दु:स्वप्न उस स्वप्न को कहते हैं जो सोने वाले वाले व्यक्ति पर भावनात्मक रूप से काफी शक्तिशाली नकारात्मक प्रतिक्रिया (आमतौर पर भय और/या दहशत) उत्पन्न कर सकता है। उस स्वप्न में खतरनाक परिस्थितियां, बेचैनी, मानसिक या शारीरिक त्रास शामिल हो सकते हैं। पीड़ित व्यक्ति आम तौर पर एक बेचैनी भरी मानसिक अवस्था के साथ जागते रहते हैं और काफी लंबी अवधि तक वापस सो पाने में असमर्थ रहते हैं।[1]

दी नाईटमेयर (1781) (डेट्रोइट इंस्टिट्यूट ऑफ आर्ट).दुःस्वप्न का अनुभव करने वाली महिला पर बैठे हुए इन्क्यूबस (शैतान) का चित्रण.

दु:स्वप्न के कारण शारीरिक (तकलीफदेह या असहज मुद्रा में सोना, बुखार होना) अथवा मानसिक (तनाव और चिंता) हो सकते हैं। सोने से ठीक पहले भोजन संभावित रूप से दु:स्वप्न को उत्पन्न कर सकता है क्योंकि यह शरीर की चयापचय तथा मस्तिष्क की गतिविधियों में वृद्धि करता है।[2]

कभी-कभार बुरे सपनों का आना आम बात है, लेकिन इनका बार-बार आना निद्रा को प्रभावित करके अनिद्रा को जन्म दे सकता है जिसके लिए चिकित्सा की आवश्यकता पड़ सकती है। रिकरिंग पोस्ट-ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर नाईटमेयर्स (किसी अप्रिय घटना/दुर्घटना के बाद बार-बार दु:स्वप्नों का प्रकट होना) पर इमेजरी रिहर्सल नामक तकनीक द्वारा काफी प्रभावी रूप से काबू पाया जा सकता है। हार्वर्ड के मनोवैज्ञानिक डीयरड्रे बैरेट की 1996 की पुस्तक ट्रॉमा एंड ड्रीम्स [3] में पहली बार वर्णित इमेजरी रिहर्सल चिकित्सा में पीड़ित व्यक्ति से उस दु:स्वप्न के एक वैकल्पिक और उसके ऊपर हावी होने वाले परिणाम के बारे में सोंचने और जागृत अवस्था में उस परिणाम का अभ्यास करने के लिए कहा जाता है और उसके बाद सोते समय उससे स्वयं को याद दिलाने के लिए कहा जाता है कि यदि वह दु:स्वप्न फिर से आये तो उसकी परिणति उसके द्वारा अभ्यास किये गए वैकल्पिक परिणाम के रूप में ही हो. शोध में पाया गया कि यह तकनीक न केवल अनिद्रा[4] और दु:स्वप्नों को कम करती है बल्कि दिन में प्रकट होने वाले PTSD के अन्य लक्षणों में भी सुधार करती है।[5]

मेडिकल जांच संपादित करें

कई अध्ययनों में पाया गया है कि लगभग तीन-चौथाई स्वप्न तथा उससे संबंधित भावनाएं नकारत्मक होती हैं।[6]

"दु:स्वप्न" की एक परिभाषा के अनुसार यह एक ऐसा स्वप्न है जिसके कारण आप अपने निद्रा चक्र के बीच में उठ जाएँ और भय जैसी नकारात्मक भावना का अनुभव करें. इस प्रकार की घटना औसतन महीने में एक बार घटित होती है। 5 वर्ष से कम आयु के बच्चों में ये आम नहीं हैं, लेकिन छोटे बच्चों में ये काफी आम हैं (25% बच्चे सप्ताह में कम से कम एक बार इनका अनुभव करते हैं), किशोरों में ये सबसे अधिक आम हैं और वयस्कों में कम आम हैं (25 से 55 वर्ष की आयु के बीच इसकी आवृत्ति लगभग एक-तिहाई घट जाती है).[6]

जागृत अवस्था में भयग्रस्त रहना, दु:स्वप्न के प्रकट होने से जुड़ा हुआ है।[6]

रोने अथवा कराहने/बड़बड़ाने की अपेक्षा, चिल्लाना दु:स्वप्नों का एक अधिक आम लक्षण है। दु:स्वप्न के बाद चिल्लाने या रोने की स्थिति 5 से 15 मिनट तक जारी रह सकती है।

इन्हें भी देखें संपादित करें

  • जागने का गलत एहसास
  • लोककथाओं में डायन
  • स्पष्ट स्वप्न
  • घोड़ा (लोककथाएं)
  • मोरा (पौराणिक कथाएं)
  • मोरोई (लोककथाएं)
  • रात्रिकालीन भय
  • दुःस्वप्न संबंधी विकार
  • नोकनित्सा
  • निद्रा संबंधी विकार
  • स्लीप परैलिसिस (निद्रा में गतिहीनता)

