नासिकेतोपाख्यान की रचना सदल मिश्र ने १८०३ ई. में किया है। इसकी भाषा संस्कृतनिष्ठ है। सदल मिश्र उन दिनों कलकत्ता के फोर्ट विलियम कॉलेज में कार्यरत थे। यह पुस्तक भी पाठ्यपुस्तकों के अभाव की पूर्ति की गिलक्राइस्ट की कोशिशों का परिणाम था।

'नासिकेतोपाख्यान' में नचिकेता ऋषि की कथा है। इसका मूल यजुर्वेद में तथा कथारूप में विस्तार कठोपनिषद् एवं पुराणों में मिलता है। कठोपनिषद् में ब्रह्मज्ञान निरूपण के लिये इस कथा का उपयोग किया गया है। अपने स्वतंत्र अनुवाद में मिश्र जी ने ब्रह्मज्ञान निरूपण को इतनी प्रधानता नहीं दी जितनी घटनाओं के कौतूहलपूर्ण वर्णन को। पुस्तक के शीर्षक को आकर्षक रूप देने के लिये उन्होंने 'चंद्रावली' नाम रखा।

यह आख्यानमूलक गद्य-कृति है। इसमें महाराज रघु की पुत्री चंद्रावती और उनके पुत्र 'नासिकेत' का पौराणिक आख्यान वर्णित है। 'नासिकेत' की कथा यजुर्वेद कठोपनिषद और पुराणों में वर्णित है।

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