दूधनाथ सिंह
दूधनाथ सिंह (जन्म:१७ अक्टूबर, १९३६ एवं निधन १२ जनवरी, २०१८) हिन्दी के आलोचक, सम्पादक एवं कथाकार थे। उन्होने अपनी कहानियों के माध्यम से साठोत्तरी भारत के पारिवारिक, सामाजिक, आर्थिक, नैतिक एवं मानसिक सभी क्षेत्रों में उत्पन्न विसंगतियों को चुनौती दी।
जीवन परिचय
संपादित करेंदूधनाथ सिंह का जन्म उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के 'सोबन्था' नामक एक छोटे-से गाँव में हुआ था। उन्होने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से हिन्दी साहित्य में एम ए किया। कुछ दिनों (1960-62) तक कलकत्ता में अध्यापन किया जिसके बाद फिर इलाहाबाद विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में अपनी सेवाएँ दी। सेवानिवृति के बाद वह पूरी तरह से लेखन के लिए समर्पित हो गये।
प्रकाशित कृतियाँ
संपादित करेंअपनी शताब्दी के नाम, सपाट चेहरे वाला आदमी, सुखान्त, सुरंग से लौटते हुए, निराला : आत्महन्ता आस्था, पहला क़दम, एक और भी आदमी, कहा-सुनी (साक्षात्कार और आलोचनात्मक निबन्ध), दो शरण (निराला जी की कविताओं का संकलन), धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे (कहानी संग्रह) तथा निष्कासन (उपन्यास) उनकी प्रमुख रचनाएँ हैं। यम-गाथा दूधनाथ सिंह का चर्चित नाटक है। इसका पहला मंचन राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा) के भारत रंग महोत्सव- २००५ में अरविन्द गौड़ के निदेशन में,अस्मिता नाट्य संस्था द्वारा किया गया था। प्रमुख रंगमंच अभिनेता सुसान बरार (फिल्म-समर 2007) ने इसमे इन्द्र की भूमिका निभाई थी। यह नाटक मिथक पर आधारित है और इसका कथानक व्यापक सामाजिक राजनीतिक मुद्दों - सामंतवाद, सत्ता की राजनीति, हिंसा, अन्याय, सामाजिक- भेदभाव और नस्लवाद पर सवाल पर खड़े करता है।[1]
सम्मान और पुरस्कर
संपादित करें- सम्मान और पुरस्कार
- भारतेन्दु सम्मान
- शरद जोशी स्मृति सम्मान
- कथाक्रम सम्मान
- साहित्य भूषण सम्मान