मन्त्र
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सत्संग लिए सत्संग देखें । गुप्तमन्त्र लिए तंत्र देखें
कैसे खोले ताला? क्योंकि
!!ॐ नमःशिवाय!! भी कीलित है-
हिन्दू#वेद-पुराणों का हर शब्द अमॄतम#
आपको हैरानी होगी यह जानकर कि–
!!ॐ नमःशिवाय!! मन्त्र कीलित है।
जब तक इसका उत्कीलन नहीं होगा
यानि ताला नहीं खुलेगा, तब तक
यह मन्त्र अपना शुभ प्रभाव या
लाभ नहीं दिखा सकता।
दूसरी बात इस ब्लॉग के जरिये जाने
कि- कब, कैसे कितनी माला जपने
से यह किस तरह, क्या कार्य सिद्ध
करता है और क्या लाभ होंगे।
समझने के लिए पूरा ब्लॉग पढ़े.…
मन्त्र का मतलब एवं मन का क्या रिश्ता है।
मंत्र से मन की उत्पत्ति हुई।
मन्त्र-मन को त्रिदोष से मुक्त कर
प्रतिरक्षा प्रणाली मजबूत बनाता
देता है।
आयुर्वेद ग्रन्थ चरक और योगरत्नाकरवेद-पुराणों का हर शब्द अमॄतम
के हिसाब से मन में अमन हो, तो
इम्युनिटी पॉवर कमजोर नहीं होता।
पाचनतंत्र खराब नहीं होता।
मन्त्र जाप से संक्रमण/वायरस ,
असाध्य व्याधियों से शरीर की सभी
प्रकार से सुरक्षा होती रहती है।
शिवपुराण में लिखा है-
मन्त्र शब्द मन +त्र के संयोग से बना है।
मन का अर्थ है सोच, विचार, मनन या
चिंतन करना और “त्र ” का अर्थ है…
दैहिक, दैविक और भौतिक तकलीफों
से रक्षा कर सब प्रकार के अनर्थ, भय से
बचाने वाला।
सार यही है कि-मन्त्र जाप से तन-मन
एवं शरीर की कोशिकाओं और नाड़ियों
को शुद्ध पवित्र बनाकर ऊर्जा प्रदान
करता है। अवसादग्रस्त लोगों के लिए
मन्त्र जाप से बड़ी कोई ओषधि नहीं है।
संदर्भ ग्रन्थ, पुस्तकों की सूची/नाम।
इन सबका निचोड़ इस लेख में है….
★ ब्रह्मवैवर्त पुराण
★ अग्नि पुराण
★ शिवपुराण
★ काली तन्त्र
★ रहस्योउपनिषद
★ ईश्वरोउपनिषद
★ काशी का इतिहास
★ प्रतीक शास्त्र
★ हिंदी-संस्कृत शब्दकोश
★ भविष्य पुराण
★ स्कन्ध पुराण
★ महामृत्युंजय रहस्य
★ व्रतराज सहिंता
★ मन्त्र महोदधि
★ तन्त्र चंद्रोदय
★ अंक प्रतीक कोष
★ अर्ध मार्तण्ड
★ श्रीमद्भागवत महापुराण
★ मनीषी की लोकयात्रा
★ हिमालय के योगी
★ अघोरी-अवधूतों के रहस्य आदि!
!!ॐ नमःशिवाय!! यह मन्त्र
अनेक ऋषियों द्वारा कीलित (Lock)
है। आप जानकर हैरान हो जाएंगे…
!!ॐ नमःशिवाय!! मन्त्र का ताला कैसे खोले, जाने इस लेख में–
इस समय देश के लगभग सभी लोग
कोरोना वायरस की वजह से फुर्सत में
हैं, इसलिए अमॄतम पत्रिका
द्वारा भोलेनाथ के बारे में एक दुर्लभ रहस्यमयी बात पुराण, उपनिषद के
मुताबिक बतायी जा रही है। इस
प्रक्रिया का पालन, उत्कीलन जरूरी है।
तभी !ॐ नमःशिवाय! का जाप करने
से जीवन में परिवर्तन 100 फीसदी
निश्चित होगा।
लोगों की शंकाओं का समाधान...
