देवी चंद
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देवी चंद
खेल एक ऐसा शब्द है जिसका सम्बंध सिर्फ़ ह्मारे मनोरंजन से ही न होकर हमारे शारीरिक और मानसिक विकास से भी होता है। किसी भी चीज़ में शिखर तक पहुँचने के लिए शारीरिक बल और मानसिक शांति का होना आवश्यक है। जीवन के इस सफ़र में हर व्यक्ति शिखर पर पहुँचने की चाह रखता है। लेकिन सभी को पूर्ण सफलता नहीं मिल पाती है। जो लोग अपने लक्ष्य की ओर हमेशा सक्रिय, सचेत और पूर्ण रूप से समर्पित रहते हैं उन्हे सफलता अवश्य मिलती है।
निजी जीवन
संपादित करेंऐसा ही एक नाम देवी चंद का है जिनके आभूषण कठोर परिश्रम, मजबूत इरादे, फौलादी आत्मविश्वास और कर्मठता हैं। उन्होंने बॉक्सिंग के क्षेत्र में अपने कठोर परिश्रम से राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में न सिर्फ़ भाग लिया बल्कि कई पदक लेकर हमारी इस भारत भूमि को सफलता के नीर से सिंचित कर दिया। देवी चंद का जन्म 10 अक्टूबर 1962 को जिला पिथौरागढ़ उतराखंड में हुआ। एनके पिता श्री फकीर चंद बंगाल इंजिनियर रुढ़की से सेवानिवृत हुए| माता श्रीमती कुंती देवी एक सुयोग्य गृहणी एवं अत्यंत बुधिमान नारी थी। देवी चंद ने जूनियर तक की शिक्षा 1967-1977 में विद्यालय बॉस से प्राप्त की एवं इंटर्मीडियेट की परीक्षा 1977-79 मिजन इंटर कॉलेज पिथौरागढ़ से हासिल की। श्री चंद की बचपन से ही वॉलीबॉल, पैराशूटिंग, बॉक्सिंग खेलों में विशेष रूचि रही है। बचपन से ही सेना में भर्ती होकर सैनिक वर्दी पहनने की तमन्ना रही। सौभाग्यवश 27 अक्टूबर 1979 को 3 पैराशूट बटालियन में भर्ती होकर देवी चंद देशसेवा को समर्पित हो गए। कड़ि मेहनत से ट्रैनिंग पूर्ण करने के उपरांत बॉक्सिंग को अपना मुख्य खेल चुना। यहाँ पर सूबेदार मेजर धरम चंद ने बॉक्सिंग की शिक्षा दी। कुछ समय के बाद देवी चंद का विवाह 22 अप्रैल 1984 को लीला चंद के साथ हुआ, जिन्होंने तीन संतानों आशीष, बबिता और अमित को जन्म दिया। खेलों में श्रीमती चंद सदैव अपने पति का साथ दिया। 1986 में सिकन्द्राबाद में आयोजित राष्ट्रीय बॉक्सिंग प्रतियोगिता में देवी चंद ने स्वर्ण पदक हासिल कर एक काबिल बॉक्सर का दर्जा हासिल किया।
प्रतियोगिताऐ
संपादित करेंदेवी चंद ने निम्नलिखित प्रतियोगिताओं में भाग ले कर भारत का नाम रौशन किया
- - 35वीं सर्विस बॉक्सिंग प्रतियोगिता बंगलौर 1986-87 (स्वर्ण पदक)
- - 36वीं सर्विस बॉक्सिंग प्रतियोगिता जम्मू 1987-88 (स्वर्ण पदक)
- - 37वीं सर्विस बॉक्सिंग प्रतियोगिता बंगलौर (स्वर्ण पदक)
- - 38वीं सर्विस बॉक्सिंग प्रतियोगिता शिलौंग (स्वर्ण पदक)
- - 35वीं राष्ट्रीय बॉक्सिंग प्रतियोगिता बंगलौर 1987-88 (स्वर्ण पदक)
- -36वीं राष्ट्रीय बॉक्सिंग प्रतियोगिता 1988-89 (स्वर्ण पदक)
- -13वीं किंग्स कप बॉक्सिंग प्रतियोगिता 1987
- -तृतीय दक्षेस खेल कलकता 1987 (स्वर्ण पदक)
- -13वीं ऐशियाई बॉक्सिंग प्रतियोगिता 1987 (रजत पदक)
- -1988 सियोल ओलिंपिक प्रतियोगिता
- -1988 जि.सि.सि अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता क़ूबा
- -1989 भारत सोवियत संघ बॉक्सिंग प्रतियोगिता दिल्ली (स्वर्ण पदक)
- - चौथे दक्षेस खेल 1959 इस्लामाबाद (रजत पदक)
लंबे खेल जीवन के दौरान देवी चंद को सेना में पदोन्नतियाँ मिलती रहीं। उन्होने सिपाही से सूबेदार मेजर तक का सफ़र तय किया। 26 जनवरी 1989 के दिन राष्ट्रपति द्वारा देवी चंद को वशिष्ठ सेवा मेडल से सम्मानित किया गया। देवी चंद 1994-95 में राष्ट्रीय सर्विस कोच नियुक्त किए गये।
श्री चांद हमें यही संदेश देते हैं कि मजबूत निश्चय, फौलादी इरादे और मेहनत से हम अपना लक्ष्य प्राप्त कर सकते हैं। सफलता की राह पर आने वाली मुश्किलों से डरना नहीं चाहिए और उनका मुकाबला करना चाहिए।