धर्मशास्त्र का इतिहास (पुस्तक)
धर्मशास्त्र का इतिहास (हिस्ट्री ऑफ धर्मशास्त्र) भारतरत्न पांडुरंग वामन काणे द्वारा रचित हिन्दू धर्मशास्त्र से सम्बद्ध एक इतिहास ग्रन्थ है, जिसके लिये उन्हें सन् 1956 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।[1] यह पाँच खण्डों में विभाजित एक बृहत् ग्रन्थ है।
लेखक | पांडुरंग वामन काणे |
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भाषा | हिन्दी |
शृंखला | इतिहास (साहित्येतिहास) |
विषय | धर्मशास्त्र के विभिन्न अंग |
शैली | शोधपूर्ण ऐतिहासिक विवरण |
प्रकाशक | उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, लखनऊ |
प्रकाशन तिथि | 1963-1973 ई० |
प्रकाशन स्थान | भारत |
अंग्रेज़ी प्रकाशन | 1930-1965 |
मीडिया प्रकार | मुद्रित |
पृष्ठ | 2,750 |
साहित्य अकादमी पुरस्कार दिये जाने तक अंग्रेजी में इसके 4 भाग ही प्रकाशित हुए थे (1953 तक)। 1963 में डॉ० पांडुरंग वामन काणे को भारत सरकार द्वारा सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारतरत्न से सम्मानित किया गया।[2] अंतिम भाग (पंचम खंड) का लेखन 1965 में पूरा हुआ।
ग्रन्थ-परिचय
संपादित करेंयह महाग्रंथ मूलतः 5 खंडों में विभाजित है। अंग्रेजी में ये पांचों खंड 7 वॉल्यूम में समाहित हैं। अंग्रेजी में इसका प्रथम भाग 1930 में प्रकाशित हुआ तथा अन्तिम भाग 1965 में। इसके अंतिम अध्याय (भावी वृत्तियाँ) में विवेचन-क्रम में ही स्पष्टतः वर्तमान समय के रूप में 1965 ई० का उल्लेख है, जिससे यह स्वतः प्रमाणित है कि इस महाग्रंथ का लेखन 1965 ई० में सम्पन्न हुआ है।[3]
हिन्दी अनुवाद में राॅयल आकार के 5 जिल्दों में ये पांचों खंड समाहित हो गये हैं। हिंदी अनुवाद के इस आकार-प्रकार में इसकी कुल पृष्ठ संख्या 2,750 है। इसके आरंभ में प्रसिद्ध एवं महत्त्वपूर्ण ग्रंथों तथा लेखकों का काल निर्धारण दिया गया है, जिसमें वैदिक काल (4000 ईसा पूर्व) से लेकर 19वीं सदी के आरंभ तक के ग्रंथों एवं लेखकों को सम्मिलित किया गया है। सभी खंडों के अंत में शब्दानुक्रमणिका भी दी गयी है।
इनके खंड छोटे-बड़े होने से इसकी पहली जिल्द में जहाँ दो खंड समाहित हो गये हैं, वही अंतिम 2 जिल्दों में एक ही खंड (पंचम) आ पाये हैं। अतः यहाँ सुविधा के लिए जिल्द-क्रम से ग्रंथ की अंतर्वस्तु का संक्षिप्त परिचय दिया जा रहा है।
प्रथम जिल्द
संपादित करेंइसके प्रथम खंड में धर्म का अर्थ निरूपण के पश्चात् प्रायः सभी प्रमुख धर्म शास्त्रीय ग्रंथों का निर्माण-काल एवं उनकी विषय-वस्तु का विवेचन किया गया है।[4] इसकी प्रथम जिल्द में ही समाहित द्वितीय खंड में धर्मशास्त्र के विविध विषयों जैसे वर्ण, अस्पृश्यता, दासप्रथा, संस्कार, उपनयन, आश्रम, विवाह, सती-प्रथा, वेश्या, पंचमहायज्ञ, दान, वानप्रस्थ, सन्यास, यज्ञ आदि का शोधपूर्ण विवेचन किया गया है।
द्वितीय जिल्द
संपादित करेंद्वितीय जिल्द (तृतीय खंड) में राजधर्म के अंतर्गत राज्य के सात अंगों, राजा के कर्तव्य एवं उत्तरदायित्व, मंत्रिगण, राष्ट्र, दुर्ग, कोश, बल, मित्र तथा राजधर्म के अध्ययन का उद्देश्य एवं राज्य के ध्येय पर शोधपूर्ण विवेचन उपस्थापित किया गया है। इसके बाद व्यवहार न्याय पद्धति के अंतर्गत भुक्ति, साक्षीगण, दिव्य, सिद्धि, समय (संविदा), दत्तानपाकर्म, सीमा-विवाद, चोरी, व्यभिचार आदि का धर्मशास्त्रीय निरूपण उपस्थापित किया गया है। इसके बाद सदाचार के अंतर्गत परंपराएँ एवं आधुनिक परंपरागत व्यवहार, परंपराएँ एवं धर्मशास्त्रीय ग्रंथ, 'कलियुग में वर्जित कृत्य' तथा 'आधुनिक भारतीय व्यवहार शास्त्र में आधार' आदि का विवेचन किया गया है।