√ वर्तमान समय में मंत्रो का शुभप्रभाव
किसी को क्यों नहीं दिखता?
√ मन्त्र माला जाप करते समय उच्चाटन
क्यों हो जाता है?
√ मन्त्र जाप से किसी भी कार्य में जल्दी सिद्धि नहीं क्यों नहीं मिलती?
√ कोई भी मनोकामना
पूरी नहीं हो पाने के कारण क्या है?
सनातन धर्म के अधिकांश साधक,
लोग ये सब जानने के लिए आतुर हैं।
हरेक कीलित मन्त्र की उत्कीलन
विधि होती है।
उत्कीलन का अर्थ है-
उन मंत्रो का कीलन (ताला) विधिवत खोलना। इस ताले की चाबी मिलने
का स्थान, ताला खोलने की विधि,
प्रत्येक मंत्र के ऋषि, देवता तथा
शक्तिबीज सब अलग अलग होते हैं।
मंत्रों को कीलित क्यों किया गया?
करने की क्या वजह थी?
उपरोक्त प्राचीन गर्न्थो के मुताबिक
भोलेनाथ ही तन्त्र-मन्त्र-यन्त्र, सर्व
सिद्धियों के प्रथम अविष्कारक हैं।
इन सब विधियों में मंत्र महत्वपूर्ण हैं।
मंत्रों की निर्माण प्रक्रिया में उनके
चमत्कारी प्रभाव एवं फायदे का
दुरुपयोग न हो, इसलिए बहुत से
मंत्रों जैसे-गायत्री मन्त्र, पंचाक्षर
मन्त्र, महामृत्युंजय मन्त्र और दुर्गा सप्तशती के अनेक स्तोत्रों को
कीलित कर दिया था।
कुछ मंत्रों को ऋषियों द्वारा शापित भी
कर दिया गया, ताकि इन ऊर्जावान
ब्रह्म शब्दों का कोई स्वार्थी पुरुष इसको
धन्धा न बना सके। भगवान शिव की
ये सब खोजे सृष्टि के कल्याण हेतु थी।
कीलित या कीलन का अर्थ है ….
ताला लगा देना।
एक प्रकार से महादेव और उनके
अनुयायी महर्षियों ने इन मंत्रो को
ताला लगा दिया, जिससे कोई भी
अपात्र या लोभी मनुष्य इन शक्तिशाली
मंत्रों का दुरूपयोग न कर सके।
ॐ नमःशिवाय मन्त्र भी कीलित है।
जब तक इसका उत्कीलन या शापोद्धार
कर ताला नहीं खोला जाता, तब तक ये अपना सही असर नहीं दिखा पाते हैं।
कीलित मन्त्र का उत्कीलन होने के
बाद ही जपने का मन होता है अन्यथा
उच्चाटन होकर मन नहीं लगता।
ॐ नमःशिवाय की रहस्यमयी महिमा..
यह पंचाक्षर मन्त्र अल्पाक्षर एवं
अति सूक्ष्म संक्षिप्त दिखता जरूर है,
किन्तु इसमें अनेक अर्थ भरे हैं।
5 अक्षरों वाला यह मन्त्र पंचतत्व
अग्नि, वायु, आकाश, पृथ्वी और जल
तथा हमारी पांच कर्मेन्द्रियों एवं
5-ज्ञानेंद्रियों को जागृत
कर क्रियाशील बनाये रखता है।
इस लेख में न/मः/शि/वा/य के
एक-एक अक्षर का अर्थ जानेंगे…..
