परम्परानुसार नवकलेवर का कार्य तब किया जाता है जब आषाढ़ मास अधिकमास होता है। यह प्रायः ८ वर्ष बाद, ११ वर्ष बाद या १९ वर्ष बाद आता है। ये मूर्तियाँ एक विशेष प्रकार की नीम की लकड़ी से बनायीं जाती हैं जिसे 'दारु ब्रह्म' कहते हैं। सभी मूर्तियों के लिए  वृक्ष की तलाश के साथ यह उत्सव प्रारंभ होता हे । भगवान जगन्नाथ क लिए चार शाखाओं, बलभद्र के लिए सात शाखाओं, सुभद्रा के लिए पाँच तथा सुदर्शन के लिए तीन शाखाओं के वृक्ष की तलाश की जाती है ।

जगन्नाथ मंदिर का पीछे का भाग। इसमें कोइली बैकुण्ठ उद्यान देखा जा सकता है जहाँ नवकलेवर उत्सव होता है।
नवकलेवर अधिकांश जगन्नाथ मंदिरों से जुड़ा एक प्राचीन उत्सव है जब भगवान जगन्नाथ, बलभद्र, सुभद्रा और सुदर्शन की पुरानी मूर्तियों को बदलकर नयी मूर्तियाँ स्थापित की जातीं हैं। नवकलेवर = नव+कलेवर, अर्थात जगन्नाथ, बलभद्र, सुभद्रा और सुदर्शन पुराना शरीर त्यागकर नया शरीर धारण करते हैं।

चैत्र मास से ही इस उत्सव की तैयारियाँ आरम्भ हो जातीं हैं। पिछली बार यह १९९६ में हुआ था। अगला नवकलेवर २०१५ में होना है जिसमें ३० लाख से भी अधिक श्रद्धालुओं के दर्शन करने की आशा है।

इसके पूर्व नवकलेवर १७३३, १७४४, १७५२, १७७१, १७९०, १८०९, १८२८, १८३६, १८५५, १८७४, १८९३, १९१२, १९३१, १९५०, १९६९, १९७७ और १९९६ में हुआ था।

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