आ Medzhidova, Nargiz (2022-12-15). "Comparative analysis of modern philosophical and anthropological concepts" (PDF). Metafizika Journal (रूसी में). 5 (4): 22–37. eISSN 2617-751X. OCLC 1117709579. आइ॰एस॰एस॰एन॰ 2616-6879. मूल (PDF) से 2023-01-28 को पुरालेखित.सीएस1 रखरखाव: तिथि और वर्ष (link)
- ↑ "Anthropology, the Philosophy of | Internet Encyclopedia of Philosophy".