शिवपुराण, शिव रहस्योउपनिषद
एवं शिव काली तन्त्र में महादेव
का वचन है-
जिसकी जैसी समझ हो, सोच हो,
जिसे जितना समय मिल सके,
चलते-फिरते, उठते-जागते, रोते-गाते, गुनगुनाते….जिसकी जैसी इच्छा, बुद्धि, शक्ति, सम्पत्ति, उत्साह, योग्यता
और प्रेम हो, उसके अनुसार वह जब
कभी, जहाँ कहीं भी इस चमत्कारी
पंचाक्षर मन्त्र को जप सकता है।
बिना किसी पूजा सामग्री
अथवा किसी भी साधन
द्वारा केवल शिंवलिंग पर जलधारा
अर्पित कर पूजा की जा सकती है।
अग्नि पुराण में आया है कि-
मानव मस्तिष्क और शिंवलिंग
दोनो एक समान हैं। जैसे स्नान के
समय सिर पर पानी डालने से तन-मन
हल्का और स्फूर्तिवान हो जाता है,
ठीक वैसे ही शिंवलिंग पर पानी चढ़ाने
से बुद्धि के विकार बाहर
निकलकर, मन शान्त हो जाता है।
पापी की प्रार्थना सुनते हैं-महादेव
यदि पतित-पापी, निर्दयी, कुटिल,
पातकी मनुष्य भी शिव या शेषनाग
में मन या ध्यान लगा कर पंचाक्षर
मन्त्र का जप करेंगे, तो वह उनको
संसार-भय से तारने वाला होगा।
ॐ नमःशिवाय की अदृश्य शक्ति क्या है–
जैसे सभी देवताओं में त्रिपुरारि भगवान
शंकर देवाधिदेव हैं, ठीक उसी प्रकार
सब मन्त्रों में भगवान शिव का पंचाक्षर
मन्त्र !!ॐ नम: शिवाय!! श्रेष्ठ है।
लगभग सभी पुराण, उपनिषद आदि सहिंताओं में ऊपर वाले का उल्लेख है। शिवपुराण में महाशक्ति को महादेव
समझा रहे हैं कि-प्रणव (ॐ) सहित पांच अक्षरों से युक्त मेरा हृदय है।
यही शिवज्ञान है,
यही परमपद है और
ये ही ब्रह्मविद्या है।
!!ॐ नमःशिवाय!! पंचाक्षर मन्त्र…
पंचतत्व का प्रतीक है। इस मन्त्र का
उत्कीलन कर जपने से सभी काम
स्वतः ही बनने लगते हैं।
चमत्कारी मन्त्र की विशेषताएं..…
【1】इस मायावी संसार बन्धन में
बँधे हुए मनुष्यों की मनोकामना पूर्ति
सदैव स्वस्थ्य-प्रसन्न रखने के लिए
स्वयं महाकाल ने !!ॐ नम: शिवाय!!
इस उत्साह दायक सर्व शक्तिमान
मन्त्र का प्रतिपादन किया।
【2】अघोरी-अवधूत, औघड़दानी
सन्त इसे पंचाक्षरी विद्या भी कहते हैं।
【3】वेदों का विश्वास, पृथ्वी की
शक्ति और यह मंत्रों का राजा है।
【4】समस्त श्रुतियों-शास्त्रों का
सिरमौर तथा श्रेष्ठ है।
【5】ॐ नमःशिवाय मन्त्र सम्पूर्ण
उपनिषदों की आत्मा है।
【6】हरेक अक्षर शब्द समुदाय का बीजरूप है।
【7】!!ॐ नम: शिवाय!! मन्त्र के
अजपा जाप से साधारण साधक
शव से शिवस्वरूप हो जाता है।
【8】यह पंचाक्षर मन्त्र मोह-माया
के अंधकार में प्रकाशित करने वाला
दीपक है।
【9】अविद्या के समुद्र को सोखने
वाला वडवानल यानि अग्नियुक्त वायु है।
【10】पापों के जंगल को जला डालने वाला दावानल यानि फैलने वाली अग्नि है।
【11】स्कन्दपुराण के अनुसार-
यह पंचाक्षर मन्त्र वटवृक्ष के बीज की
भाँति हैं, जो सब कुछ देने वाला तथा सर्वसमर्थ माना गया है।
【12】इस मन्त्र को जपने के लिए
कोई महूर्त, दिन-वार लग्न, तिथि, नक्षत्र
और योग का विचार नहीं किया जाता।
【13】पंचाक्षर मन्त्र कभी सुप्त, लुप्त
या विमुक्त नहीं होता।
【14】यह मन्त्र सदा जाग्रत ही रहता है।
【15】अत: पंचाक्षर मन्त्र ऐसा है,
जिसका जाप, अनुष्ठान सब लोग
किसी भी अवस्थाओं में कर सकते हैं।
【16】पंचाक्षर मन्त्र के जाप से अनेक जन्मों के पाप क्षय होकर 8 तरह के अष्टदरिद्र दूर हो जाते हैं।
शिवावतार जगतगुरु अदिशंकराचार्य
ने लिंगाष्टकम स्तोत्र में लिखा भी है-
!!अष्टदरिद्र विनाशन लिंगम!!
