नसीराबाद, रायबरेली

(नसीराबाद से अनुप्रेषित)

पूरे निहाली दुबे (Nasirabad) भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के रायबरेली ज़िले में स्थित एक गाँव है।[1]

नसीराबाद
Nasirabad
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नसीराबाद is located in उत्तर प्रदेश
नसीराबाद
नसीराबाद
उत्तर प्रदेश में स्थिति
निर्देशांक: 26°12′36″N 81°30′40″E / 26.210°N 81.511°E / 26.210; 81.511निर्देशांक: 26°12′36″N 81°30′40″E / 26.210°N 81.511°E / 26.210; 81.511
देश भारत
राज्यउत्तर प्रदेश
ज़िलारायबरेली ज़िला
क्षेत्र9.379 किमी2 (3.621 वर्गमील)
ऊँचाई101 मी (331 फीट)
जनसंख्या (2011)
 • कुल13,648
भाषाएँ
 • प्रचलितहिन्दी, अवधी
समय मण्डलभारतीय मानक समय (यूटीसी+5:30)
पिनकोड229307
दूरभाष कोड91-5313
वाहन पंजीकरणUP-33
लिंगानुपात1082 /

[2]इस गांव में सभी ब्राम्हण है। इस गांव को निहाली दुबे जी ने बसाया है उन्हीं के नाम पर इस गांव का नाम निहाली दुबे रखा गया। यह गांव आलमपुर ग्राम पंचायत के अन्तर्गत आता है।




विवरण संपादित करें

नसीराबाद का जिला रायबरेली, तहसील सलोन, परगना रोखा और ब्लाक छतोह है। नसीराबाद पहले ग्राम सभा के तौर पर था जिसे बाद में 29 दिसंबर वर्ष 2016 में नगर पंचायत बनाया गया जिसमें 15 वार्ड हैं।

इतिहास संपादित करें

भारत के उत्तरप्रदेश राज्य में रायबरेली जिले का एक ऐतिहासिक क़स्बा। रायबरेली से लगभग 32 किलोमीटर दूरी पर स्थित है। शियों के सबसे बड़े आलिमे दीन जनाब हज़रत ग़ुफ़रान माब दिलदार अली नसीराबादी इसी क़स्बे से ताल्लुक़ रखते हैं। पुराने काग़जात व मज़ामीन से ज़ाहिर होता है कि आबादी क़स्बा नसीराबाद को 872 साल गुज़रे हैं। ये सन् 440 में बसा था। यहां की तामीरी मस्जिद ताड़ की मस्जिद मशहूर है। इसकी तारीख़े तामीर मुक़ाम इब्राहीम है।

नसीराबाद का नाम पहले पटाकपुर था। जिसको सय्यद ज़करिया ने फ़तह किया और इसका नाम अपने जद्दे आला नसीरुद्दीन के नाम पर नसीराबाद रखा। वो वहां की मिलकियात पर क़ाबिज़ व दख़ील हुये और बग़ैर किसी दूसरे की शिरकत के अपनी औलाद के क़ब्ज़े व तसर्रुफ़ में छोड़ा। पटाकपुर उस ज़माने में एक क़रिया था। उस वक़्त हिन्दोस्तान में बहलोल लोदी बरसरे हुकूमत था और पूरा नक़वी ख़ानदान नसीराबाद में बालाए क़ला रिहाइश पज़ीर था। उसी दौरान शेरशाह सूरी के दादा इब्राहीम खा़न हिन्दोस्तान आये। इब्राहीम ख़ान का ताल्लुक़ उन पठानों की नस्ल से था जो सूरी कहलाते थे। ये पठान नस्ल सुलेमान घाटी के आस पास थी। शेरशाह हमार-फ़िराज़ा में 15 जून सन् 1486 में पैदा हुआ। उसके बचपन का नाम फ़रीद था। शेरशाह जब जवान हुआ तो उसने कई जगह मुलाज़िमत की और आख़िर में जौनपुर के जमाल खां सारंग के पास चला गया। वहीं उसने हर तरह की तालीम हासिल की। जिसके बाद वो पठानों में क़ाबिल समझा जाने लगा। आख़िर में उसने दौलत ख़ान की मुलाज़मत कर ली। दौलत ख़ान इब्राहीम लोदी का ख़ास आदमी था। ये उस दौर की बात है जब बाबर ने हिन्दोस्तान पर हमला किया। और उस हमले में इब्राहीम लोदी मारा गया और बाबर हिन्दोस्तान के तख़्त पर बैठा। उस वक़्त मुहम्मद ख़ान सुल्तान था। चूंकि फ़रीद ने अपनी तलवार से शेर को मारा था। इसलिये सुल्तान मुहम्मद ख़ान ने उसे शेरशाह का ख़िताब दिया।

