धारणी
धारणी (सिंहल : ධරණී ; पारम्परिक चीनी : 陀羅尼 ; फ़ीनयिन: tuóluóní ; जापानी: 陀羅尼 darani; तिब्बती: གཟུངས་ gzungs) बौद्ध धर्म में सम्बन्धित सद्वाक्य या वाक्य-समूह होते हैं। जिस प्रकार सनातन हिन्दू धर्म में मन्त्र होता है, उसी तरह बौद्ध धर्म में मंत्र और धारिणी दो संकल्पनाएँ हैं।
धारणी, मन्त्रों की पुस्तकें हैं । नाना प्रकार के मन्त्र, जिनके जप से सब प्रकार की बाधाएँ दूर हो जाती हैं, इनमें संगृहीत हैं। महायान सूत्रों में भी ये धारणियाँ पायी जाती हैं। असल में धारणी और सूत्रों में कभी भी कड़ाई के साथ भेद नहीं किया गया। धारणियों के नाम पर सूत्र और सूत्रों के नाम पर धारणियाँ प्रायः पायी जाती हैं। इन धारणियों के विचित्र मन्त्रों का कोई अर्थ नहीं होता। उदाहरणार्थ, साँपों के भगाने का मन्त्र है, “सर-सर सिरी-सिरी सुरु-सुरु नागानां जयजय जिवि-जिवि जुवु-जुवु।" इसमें 'सर' और 'नागानां' सार्थक पद कहे जा सकते हैं; पर समूचे वाक्य में वे भी निरर्थक-से हो गये हैं। इन मन्त्रों के जप करने से निर्दिष्ट सिद्धिलाभ होने की बात कही गयी है। ये मन्त्र उत्तरकालीन हिन्दू समाज में बहुधा ज्यों-के-त्यों आ गये हैं : असल में अन्तिम समय में बौद्ध धर्म का प्रधान सम्बल मन्त्र-तन्त्र ही रह गये थे। मन्त्रयान और वज्रयान बौद्ध धर्म के अन्तिम प्रतिनिधि हैं; परन्तु ये भी धीरे-धीरे शैव आदि मतों में घुल-मिल गये।[1]
धारणी का महायान साहित्य में बड़ा स्थान है। धारणी रक्षा का काम करती है। जो कार्य वैदिक मंत्र करते थे, विशेषकर अथर्ववेद के; वही कार्य बौद्ध धर्म में 'धारणी' करती है। सिंहल में आज भी कुछ सुन्दर 'सुत्तों' से 'परित्त' का काम लेते हैं। इसी प्रकार महायान धर्मानुयायी सूत्रों को मंत्रपदों में परिवर्तित कर देते थे। अल्पाक्षरा प्रज्ञापारमिता-सूत्र धारणी का काम करती है। धारणियों में प्रायः बुद्ध, बोधिसत्व और ताराओं की प्रार्थना होती है। धारणी के अन्त में कुछ ऐसे अक्षर होते हैं, जिनका कोई अर्थ नहीं होता। धारणी के साथ कुछ अनुष्ठान भी होते हैं। अनावृष्टि, रोग, आदि के समय धारणी का प्रयोग होता है। पांच धारणियों का एक संग्रह 'पंचरक्षा' नेपाल में अत्यन्त लोकप्रिय है। इनके नाम इस प्रकार हैं:- महाप्रतिसार, महासहस्रप्रमर्दिनी, महामयूरी, महाशोतकर्ता, महा(रक्षा)मन्त्रानुसारिणी; महामयूरी को 'विद्या राज्ञी' कहते हैं । सर्पदंश तथा अन्य रोगों के लिये इसका प्रयोग करते हैं । हर्षचरित में इसका उल्लेख है।[2]
मंत्रयान और वज्रयान, महायान की शाखायें हैं। मन्त्रयान में मन्त्रपदों के द्वारा निर्वाण की प्राप्ति होती है। इन मन्त्रपदों में गुह्य शक्ति होती। वज्रयान में मन्त्रों द्वारा तथा 'वज्र' द्वारा निर्वाण का लाभ होता है। शून्य और विज्ञान वज्रतुल्य हैं और इसलिये उनका विनाश नहीं होता। वज्रयान अद्वैत दर्शन की शिक्षा देता है। सब सत्त्व वज्र-सत्व है।
उदहरण
संपादित करें- भैषज्यगुरु धारिणी
- नमो भगवते भैषज्यगुरु वैडूर्यप्रभराजाय
- तथागताय अर्हते सम्यक्संबुद्धाय तद्यथा
- ॐ भैषज्ये भैषज्ये भैषज्य-समुद्गते स्वाहा
- तद्यथा ॐ भैषज्ये भैषज्ये भैषज्य-समुद्गते स्वाहा
धारिणी ग्रन्थ
संपादित करेंयद्यपि अधिकांश बौद्ध ग्रन्थों में धारणियाँ पायी जाती हैं, किन्तु कुछ ग्रन्थों में पूरा का पूरा या अधिकांश धारणियाँ ही हैं। ऐसे कुछ ग्रन्थ निम्नलिखित हैं-
- अमोघपाश हृदय
- अतंतिका सूत्र
- भैषज्यवास्तु
- बुद्धनामसहस्र
- मंजुश्रीनाम संघिति
- एकादशमुखहृदय
- गनपति हृदय
- हयग्रीव विद्या
- करुणापुण्डरीक
- महामयूरी
- महमन्त्रनुसारिणी
- महमेघसूत्र
- महाप्रतिसार धारिणी
- महासहस्रप्रमर्दिनी
- महाशीतवती धरणी
- मेखला धरणी
- निर्विकल्पप्रवेश धारणी
- रत्नकेतु परिवर्त
- सद्धर्म पुण्डरीक
- सन्मुख धारिणी
- शर्दुलकण वदन
- सर्वज्ञातकर धारिणी
- सर्वतथागताधिष्ठान
- सुवर्ण भासोत्तम
- उष्नीशविजय धरणी
- वज्रविदारणी धारणी
- वसुधर धारणी
- पञ्चरक्षा
- शीततपत्र धारणी
- अर्वीश धारणी
- थेरावाद ग्रन्थ
थेरावाद के पारित्त (धारणी) प्राचीन हैं और बहुत संख्या में हैं।
- रतन सुत्त
- खन्ध परित्त
- मोर परित्त
- धजग्ग परित्त
- अतनतीय परित्त
- अङ्गुलीमाल परित्त
- मेत्त सुत्त
- सुवत्थि परित्त
- इसिगिलि परित्त
- बोज्झाङ परित्त
- मङ्गल सुत्त
- पुब्बम्ह सुत्त
- वत्त सुत्त
- चुलव्यूह सुत्त
- महासमय सुत्त
- जय परित्त
- अभिन्ह सुत्त
- अकरवत्त सुत्त
- धारण सुत्त
- छदिसपल सुत्त
- चक्कपरित्त सुत्त
- परिमित्तजल सुत्त
- अट्ठविशति परित्त जिनापञ्जर गाथा
- जयमङ्गल गाथा
- अट्ठमङ्गल गाथा
- उप्पतशान्ति
- गिनि परित्त
- महादिब्बमन्त
- अतमतिय परित्त
सन्दर्भ
संपादित करें- ↑ हजारी प्रसाद ग्रन्थावली
- ↑ बुद्ध धर्म दर्शन (आचर्य नरेन्द्र देव)