【17】यह मन्त्र भगवान शिव का
हृदय–शिवस्वरूप, गूढ़ से भी गूढ़
विद्या, अथाह सुख-सम्पदा, ऐश्वर्य,
प्रसिद्धि और मोक्ष ज्ञान देने वाला है।
【18】यह मन्त्र समस्त वेदों का
सार है। परमात्मा का वास है इसमें।
【19】यह अलौकिक मन्त्र मनुष्यों
के मन में चैन-अमन देकर तन को
तन्दरुस्त बनाने वाला है।
【20】यह शिव की आज्ञा से सिद्ध है।
【21】पंचाक्षर मन्त्र का निरन्तर जाप तन्त्र-मन्त्र-यन्त्र तथा नाना प्रकार की
सिद्धियों को देने वाला है।
【22】इस मन्त्र के जाप से साधक
को लौकिक, पारलौकिक सुख,
त्रिकाल दृष्टि, इच्छित फल एवं
पुरुषार्थ की प्राप्ति हो जाती है।
【23】यह मन्त्र मुख से उच्चारण
करने योग्य, सम्पूर्ण प्रयोजनों को
सिद्ध करने वाला व सभी विद्याओं
का बीजस्वरूप है।
【24】यह मन्त्र सम्पूर्ण वेद, उपनिषद्,
पुराण और शास्त्रों का आभूषण व सब
पापों का नाश करने वाला है।
【25】ॐ नमःशिवाय-यह सृष्टि
निर्माण के वक्त स्वतः ही उत्पन्न
हुआ सबसे पहला मन्त्र है।
【26】प्रलयकारी परिस्थितियों में
संहार के समय सृष्टि का हर कण इसमें समाहित रहकर सुरक्षित हो जाता है।
पूरा शिव पंचाक्षर स्तोत्र क्या है…
इसके पाँचों श्लोकों में क्रमशः
न-म:-शि-वा-य है। अत: यह स्तोत्र
पंचतत्व परिपूर्ण शिव का ही स्वरूप है…
नमःशिवाय का श्लोक विस्तार से जाने..
{1} पहले “न”- अक्षर से••••
नागेन्द्रहाराय त्रिलोचनाय
भस्मांगरागाय महेश्वराय। नित्याय शुद्धाय दिगम्बराय
तस्मै ‘न’ काराय नम: शिवाय !!1!!
श्रुति ग्रंथों की पारंपरिक रूप मंत्र कहा जाता है। इसका शाब्दिक अर्थ विचार या चिन्तन होता है [1]। मंत्रणा, और मंत्री इसी मूल से बने शब्द हैं। मन्त्र भी एक प्रकार की वाणी है, परन्तु साधारण वाक्यों के समान वे हमको बन्धन में नहीं डालते, बल्कि बन्धन से मुक्त करते हैं।[2]
काफी '"चिन्तन-मनन'" के बाद किसी समस्या के समाधान के लिये जो उपाय/विधि/युक्ति निकलती है उसे भी सामान्य तौर पर मंत्र[3] कह देते हैं। "षड कर्णो भिद्यते मंत्र" (छ: कानों में जाने से मंत्र नाकाम हो जाता है) - इसमें भी मंत्र का यही अर्थ है।
आध्यात्मिकसंपादित करें
परिभाषा: मंत्र वह ध्वनि है जो अक्षरों एवं शब्दों के समूह से बनती है।[4]. यह संपूर्ण संसार एक तरंगात्मक ऊर्जा से व्याप्त है जिसके दो
- प्रकार हैं - नाद (शब्द) एवं प्रकाश। आध्यात्मिक धरातल पर इनमें से शब्कोई भी एक प्रकार की ऊर्जा दूसरे के बिना सक्रिय नहीं होती। मंत्र मात्र वह ध्वनियाँ नहीं हैं जिन्हें हम कानों से सुनते हैं, यह ध्वनियाँ तो मंत्रों का लौकिक स्वरुप भर हैं।
ध्यान की उच्चतम अवस्था में साधक का आध्यात्मिक व्यक्तित्व पूरी तरह से प्रभु के साथ एकाकार हो जाता है जो अन्तर्यामी है। वही सारे ज्ञान एवं 'शब्द' (ॐ) का स्रोत है। प्राचीन ऋषियों ने इसे शब्द-ब्रह्म की संज्ञा दी - वह शब्द जो साक्षात् ईश्वर है! उसी सर्वज्ञानी शब्द-ब्रह्म से एकाकार होकर साधक मनचाहा ज्ञान प्राप्त कर सकता है।