शेरशाही तारीख़ नवीस अब्बास ख़ान ने तारीख़ में लिखा है कि शेरशाह ने मेरे चचा शेख़ मोहम्मद से पठानों के ज़रिये एक गिरोह से कहा था कि तुम इस बात के गवाह रहना कि मैं वादा करता हूं कि अगर क़िस्मत ने साथ दिया तो मैं हिन्दोस्तान से मुग़लों को निकाल दूंगा। बाबर ने अपने बेटे हुमायूं के लिये हिन्दोस्तान की अज़ीम सल्तनत छोड़ी जिसे वह सम्हाल ना सका। शेरशाह और हुमायूं के बीच एक जंग हुयी। जो कन्नौज के क़रीब गंगा के किनारे सन् 1540 में हुयी। इस जंग में हुमायूं की हार हुयी। वह अपनी जान बचाकर ईरान भाग गया। देहली के तख़्त पर शेरशाह का क़ब्ज़ा हो गया। कन्नौज की जंग में नसीराबाद के नक़वी ख़ानदान ने शेरशाह का साथ दिया। हालांकि उसे हुकूमत करने का ज़्यादा मौक़ा ज्यादा हासिल नहीं हुआ लेकिन उसने अपनी सल्तनत का इन्तेज़ाम निहायत ख़ूबी से किया। सन् 1548 में शेरशाह की मौत हो गयी। जिसके बाद सन् 1555 में सूरी ख़ानदान की हुकूमत ख़त्म हो गयी। हुमायूं ने सन् 1555 में दोबारा हिन्दोस्तान पर हमला करके उसे फ़तह किया और दिल्ली की हुकूमत हासिल कर ली। चूंकि नसीराबाद के नक़वी ख़ानदान ने सन् 1540 की जंग में उसके ख़िलाफ़ शेरशाह का साथ दिया था। इसलिये हुमायूं ने वहां सख़्ती कर दी। मानिकपुर के कड़े के रहने वाले महमूद क़त्बी को नसीराबाद का क़ाज़ी मुक़र्रर किया गया। जो नसीराबाद आकर मोहल्ला अहले देयाल में मुस्तक़िल रहने लगा। जिसे बाद में हुमायूं ने अलग कर दिया। हुमायूं के ख़ौफ़ से नसीराबाद के नक़वी ख़ानदान के लोग हट गये और रूपोश हो गये। सभी ने अज़ीमाबाद के नज़दीक खोवाबन नाम के जंगल में जाकर पनाह ली और सुकूनत अख़्तियार की। जिनमें से कुछ लोग रोज़गार की तलाश में इधर उधर चले गये। जो आज भी अमरोहा, बारहा व सम्भल वग़ैरह में मौजूद हैं। बाक़ी बचे लोग उसी जंगल में बसर करते रहे। इस वक़्त वो जंगल बाक़ी नहीं है लेकिन अज़ीमाबाद शहर में एक मोहल्ला खोड़पुरा मौजूद है। जो ग़ालिबन खोवाबन से बिगड़कर खोड़पुरा हो गया है।

