द्रविड़ स्थापत्य शैली
द्रविड़ शैली दक्षिण भारतीय हिन्दू स्थापत्य कला की तीन में से एक शैली है। यह शैली दक्षिण भारत में विकसित होने के कारण द्रविड़ शैली कहलाती है। तमिलनाडु व निकटवर्ती क्षेत्रों के अधिकांश मंदिर इसी श्रेणी के होते हैं।
स्थापत्य
संपादित करेंइस शैली में मंदिर का आधार भाग वर्गाकार होता है तथा गर्भगृह के ऊपर का शिखर भाग प्रिज्मवत् या पिरामिडनुमा होता है, जिसमें क्षैतिज विभाजन लिए अनेक मंजिलें होती हैं। शिखर के शीर्ष भाग पर आमलक व कलश की जगह स्तूपिका होते हैं। इस शैली के मंदिरों की प्रमुख विशेषता यह है कि ये काफी ऊँचे तथा विशाल प्रांगण से घिरे होते हैं। प्रांगण में छोटे-बड़े अनेक मंदिर, कक्ष तथा जलकुण्ड होते हैं। परिसर में कल्याणी या पुष्करिणी के रूप में जलाशय होता है। प्रागंण का मुख्य प्रवेश द्वार गोपुरम कहलाता है। प्रायः मंदिर प्रांगण में विशाल दीप स्तंभ व ध्वज स्तंभ का भी विधान होता है।[1]
सन्दर्भ
संपादित करें- ↑ "मंदिरों का सामान्य इतिहास व विवरण". देवस्थान विभाग देवस्थान राजस्थान. २६ अप्रैल २०१८.
इन्हें भी देखें
संपादित करें- हिन्दू मंदिर स्थापत्य
- नागर शैली: उत्तर भारतीय मंदिर स्थापत्य शैली
- वेसर शैली: मिश्रित भारतीय शैली