मंत्र विज्ञान
हम जो कुछ भी बोलते हैं उसका प्रभाव व्यक्तिगत और समष्टिगत रूप से सारे ब्रह्माण्ड पर पड़ता है। हमारे मुख से निकला हुआ प्रत्येक शब्द आकाश के सूक्ष्म परमाणुओं में कंपन उत्पन्न करता है और इस कंपन से लोगों में अदृश्य प्रेरणाएँ जाग्रत होती हैं। वस्तुतः मंत्र विज्ञान में इन्फ्रासोनिक स्तर की सूक्ष्म ध्वनियाँ काम करती हैं। मंत्र जप से एक प्रकार की विद्युत चुम्बकीय ( इलेक्ट्रो मैग्नेटिक) तरंगें उत्पन्न हो जाती हैं। जो समूचे शरीर में फैल कर अनेक गुना विस्तृत हो जाती हैं। इससे प्राणऊर्जा की क्षमता एवं शक्ति में अभिवृद्धि होती है[5]
मंत्र जप से उत्पन्न प्रकंपन, शरीर के सूक्ष्म तंत्रों तथा हार्मोन प्रणाली पर अपना गहरा प्रभाव डालते हैं जिससे उनकी सक्रियता बढ़ जाती है और समुचित मात्रा में हार्मोन का स्राव होने लगता है।
मंत्र विद जानते हैं कि मस्तिष्क में विचारों की उपज कोई आकस्मिक घटना नहीं, वरन शक्ति की परतों में आदिकाल से एकत्रित सूक्ष्म कंपन हैं जो मस्तिष्क के ज्ञान कोषों से टकराकर विचार के रूप में प्रकट होते हैं।
ओंकार (ओउम्) अथवा प्रणव का जप अत्यन्त प्रभावशाली यौगिक अभ्यास है।ओंकार परमात्मा का नाम, मंत्रों का अधिपति है। यही वह स्वरूप है जिसका सृष्टि के प्रारम्भ के लिए उद्भव हुआ ।
श्रद्धा साधना का प्राण है, मूल है इसलिए धीरे- धीरे ही सही, परंतु हृदय की गहराई से मंत्र जप करना चाहिए। मंत्र का प्रत्यक्ष रूप ध्वनि है ।ध्वनि के क्रमबद्ध, लयबद्ध और वृत्ताकार क्रम से निरंतर एक ही शब्द विन्यास के उच्चारण से शब्द तरंगें वृत्ताकार घूमने लगती हैं। इसके फलस्वरूप हुए परिणामों को मंत्र का चमत्कार कहा जा सकता है ।
मंत्र की उत्पत्तिसंपादित करें
मंत्र की उत्पत्ति विश्वास से और सतत मनन से हुई है। आदि काल में मंत्र और धर्म में बड़ा संबंध था। प्रार्थना को एक प्रकार का मंत्र माना जाता था। मनुष्य का ऐसा विश्वास था कि प्रार्थना के उच्चारण से कार्यसिद्धि हो सकती है। इसलिये बहुत से लोग प्रार्थना को मंत्र समझते थे।
जब मनुष्य पर कोई आकस्मिक विपत्ति आती थी तो वह समझता था कि इसका कारण कोई अदृश्य शक्ति है। वृक्ष का टूट पड़ना, मकान का गिर जाना, आकस्मिक रोग हो जाना और अन्य ऐसी घटनाओं का कारण कोई भूत या पिशाच माना जाता था और इसकी शांति के लिये मंत्र का प्रयोग किया जाता था। आकस्मिक संकट बार-बार नहीं आते। इसलिये लोग समझते थे कि मंत्र सिद्ध हो गया। प्राचीन काल में वैद्य ओषधि और मंत्र दोनों का साथ-साथ प्रयोग करता था। ओषधि को अभिमंत्रित किया जाता था और विश्वास था कि ऐसा करने से वह अधिक प्रभावोत्पादक हो जाती है। कुछ मंत्रप्रयोगकर्ता (ओझा) केवल मंत्र के द्वारा ही रोगों का उपचार करते थे। यह इनका व्यवसाय बन गया था।