तृतीय जिल्द
संपादित करेंतृतीय जिल्द (चतुर्थ खंड) में विभिन्न पातकों (पापों), प्रायश्चित, कर्मविपाक, अनय कर्म (अन्त्येष्टि), अशौच, शुद्धि, श्राद्ध आदि के विवेचन के पश्चात् तीर्थ-प्रकरण के अंतर्गत तीर्थ-यात्रा का विवेचन किया गया है। इसमें गंगा, नर्मदा, गोदावरी आदि नदियों तथा प्रयाग, काशी, गया, कुरुक्षेत्र, मथुरा, जगन्नाथ, कांची, पंढरपुर आदि प्रमुख तीर्थों के विस्तृत विवेचन के बाद अक्षरानुक्रम से 106 पृष्ठों में ससंदर्भ एक लंबी तीर्थ-सूची दी गयी है।[5] इसके बाद परिशिष्ट रूप में 134 पृष्ठों में अक्षर क्रम से धर्म शास्त्र के ग्रंथों की एक विस्तृत सूची दी गयी है।
चतुर्थ जिल्द
संपादित करेंचतुर्थ जिल्द (पंचम खंड, पूर्वार्ध, अध्याय 1 से 25) में व्रत, उत्सव, काल, पंचांग, शांति, पुराण-अनुशीलन आदि का विस्तृत ऐतिहासिक विवेचन किया गया है। व्रतखंड के अंतर्गत चैत्र प्रतिपदा, रामनवमी, अक्षय तृतीया, परशुराम जयंती, दशहरा, सावित्री व्रत, एकादशी, चातुर्मास्य, नाग पंचमी, मनसा पूजा, रक्षाबंधन, कृष्ण जन्माष्टमी, हरितालिका, गणेश चतुर्थी, ऋषि पंचमी, अनंत चतुर्दशी, नवरात्र, विजयादशमी, दीपावली, मकर संक्रांति, महाशिवरात्रि, होलिका एवं ग्रहण आदि के विस्तृत शोधपूर्ण विवेचन के पश्चाता 141 पृष्ठों में अक्षरानुक्रम से विभिन्न हिंदू व्रतों की लंबी सूची दी गई है। इस सूची में विवरण संक्षिप्त होने के बावजूद यह सूची स्वयं लेखक के कथनानुसार तब तक प्रकाशित सभी सूचियों से बड़ी है।[6] इसके पश्चात काल की प्राचीन धारणा, नक्षत्रों के प्राचीन उल्लेख, भारतीय ज्योतिर्गणित की मौलिकता, मुहूर्त, विवाह आदि के विवेचन के अतिरिक्त भारतीय, बेबीलोनी एवं यवन ज्योतिष का विकास और मिश्रण आदि का शोधपूर्ण विवेचन भी उपस्थापित किया गया है। इसके पश्चात् शांति, शकुन आदि के वर्णन के अतिरिक्त पुराणों एवं उप पुराणों के काल आदि का शोधपूर्ण अनुशीलन इस ग्रंथ की एक महती विशेषता है।
पंचम जिल्द
संपादित करेंपंचम जिल्द (पंचम खंड, उत्तरार्ध, अध्याय 26 से 37 तक) में 'तांत्रिक सिद्धांत एवं धर्मशास्त्र', न्यास, मुद्राएँ, यंत्र, चक्र, मंडल आदि; 'मीमांसा एवं धर्मशास्त्र', 'धर्मशास्त्र एवं साहित्य', 'योग एवं धर्मशास्त्र', विश्व-विद्या, 'कर्म एवं पुनर्जन्म का सिद्धांत', 'हिंदू संस्कृति एवं सभ्यता की मौलिक एवं मुख्य विशेषताएँ' आदि विषयों का विवेचन उपस्थापित हुआ है।
सन्दर्भ
संपादित करें- ↑ "अकादेमी पुरस्कार". साहित्य अकादमी. Archived from the original on 15 सितंबर 2016. Retrieved 4 सितंबर 2016.
- ↑ हिन्दी विश्वकोश, खंड-2, नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी, संशोधित संस्करण-1975, पृष्ठ-514.
- ↑ धर्मशास्त्र का इतिहास, म०म० डॉ० पांडुरंग वामन काणे, अनुवादक- अर्जुन चौबे काश्यप, खंड-5, उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान, लखनऊ, तृतीय संस्करण-1996, पृ०-426.
- ↑ धर्मशास्त्र का इतिहास, खंड-1, पूर्ववत्, चतुर्थ संस्करण-1992, पृ०-1-97.
- ↑ धर्मशास्त्र का इतिहास, खंड-3, पूर्ववत्, चतुर्थ संस्करण-2003, पृ०-1400-1505.
- ↑ धर्मशास्त्र का इतिहास, खंड-4, पूर्ववत्, तृतीय संस्करण-1996, पृ०-96.
बाहरी कड़ियाँ
संपादित करें- History of Dharmasastra (Ancient and mediaeval Religious and Civil Law), v.5.1, 1958, 1st edition
- History Of Dharmasastra Vol II Part I (1941)
- Biography (Chapter 2.2) (German site, biography in English)
- Kane's chronology of Dharmasastra literature (At the bottom of the article) (German site, chronology in English)