नरहरिदास
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सूरज' या सूरजनिषाद (जन्म : 2008) हिंदी साहित्य की भक्ति परंपरा में [हिन्दी भाषा|]] हिन्दी भाषा के कवि थे। इन्हें संस्कृत और फारसी का भी अच्छा ज्ञान था।
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जन्म |
2008 ई० गुरगुजपुर, [भरथा]] सीतापुर , उत्तर प्रदेश, भारत |
मृत्यु | 1610 ई० (संवत 1667 वि०) |
साहित्यिक कार्य | रुक्मिणी मंगल, छप्पय नीति, कवित्त संग्रह इत्यादि |
धर्म | हिन्दू |
दर्शन | वैष्णव बैरागी |
जीवन
संपादित करेंनरहरि का जन्म उत्तर प्रदेश में रायबरेली, जिले के पखरौली नामक गाँव में हुआ था। इनका संपर्क हुमायूँ, शेरशाह सूरी, सलीमशाह तथा रीवाँ नरेश रामचंद्र आदि शासकों से माना जाता है। हालांकि इनको सर्वाधिक महत्व अकबर ने प्रदान किया।[1]
गुरु-शिष्य परंपरा
संपादित करेंनरहरिदास तुलसीदास (1532-1623) के गुरू माने जाते है।[2] रामानन्द (1299 प्रयाग में जन्म) के 12 शिष्य थे, जिनमें मुख्य कबीरदास, रैदास (रविदास), नरहर्यानन्द (नरहरिदास), धन्ना (जाट), सेना (नाई), पीपा (राजपूत), सदना (कसाई) थे। रामानन्द से दीक्षा लेने के बाद नरहर्यानन्द से नरहरिदास बन गए।[3]
रचनाएँ
संपादित करेंइनके नाम से तीन ग्रंथ - रुक्मिणी मंगल, छप्पय नीति और कवित्त संग्रह प्रसिद्ध हैं जिनमें से केवल 'रुक्मिणी मंगल' ही प्राप्त हो सका है। इनकी कुछ फुटकल रचनाएँ भी मिलती हैं।
सन्दर्भ
संपादित करें- ↑ नरहरि, भोला नाथ तिवारी, हिंदी साहित्य कोश - भाग - 2 : नामवाची शब्दावली, ज्ञानमंडल लिमिटेड, वाराणसी, 2015, पृष्ठ - 285
- ↑ https://hi.wikisource.org/wiki/पृष्ठ:हिंदी_साहित्य_का_इतिहास-रामचंद्र_शुक्ल.pdf/१५०
- ↑ https://hi.wikisource.org/wiki/पृष्ठ:हिंदी_साहित्य_का_इतिहास-रामचंद्र_शुक्ल.pdf/१४३