दोबारा दिल्ली के तख़्त बर बैठने के बाद हुमायूं एक साल तक ज़िन्दा रहा। उसकी मौत क़िले के ज़ीने से गिरकर हो गयी। जिसके बाद दिल्ली का तख़्त अकबर ने सम्हाला। सय्यद महमूद क़त्बी ने रूपोश हुये नसीराबाद के नक़वी ख़ानदान के लोगों को हालात साज़गार होने की इत्तला दी। नक़वी सादात दोबारा पलटकर नसीराबाद आये और रिहाइश इख़्तेयार की। लेकिन उनमें से जो लोग खोवाबन के जंगल से रोज़गार की तलाश में चले गये थे वो वापस ना आये। (वो नक़वी हज़रात शजरे के ज़रिये अपना ताल्लुक़ नसीराबाद से मालूम कर सकते हैं।) जो नक़वी सादात नसीराबाद वापस हुये उन हज़रात ने महमूद क़त्बी के साथ मिलकर बालाए क़िला चार मोहल्लों की चाहर जानिब तश्कील की। महमूद क़त्बी सुन्नत जमात से ताल्लुक़ रखते थे और क़ाज़ी थे, उनके मोहल्ले का नाम क़जियाना रखा गया। बाक़ी तीन मोहल्ले हाशमी नक़वी सय्यद जलालुद्दीन (मोहल्ला चौपार), मोहल्ला अब्दुल मुत्तलिब सय्यद जाफ़र (मोहल्ला रौज़ा) और मोहल्ला सय्यद मीरान (मोहल्ला बंगला) क़िले की ऊपरी आबादी में तक़सीम हो गये। इन मोहल्लों की अपनी अपनी आलीशान इमामबारगाह आज भी मौजूद हैं। ये तीनों नक़वी मोहल्ले आज भी आबाद हैं। अलबत्ता क़ज़ियाना खण्डहर में तब्दील हो चुका है। तीनों मोहल्लों में अज़ादारी इन्तेहाई ख़ुलूस और एतिक़ाद के साथ मनायी जाती है।

शजरा संपादित करें

  • सय्यद ज़करिया- फ़ातहे नसीराबाद। (इनके तीन औलादें थीं)
  • सय्यद जलालुद्दीन (जद्दे आला मोहल्ला चौपार)
  • सय्यद जाफ़र (जद्दे आला मौहल्ला रौज़ा)
  • सय्यद मीरान (जद्दे आला मोहल्ला बंगला)

शिक्षा संपादित करें

आंकड़ों के अनुसार कस्बे का साक्षरता प्रतिशत औसतन 40% है। गांव में 48% पुरुष और 30% महिलायें साक्षर हैं। यहां एक सरकारी प्राइमरी पाठशाला, एक सरकारी जूनियर हाइस्कूल (बालक) और एक कन्या जूनियर हाइस्कूल है। इसके अलावा कुछ जूनियर हाइ स्कूल का जो कि 2018 में नाम बदल कर कन्या पूर्व माध्यमिक विद्यालय पड़ गया अभी तक गैर सरकारी विद्यालय भी चल रहे हैं।

यातायात संपादित करें

यहां बस के ज़रिये सीधे पहुंचा जा सकता है। जबकि नज़दीकी रेलवे स्टेशन छः किलोमीटर दूर जायस के नज़दीक क़ासिमपुर है। जहां से सड़क मार्ग के ज़रिये नसीराबाद पहुंचा जा सकता है। रेलवे स्टेशन से क़स्बे तक जाने के लिये टैम्पो और तांगे के ज़रिये पहुंच सकते हैं।

इन्हें भी देखें संपादित करें

सन्दर्भ संपादित करें

  1. "Uttar Pradesh in Statistics," Kripa Shankar, APH Publishing, 1987, ISBN 9788170240716
  2. "Political Process in Uttar Pradesh: Identity, Economic Reforms, and Governance Archived 2017-04-23 at the वेबैक मशीन," Sudha Pai (editor), Centre for Political Studies, Jawaharlal Nehru University, Pearson Education India, 2007, ISBN 9788131707975