नास्तिक दर्शन
नास्तिक दर्शन या अवैदिक दर्शन भारतीय दर्शन परम्परा में उन दर्शनों को कहा जाता है जो वेदों को नहीं मानते। इसको लोकायत दर्शन, बार्हस्पत्य-दर्शन तथा चार्वाक-दर्शन भी कहते हैं।
भारत में ऐसे दर्शन भी थे जो वैदिक परम्परा के बन्धन को नहीं मानते थे वे नास्तिक कहलाये तथा दूसरे जो वेद को प्रमाण मानकर उसी के आधार पर अपने विचार आगे बढ़ाते थे वे आस्तिक कहे गये।
नास्तिक दर्शन का कहना है कि इहलोक (जगत्) ही आत्मा का क्रीडास्थल है ; परलोक (स्वर्ग) नाम की कोई वस्तु नहीं है ; 'काम एवैकः पुरुषार्थः ' (काम ही मानव जीवन का एकमात्र पुरुषार्थ है) ; 'मरणमेवापवर्गः’ (मरण (मृत्यु) माने ही मोक्ष (मुक्ति) है) ; 'प्रत्यक्षमेव प्रमाणम्' (जो प्रत्यक्ष है वही प्रमाण है ( अनुमान प्रमाण नहीं है)) । धर्म ही नहीं है, अतः अधर्म नहीं है; स्वर्ग-नरक नहीं हैं। 'न परमेश्वरोऽपि कश्चित्' (कोई परमेश्वर भी नहीं है)। 'न धर्मः न मोक्षः' ( न तो धर्म है न मोक्ष है)। अतः जब तक शरीर में प्राण है, तब तक सुख प्राप्त करते हैं- इस विषयमें नास्तिक चार्वाक दर्शन स्पष्ट कहता है-
- यावज्जीवं सुखं जीवेदृणं कृत्वा घृतं पिबेत् ।
- भस्मीभूतस्य देहस्य पुनरागमनं कुतः ॥
अर्थात् जबतक देह में जीव है तबतक सुखपूर्वक जीयें, किसी से ऋण ले करके भी घी पीयें; क्योंकि एक बार देह (शरीर) मृत्यु के बाद जब भस्मीभूत हुआ, तब फिर उसका पुनरागमन कहाँ ? अतः 'खाओ, पीओ और मौज करो' - यही है 'नास्तिक दर्शन' या 'अवैदिक- दर्शन' का संदेश।