नरकट
नरकट एक घास है जिसके पौधे का तना खोखला गाँठ वाला होता है। पहले इसकी कलम बनायी जाती थी। इसका उपयोग टाटी, झोपड़ा, छप्पर आदि बनाने के काम आती है। इसे कच्चे बांधों के बगल में लगा देने से इसकी जड़ें मिट्टी को बाँध लेती हैं जिससे मिट्टी का कटांव नहीं हो पाता। इसको ईंधन के रूप में एवं फर्नीचर आदि के लिये भी उपयोग में लाया जाता है।
बाहरी कड़ियाँ
संपादित करें- अस्तित्व खोता जा रहा नरकट[मृत कड़ियाँ] (दैनिक जागरण)
- Arundo as an invasive species in California
- The Nature Conservancy: Arundo donax Info
- The Nature Conservancy Weed Control Methods Handbook
- Images of Arundo Donax
- Arundo donax (Plants for a Future Databases)
- Arundo donax Info (USDA Forest Service)
- The Power in Plants: Biofuels and the Giant Cane Debate (UNC News21: Powering A Nation)
- More info on Giant Reed from the Center for Invasive Species Research
अरुण्डो डोनेक्स एल. (विशालकाय केन) सी ३ घास प्रजाति की उपप्रजाति अरुण्डिनोइडी के पोएसी परिवार के अंतर्गत आने वाला एक बारहमासी घास है। जो सामान्यतः नम मिटटी तथा कम खारे पानी में उगता है विशालकाय केन दक्षिण पश्चिमी नदी के तट पर पाया जाने वाला एक आक्रमणशील घास है। यह भूमध्य बेसिन तथा मध्य पूर्व एशिया का मूल निवासी है तथा दक्षिणी कैलिफ़ोर्निया में सजावटी पौधे के रूप में आयातित किया गया। दक्षिण पश्चिम क्षेत्र में एरिज़ोना एंड न्यू मैक्सिको आते हैं जिनके अंतर्गत ग्यारह राष्ट्रीय वन आते हैं।
इसके पौधे नौ से तीस फुट तक लम्बे, बांस की तरह खोखले तथा २ से ३ सेंटीमीटर व्यास की दृढ गांठें होती हैं। सामान्य परिस्थितियों में इसकी पत्तियां रूपांतरित, पतली नोकदार, ३० से ६० सेंटीमीटर लम्बी, २ से ६ सेंटीमीटर चौड़ी होती हैं। पत्तियों का रंग सलेटी व हरा तथा पत्तियों के आधार पर रेशों का गुच्छा होता है। कुल मिलकर पौधे बाहर से सामान्य ईख या बांस जैसे दिखाई देते हैं।
अरुण्डो डोनेक्स में अक्सर पछेती गर्मियों में फूल आते हैं जोकि ४९ से ६० सेंटीमीटर लम्बे, सीधे व हलके पंखों से ढके हुए होते हैं। प्राय: इसके फल बीजरहित होते हैं तथा कभी कभी उपजाऊ क्षमता वाले होते हैं। इस प्रजाति में वानस्पतिक प्रजनन भूमिगत प्रकन्दों द्वारा होता है। प्रकंद सख्त, रेशेदार तथा गाँठोयुक्त होते हैं, इसके चटाई जैसे फैले हुए कठोर रेशे होते हैं जो जमीन में एक मीटर तक गहरे चले जाते हैं।
बंध्यह या अनुर्वर बीजों के कारण इस प्रजाति में अलैंगिक प्रजनन होता है। यह प्रजाति न्यूनतम ७ डिग्री सेंटीग्रेट तथा अधिकतम 3० डिग्री सेंटीग्रेट तापमान पर उगाई जा सकती है। बाढ़ जैसी परिस्थितियों में प्रकन्द यदि ५ सेंटीमीटर तक के छोटे छोटे टुकड़ो में विभाजित होने पर भी पुनः अंकुरित होने की क्षमता रखते हैं।
प्रकाश संतृप्ति के अभाव के कारण यह एक उच्च प्रकाश संश्लेषक क्षमता वाली घास है। अन्य सी ३ और सी ४ प्रजातियों की तुलना में कार्बन डाई ऑक्साइड विनिमय की दर अधिक है। अलैंगिक प्रजनन के कारण इसमें अनुवांशिक परिवर्तनशीलता कम होती है। कटान को नियंत्रित करने वाली प्रजाति के अतिरिक्त जल निकासी खाईयों के रूप में भी इसका प्रयोग किया जाता है। प्राकृतिक परिस्थिति में,अधिकतम कार्बन डाई ऑक्साइड 19.8 और 36.7 के बीच विकिरण पत्तियां की आयु के आधार पर , यह पत्ती प्रवाहकत्त्व द्वारा विनियमित है।