मंत्र का प्रयोग सारे संसार में किया जाता था और मूलत: इसकी क्रियाएँ सर्वत्र एक जैसी ही थीं। विज्ञान युग के आरंभ से पहले विविध रोग विविध प्रकार के राक्षस या पिशाच माने जाते थे। अत: पिशाचों का शमन, निवारण और उच्चाटन किया जाता था। मंत्र में प्रधानता तो शब्दों की ही थी परंतु शब्दों के साथ क्रियाएँ भी लगी हुई थीं। मंत्रोच्चारण करते समय ओझा या वैद्य हाथ से, अंगुलियों से, नेत्र से और मुख से विधि क्रियाएँ करता था। इन क्रियाओं में त्रिशूल, झाड़ू, कटार, वृक्षविशेष की टहनियों और सूप तथा कलश आदि का भी प्रयोग किया जाता था। रोग की एक छोटी सी प्रतिमा बनाई जाती थी और उसपर प्रयोग होता था। इसी प्रकार शत्रु की प्रतिमा बनाई जाती थी और उसपर मारण, उच्चाटन आदि प्रयोग किए जाते थे। ऐसा विश्वास था कि ज्यों-ज्यों ऐसी प्रतिमा पर मंत्रप्रयोग होता है त्यों-त्यों शत्रु के शरीर पर इसका प्रभाव पड़ता जाता है। पीपल या वट वृक्ष के पत्तों पर कुछ मंत्र लिखकर उनके मणि या ताबीज बनाए जाते थै जिन्हें कलाई या कंठ में बाँधने से रोगनिवारण होता, भूत प्रेत से रक्षा होती और शत्रु वश में होता था। ये विधियाँ कुछ हद तक इस समय भी प्रचलित हैं। संग्राम के समय दुंदुभी और ध्वजा को भी अभिमंत्रित किया जाता था और ऐसा विश्वास था कि ऐसा करने से विजय प्राप्त होती है।
ऐसा माना जाता था कि वृक्षों में, चतुष्पथों पर, नदियों में, तालाबों में और कितने ही कुओं में तथा सूने मकानों में ऐसे प्राणी निवास करते हैं जो मनुष्य को दु:ख या सुख पहुँचाया करते हैं और अनेक विषम स्थितियाँ उनके कोप के कारण ही उत्पन्न हो जाया करती हैं। इनका शमन करने के लिये विशेष प्रकार के मंत्रों और विविधि क्रियाओं का उपयोग किया जाता था और यह माना जाता था कि इससे संतुष्ट होकर ये प्राणी व्यक्तिविशेष को तंग नहीं करते। शाक्त देव और देवियाँ कई प्रकार की विपत्तियों के कारण समझे जाते थे। यह भी माना जाता था कि भूत, पिशाच और डाकिनी आदि का उच्चाटन शाक्त देवों के अनुग्रह से हो सकता है। इसलिये ऐसे देवों का मंत्रों के द्वारा आह्वान किया जाता था। इनकी बलि दी जाती थी और जागरण किए जाते थे।
मारण मंत्रसंपादित करें
अपने शत्रु पर ओझा के द्वारा लोग मारण मंत्र का प्रयोग करवाया करते थे। इसमें मूठ नामक मंत्र का प्रचार कई सदियों तक रहा। इसकी विधि क्रियाएँ थीं लेकिन सबका उद्देश्य यह था कि शत्रु का प्राणांत हो। इसलिये मंत्रप्रयोग करनेवाले ओझाओं से लोग बहुत भयभीत रहा करते थे और जहाँ परस्पर प्रबल विरोध हुआ वहीं ऐसे लोगों की माँग हुआ करती थी। जब किसी व्यक्ति को कोई लंबा या अचानक रोग होता था तो संदेह हुआ करता था कि उस पर मंत्र का प्रयोग किया गया है। अत: उसके निवारण के लिये दूसरा पक्ष भी ओझा को बुलाता था और उससे शत्रु के विरूद्ध मारण या उच्चाटन करवाया करता था। इस प्रकार दोनों ओर से मंत्रयुद्ध हुआ करता था।
