द्वारका प्रसाद मिश्र
द्वारका प्रसाद मिश्र (1901 - 1988) भारत के एक स्वतंत्रतासंग्राम सेनानी, राजनेता, पत्रकार एवं साहित्यकार थे। वे मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके है।
परिचय
संपादित करेंमिश्र जी श्रेष्ठ कवि और पत्रकार थे। 1942 में जेल में रहते हुए उन्होंने 'कृष्णायन' महाकाव्य की रचना की थी। कृष्ण के जन्म से लेकर स्वर्गारोहण तक की कथा इस महाकाव्य में कही गई है। महाभारत के कृष्ण हमेशा मिश्र जी के आदर्श रहे। प्रखर पत्रकार के रूप में मिश्र जी ने 1921 में 'श्री शारदा' मासिक, 1931 में 'दैनिक लोकमत' और 1947 में साप्ताहिक 'सारथी' का सम्पादन किया। लाला लाजपत राय की अँग्रेजों की लाठी से हुई मौत पर 'लोकमत' में लिखे उनके सम्पादकीय पर पं॰ मोतीलाल नेहरू ने कहा था कि भारत का सर्वश्रेष्ठ फौजदारी वकील भी इससे अच्छा अभियोग पत्र तैयार नहीं कर सकता। जवाहरलाल नेहरू से मतभेद के कारण मिश्र जी को तेरह वर्षों तक राजनीतिक वनवास भोगना पड़ा।
सन् 1954 से 64 तक उन्होंने सागर विश्वविद्यालय के कुलपति के रूप में व्यतीत किया। मिश्र जी के विद्या-व्यसन के संबंध में कहा जाता था कि विश्वविद्यालय के किसी प्राध्यापक या विद्यार्थी से अधिक उसके कुलपति अध्ययन-रत रहते हैं। 1971 में राजनीति से अवकाश लेकर उन्होंने सारा समय साहित्य को समर्पित कर दिया।
अँग्रेजी में अपनी आत्मकथा 'लिविंग एन एरा' लिखी, जिसमें बीसवीं सदी का पूरा इतिहास समाहित हैं। ऐतिहासिक शोध ग्रंथ लिखे, जिनमें 'स्टडीज इन द प्रोटो हिस्ट्री ऑफ इंडिया और 'सर्च ऑफ लंका' विशेष उल्लेखनीय हैं। हिंदी, अँग्रेजी, संस्कृत और उर्दू भाषा के साहित्य से उनका गहरा लगाव था।
संस्कृत कवियों और उर्दू के शायरों के हिंदी अनुवाद में उन्हें काफी रस मिलता था। शतरंज के वे माहिर खिलाड़ी थे। ऐसे साहित्यकार, इतिहासविद् और प्रखर राजनेता का 5 मई 1988 को दिल्ली में देहावसान हो गया। उनका पार्थिव शरीर जबलपुर में नर्मदा के तट पर पंचतत्व में लीन हुआ।
इन्हें भी देखें
संपादित करें- ब्रजेश मिश्र (द्वारका प्रसाद मिश्र के पुत्र एवं भूतपूर्व वरिष्ट लोकसेवक)