सन्दर्भ संपादित करें

  1. अमेरिकन साइकीऐट्रिक एसोसिएशन (2000), मानसिक विकार का नैदानिक और सांख्यिकी मैनुअल, चतुर्थ संस्करण, टीआर, पी. 631
  2. Stephens, Laura (2006). "Nightmares". http://web.archive.org/web/20070831193305/http://www.psychologytoday.com/conditions/nightmare.html. |journal= में बाहरी कड़ी (मदद)
  3. http://www.amazon.com/Trauma-Dreams-Deirdre-Barrett/dp/0674006909 Archived 2010-09-22 at the वेबैक मशीन बैरेट, डायड्री. (ईडी) ट्रॉम एंड ड्रीम्स. कैम्ब्रिज, एमए: हार्वर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस, 1996].
  4. Davis JL, Wright DC (2005). "Case series utilizing exposure, relaxation, and rescripting therapy: impact on nightmares, sleep quality, and psychological distress". Behavioral sleep medicine. 3 (3): 151–7. PMID 15984916. डीओआइ:10.1207/s15402010bsm0303_3.
  5. Krakow B, Hollifield M, Johnston L; एवं अन्य (2001). "Imagery rehearsal therapy for chronic nightmares in sexual assault survivors with post traumatic stress disorder: a randomized controlled trial". JAMA. 286 (5): 537–45. PMID 11476655. डीओआइ:10.1001/jama.286.5.537. Explicit use of et al. in: |author= (मदद)सीएस1 रखरखाव: एक से अधिक नाम: authors list (link)
  6. दी साइंस बिहाइंड ड्रीम्स एंड नाईटमेयर्स Archived 2011-01-12 at the वेबैक मशीन, टॉक टू दी नेशन, नेशनल पब्लिक रेडियो. 30 अक्टूबर 2007.
  • एंच, ए.एम. और ब्रोवमैन, सी.पी. और मिट्लर, एम.एम. और वॉल्श, जे.के. (1988). स्लीप: ए साइंटिफिक पर्स्पेक्टिव न्यू जर्सी: प्रेंटिस-हॉल, इंक.
  • हैरिस जे.सी. (2004). आर्क जेन साइकियाट्री. मई; 61(5):439-40. दी नाईटमेयर . (पीएमआईडी 15123487)
  • जोन्स, अर्नेस्ट (1951). ऑन दी नाईटमेयर (आईएसबीएन 0-87140-912-7) (पीबीके, 1971; आईएसबीएन 0-87140-248-3).
  • फोर्ब्स, डी. एट ऑल. [मृत कड़ियाँ](2001)[मृत कड़ियाँ] ब्रीफ रिपोर्ट: ट्रीटमेंट ऑफ कॉम्बेट-रिलेटेड नाईटमेयर्स यूजिंग इमेजरी रिहर्सल: ए पायलट स्टडी, जर्नल ऑफ ट्रॉमेटिक स्ट्रेस 14 (2): 433-442
  • सिएगेल, ए. (2003) ए मिनी-कोर्स फॉर क्लिनिशियन एंड ट्रॉमा वर्कर्स ऑन पोस्टट्रॉमेटिक नाईटमेयर्स
  • बर्न्स, साराह (2004). पेंटिंग दी डार्क साइड : आर्ट एंड दी गॉथिक इमेजीनेशन इन नाइंटीथ-सेंचुरी अमेरिका . एहमानसन-मर्फी फाइन आर इम्प्रिंट, 332 पीपी., कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी प्रेस, आईएसबीएन 0-520-23821-4.
  • डेवनपोर्ट-हिनेस, रिचर्ड (1999). गॉथिक: फोर हंड्रेड ईयर्स ऑफ एक्सेस, हॉरर, ईविल एंड रयून. नॉर्थ प्वाइंट प्रेस, पी. 160-61.
  • हिल, ऐनी (2009). वाट टू डू व्हेन ड्रीम्स गो बैड: ए प्रेक्टिकल गाइड टू नाईटमेयर्स . सेर्पेन्टाइन मीडिया, 68 पीपी., आईएसबीएन 1-88759-004-8
  • सिमंस, रोनाल्ड सी और ह्यूजेस, चार्ल्स सी (एड्स.) (1985). कल्चर-बाउंड सिन्ड्रोम्स. स्प्रिंगर, 536 पीपी.
  • सागन, कार्ल (1997). दी डेमन-हॉन्टेड वर्ल्ड: साइंस एज़ ए कैन्डल इन दी डार्क.

बाहरी कड़ियाँ संपादित करें