जब संयोगवश रोग की शांति या शत्रु की मृत्यु हो जाती थी तो समझा जाता था कि यह मंत्रप्रयोग का फल है और ज्यों-ज्यों इस प्रकार की सफलताओं की संख्या बढ़ती जाती थी त्यों-त्यों ओझा के प्रति लागों का विश्वास द्दढ़ होता जाता था और मंत्रसिद्धि का महत्व बढ़ जाता था। जब असफलता होती थी तो लोग समझते थे कि मंत्र का प्रयोग भली भाँति नहीं किया गया। ओझा लोग ऐसी क्रियाएं करते थे जिनसे प्रभावित होकर मनुष्य निश्चेष्ट हो जाता था। क्रियाओं को इस समय हिप्नोटिज्म कहा जाता है।
मंत्रग्रन्थसंपादित करें
मंत्र, उनके उच्चारण की विधि, विविधि चेष्टाएँ, नाना प्रकार के पदार्थो का प्रयोग भूत-प्रेत और डाकिनी शाकिनी आदि, ओझा, मंत्र, वैद्य, मंत्रौषध आदि सब मिलकर एक प्रकार का मंत्रशास्त्र बन गया है और इस पर अनेक ग्रंथों की रचना हो गई है।
मंत्रग्रंथों में मंत्र के अनेक भेद माने गए हैं। कुछ मंत्रों का प्रयोग किसी देव या देवी का आश्रय लेकर किया जाता है और कुछ का प्रयोग भूत प्रेत आदि का आश्रय लेकर। ये एक विभाग हैं। दूसरा विभाग यह है कि कुछ मंत्र भूत या पिशाच के विरूद्ध प्रयुक्त होते हैं और कुछ उनकी सहायता प्राप्त करने के हेतु। स्त्री और पुरुष तथा शत्रु को वश में करने के लिये जिन मंत्रों का प्रयोग होता है वे वशीकरण मंत्र कहलाते हैं। शत्रु का दमन या अंत करने के लिये जो मंत्रविधि काम में लाई जाती है वह मारण कहलाती है। भूत को उनको उच्चाटन या शमन मंत्र कहा जाता है।
लोगों का विश्वास है कि ऐसी कोई कठिनाई, कोई विपत्ति और कोई पीड़ा नहीं है जिसका निवारण मंत्र के द्वारा नहीं हो सकता और कोई ऐसा लाभ नहीं है जिसकी प्राप्ति मंत्र के द्वारा नहीं हो सकती।
इन्हें भी देखेंसंपादित करें
- स्तोत्र
- गायत्री मंत्र
- णमोकार मंत्र
- तिरुमंत्रम्
- स्वस्तिक मन्त्र
- मोहनमंत्र
- षडयंत्र
- वशीकरण मंत्र
- तंत्र साहित्य (भारतीय)
बाहरी कड़ियाँसंपादित करें
- प्रमुख वैदिक मंत्र (अर्थ सहित)
- मंत्र शक्ति (गूगल पुस्तक)
- सिद्ध मंत्र शक्ति (सिद्ध मंत्र)
सन्दर्भसंपादित करें
- ↑ संस्कृत में मननेन त्रायते इति मन्त्रः - जो मनन करने पर त्राण दे वह मन्त्र है
- ↑ श्रीमद्भगवदगीता - टीका श्री भूपेन्द्रनाथ सान्याल, प्रथम खण्ड, अध्याय 1, श्लोक 1
- ↑ "सभी ग्रहो के बीज़ मंत्र जो बदल सकते हैं आपका जीवन". Jai Bhole.
- ↑ आप स्वामी वेद भारती की पुस्तक "मंत्र: क्यों और कैसे पढ़ लें.
- ↑ "मन्त्र - सिद्धि -विज्ञान". Speaking tree. मूल से 7 अप्रैल 2020 को पुरालेखित.