नाहरशाह वली दरगाह खजराना

शहंशाहे मालवा से प्रसिद्ध हजरत नाहरशाह वली की दरगाह मध्यप्रदेश के इंदौर शहर मेंं खजराना नामक स्थान पर है । इंदौर के पूर्वी तरफ एक ऊंचे मनोरम स्थान पर हिन्दू-मुुस्लिम एकता के प्रतीक खजराना में दोनो धर्म के प्रसिद्ध ऐतिहासिक धर्मस्थल है ।

आज से 350 बरस पहले खजराना जंगल था । घने जंगल मे एक ऊँचे टीले पर मुस्लिम संत इबादत करते। जंगली जानवर जैसे शेर वगैरह भी आकर संत के पास बैठ जाते । नाहर (शेर) को बैठा देख गाँव के लोग संत को नाहरवाले बाबा पुकारते , इस तरह संत का नाम नाहरशाह पड़ा । आसपास इमली के ढेरों पेड़ थे। आज भी कुछ पेड़ बाकी हैं । यही इनका निवास स्थान था । मृत्यु के बाद नाहरशाह वली को इसी स्थान पर दफ़नाया गया। उस स्थान पर बाद में दरगाह का निर्माण हुआ। इस्लामी कैलेंडर रबी अल-अव्वल की 13 तारीख को हजरत नाहरशाह वली रह0 ने पर्दा फरमाया। नाहरशाह वली की मृत्यु के बाद उनके जनाजे की नमाज मुगल बादशाह औरंगजेब ने पढ़ाई।

नाहरशाह वली की कहानी संपादित करें

हजरत नाहरशाह वली का इतिहास लिखने वाले जावेद शाह ने बताया कि इंदौर की पहचान सर्वधर्म सदभाव और आपसी भाईचारा से है । अपने अंदर इतिहास समेटे हुए करीब 300 साल पुराना ये शहर आधुनिक और पुरातन दोनों की झलक लिए भारत के सबसे स्वच्छ शहरों में पहले नम्बर पर है । खजराना में बरसों से इंसानियत के अलमदार पीर-फकीरों का आवागमन रहा है ।

परमारकालीन खजराना राजा भोज के समय से 1000 साल से आज भी वजूद में है। दिल्ली के हजरत निज़ामुद्दीन औलिया और अजमेर के ख्वाज़ा गरीब नवाज के दरबार आम में देशी-विदेशी और सभी मजहब के नर-नारी , नेता- अभिनेता बिना भेदभाव से हिस्सा लेते है और अपनी मुरादों की चादर चढ़ाते हैं।

ठीक उसी प्रकार खजराना की प्राचीन नाहरशाह वली की मुकद्दस दरगाह पर भी हर मजहब के मर्द-औरतों के अलावा किन्नरों भी हाजरी देने आते है।

कहते है हजरत नाहरशाह वली इराक से चलकर यहां आए। उन्हें यहां का खूबसूरत वातावरण भा गया। यही रहने लगे।

इतिहास के पन्नों से संपादित करें

जूना रिसाला निवासी होल्कर सूबेदार अब्दुल मजीद ने इंदौर दिग्दर्शिका पुस्तक के लेखक स्वतंत्रता सेनानी और इतिहासकार नगेन्द्र आज़ाद को बताया कि 'बुजुर्गों के बुजुर्ग बताते थे कि "खजराना इलाके में एक अल्लाह के वली का जिस्म-ऐ- मुबारक़ (लाश ) बहुत समय से रखा हुआ है । फ़क़ीर ने कहा दिया था कि मौत के बाद मेरी लाश तब ही दफ़नाई जाए । जब पहले 'तहज्जुद' की नमाज अदा हो जाए । तहज्जुद की नमाज वो व्यक्ति पढा सकता हैं जिसने होश संभालते ही कभी भी फर्ज नमाज क़ज़ा ना की हो।

इस वजह से करीब 3 महीने तक आपका जिस्म मुबारक़ बिना खराब हुए पेड़ों के साये में रखा रहा । '

कहते है मुगल सम्राट औरंगजेब को जब पता चला कि अल्लाह के एक वली का जिस्म ऐ मुबारक बिना दफ़न के रखा हुआ तो उन्होंने हजरत नाहरशाह वली के जनाजा की नमाज अदा की।

इतिहास संपादित करें

खजराना के आसपास का इलाका सरहदी रास्ता था । मुंबई-आगरा राजमार्ग के नजदीक बसा खजराना कम्पेल परगना की जागीर था। कम्पेल के चौधरी जमींदार मुगलों को रसद पहुँचाने का काम करते। खजराना के आसपास मुगलों के पड़ाव होते रहते । जब मुगल बादशाह औरंगजेब को इसकी जानकारी मिली कि अल्लाह के किसी वली का जिस्म-ऐ-मुबारक़ बिना दफन के करीब 3 महीने से रखा हुआ है । नाहरशाह वली के साथियों के बुलावे पर औरंगजेब खजराना आए।

बादशाह ने कहा मैं तहज्जुद की नमाज अदा करवाऊँगा। इसके बाद आपकी लाश मुबारक़ को दफनाया गया और बाद में मजार की तामीर हुई।

राजा-महाराजा से लेकर फ़िल्म अभिनेता पहुँचे हाजरी देने संपादित करें

नाहरशाह वली की दरगाह पर हाजरी देने वालों में महाराजा तुकाजीराव भी शामिल है । महाराज सपत्नी और परिवार के साथ यहां यदा-कदा आते रहते । देवास की महारानी पुष्पबाला राजे भी हाजरी देने आती रही । जंजीरा नवाब की बेगम राबिया सुल्ताना यहां की जायरीनों में इस कदर शामिल रही कि मरने के बाद भी आपके आस्ताने के बाहर दफन होना पसंद फरमाया । जंजीरा परिवार की ख़्वातीनों की मजारें दरगाह के सामने ओटले पर बनी हुई हैं। कश्मीर के मुख्यमंत्री गुलाम मोहम्मद बक्शी के भतीजे शफी और बेगम नसीम बानो बक्षी भी सन 1972-73 की खजराना उर्स कमेटी के सचिव रहे थे। फ़िल्म स्टार दिलीप कुमार की फ़िल्म आन की शूटिंग 1950 में खजराना में हुई । उस समय फ़िल्म के निर्देशक मेहबूब साहब और दिलीप कुमार दरगाह पर आना नही भूले । इसी फिल्म के अन्य कलाकार निम्मी ,नादिरा और मुकरी भी खजराना आ चुके है। मशहूर पार्श्वगायक मोहम्मद रफ़ीक के दोनों साहबजादे खालिद राशिद और हामिद की शादी 1973 में इंदौर में मिर्जा अब्दुल हमीद साहब की दोनों बेटियों यास्मीन और फौजिया से हुई तब इस शादी में जानी वाकर ,सलमान खान के वालिद सलीम खान ,हेलन ,अजित साहब ,रज़ा मुराद भी शामिल हुए थे । सभी खजराना पहुँचे । मरहूम हैदर पहलवान कडाबिन वालों की रिश्तेदारी भी दिलीप कुमार से रही है। ये सब नाहरशाह वली के दरबार में हाजरी दे चुके है।