नीलकंठ एक शिवाचार्य। नीलकंठ क्रियासार नामक वीर शैव ग्रंथ के लेखक थे। इस ग्रंथ की एक टीका १७३८ ई. में लिखी गई। कमलाकर भट्ट (१६१२ ई.) कृत निर्णयसिंधु में क्रियासार का उद्धरण है। मल्लणार्थ कृत कर्णाटक भाषा ग्रंथ वीर शैवाभूत महापुराण में (१५१३ ई.) इस ग्रंथ का उल्लेख है अत: इनका समय १५वीं शताब्दी होगा। क्रियासार के अलावा कर्णाटक भाषा में भी इन्होंने एक ग्रंथ का निर्माण किया। इनके अनुसार वीर शैवागम ही वैदिक है, अन्य आगम हैं। शक्ति विशिष्ट अद्वैत ब्रह्मरूपी शिव का प्रतिपादन इन्होंने किया है। कुछ लोग इन्हें शिवाद्वैतवादी ब्रह्मसूत्र के भाष्यकार श्रीकंठ से अभिन्न मानते हैं पर यह धारण गलत है।

ज्योतिष शास्त्र के एक ग्रंथ ताजिक के भी कर्त्ता कोई नीलकंठ थे जिनका समय मुसलमानों के आक्रमण के बाद का होना कीथ ने माना है। विंटरनित्ज के अनुसार महाभारत के टीकाकार नीलकंठ भी बहुत बाद के हैं।

समुद्रमंथन से उठे विष को पीकर गले में धारण करने के कारण जिनका कंठ नीला पड़ गया वे शिव भी नीलकंठ कहलाते हैं।