ऊतक संवर्धन तकनीक सूक्ष्म प्रजनन तथा जननद्रव्य संरक्षण की उपयोगी विधि है। इस तकनीक द्वारा ए. अरुण्डो के नए पौधे तैयार करने में पारंपरिक विधि से कम समय लगता है। जिससे न केवल बीमारियों रहित स्वस्थ पौध कम समय में तैयार किये जा सकते हैं, बल्कि संवर्धनों को अनुवांशिक रूप से स्थायी भी बनाया जा सकता है। कम मात्रा में उपलब्ध ऊतक से कांच की परखनलियों में कृत्रिम लवण माध्यम के उपयोग से पूरे वर्ष स्वस्थ पौध तैयार की जा सकती है। संवर्धन के लगभग चार से छह सप्ताह पश्चात् प्रत्येक परखनली में नयी स्वस्थ परन्तु छोटी पौध तैयार हो जाती है। इन्हीं पौध को पुनः संवर्धित करके प्रति पादपकों से अन्य पौध तैयार की जा सकती है। इस तकनीक द्वारा एक पौधे से तीन से चार महीने में दो सौ से चार सौ तक पौधे तैयार किये जा सकते हैं।
कृत्रिम परिस्थितियों में संरक्षित कृषि वानिकी फसल ए. अरुण्डो के पौधों को जीवाणुओं के संक्रमण से बचाने हेतु विभिन्न प्रकार के रासायनिक घोल जैसे बाविस्टीन, ट्वीन- 20 अथवा मरकुरिक क्लोराइड की अलग -२ सांद्रता से उपचारित किया जाता है। संवर्धन के लिए मुरासिगे एवं सकूग द्वारा प्रस्तावित पौध पौषक माध्यम जिसमें विभिन्न प्रकार के पौध वर्धक नियंत्रक की आंशिक मात्रा (की अलग -२ सांद्रता), तीन से छः प्रतिशत शर्करा एवं कुछ मात्रा में अर्ध ठोस चिपचिपे घटक का मिश्रण प्रयुक्त किया जाता है। संवर्धित करने से पहले पौध पौषक माध्यम को 121 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान पर 15 से 18 मिनट के लिए उपचारित करके जीवाणुनाशक बनाया जाता है। सतह उपचारित छोटे छोटे पादपकों को गुच्छों से विभाजित करके पौध पौषक युक्त परखनलियों में 25 से 28 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान पर संवर्धित करके कृत्रिम रूप से बने संवर्धन कक्ष में रखा जाता है।
ऊतक संवर्धन तकनीक द्वारा तैयार किये गए पौधे कृत्रिम परिस्थितियों में सख्त तकनीक के माध्यम से खेत में स्थानांतरित करने के लिए तैयार हो जाते हैं। इन पौधों को कांच की परखनलियों से निकालकर पौधों की जड़ों से कृत्रिम पौध पौषक माध्यम तथा चिपचिपे घटक (अगार) दूर करने के लिए उन्हें बहते पानी के नल के नीचे धोया जाता है। तत्पश्चात पौधों को निष्फल मिट्टी युक्त 10 सेमी व्यास के प्लास्टिक के गमले में रोपित कर दिया जाता है। पौधों युक्त गमलों को छिद्रित पारदर्शी पॉलीथीन बैग (20 × 30 सेमी) से ढककर 25 में 30 डिग्री सेल्सियस तापमान 10 μ मोल मीटर-2 प्रति सेकंड के विकिरण के साथ तापदीप्त बल्बों द्वारा प्रदान की रोशनी के नीचे एक सप्ताह के लिए 10 घंटे प्रकाश अवधि के तहत रखा जाता है। पौधों को एक दिन के अंतराल पर अगले सप्ताह के लिए एक चौथाई सामर्थ्य व् उसके बाद एक सप्ताह तक आधी सामर्थ्य वाले एमएस कृत्रिम पौध पौषक लवण से सिंचित किया जाता है। पौधों युक्त गमलों को छाया और उच्च आर्द्रता वाली परिस्थिति में रखा जाता है।. एक सप्ताह बाद पॉलीथीन बैग को थोड़ा सा हटा दिया जाता है और तीन सप्ताह बाद पौधों को पूरी तरह से प्रकाश में लाने के एक सप्ताह के बाद. मिट्टी, लकड़ी का बुरादा और फार्म क्षेत्र की खाद के मिश्रण 2:1:1 में स्थानांतरित कर दिया जाता है।
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