नूरजहां (गायिका)
नूरजहां (1926-2000) उर्दू और हिन्दी फिल्म की सुप्रसिद्ध गायिका और अभिनेत्री थीं जिन्होंने अपनी दिलकश आवाज़ और अभिनय से लगभग चार दशक तक श्रोताओं के दिल पर अपनी अमिट छाप छोड़ी।[1]
नूरजहां نُور جہاں | |
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Noor Jehan in 1945 film Zeenat | |
जन्म |
Allah Wasai اللہ وسائی 21 सितम्बर 1926 Kasur, Punjab, British India |
मौत |
23 December 2000 (aged 74) Karachi, Sindh, Pakistan |
समाधि | Gizri Graveyard, Karachi, Pakistan |
राष्ट्रीयता | Pakistani |
पेशा |
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कार्यकाल | 1935–1997 |
पदवी | "Malika-e-Tarannum" (Queen of Melody) |
जीवनसाथी |
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बच्चे | 6 |
संबंधी |
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Gizri Graveyard, Karachi, Pakistan | |
पुरस्कार | 15 Nigar Awards |
जीवन परिचय
संपादित करेंउनका जन्म 21 सितंबर 1926 को पंजाब के छोटे से शहर कसुर में एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था। उनके बचपन का नाम अल्लाह वासी उर्फ नूरजहां रखा गया। कहते हैं कि जन्म के समय उनके रोने की आवाज सुन उनकी बुआ ने कहा 'इस बच्ची के रोने में भी संगीत की लय है। यह आगे चलकर प्लेबैक सिंगर बनेगी।' नूरजहां के माता पिता थिएटर में काम करते थे। उनकी रूचि संगीत में भी थी। घर का माहौल संगीतमय होने के कारण नूरजहां का रुझान भी संगीत की ओर हो गया और वह गायिका बनने के सपने देखने लगी। उनकी माता ने नूरजहां के मन मे संगीत के प्रति बढ़ते रुझान को पहचान लिया और उन्हें इस राह पर आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया तथा उनके लिए संगीत सीखने की व्यवस्था घर पर ही कर दी। नूरजहां ने संगीत की प्रारंभिक शिक्षा कज्जनबाई और शास्त्रीय संगीत की शिक्षा उस्ताद गुलाम मोहम्मद तथा उस्ताद बडे़ गुलाम अली खां से ली थी। वर्ष 1947 में भारत विभाजन के बाद नूरजहां ने पाकिस्तान जाने का निश्चय कर लिया। फिल्म अभिनेता दिलीप कुमार ने जब नूरजहां से भारत में ही रहने की पेशकश की तो नूरजहां ने कहा 'मैं जहां पैदा हुई हूं वहीं जाउंगी।' 1963 में उन्होंने अभिनय की दुनिया को अलविदा कह दिया। वर्ष 1982 में इंडिया टॉकी के गोल्डेन जुबली समारोह में उन्हें भारत आने को न्योता मिला। तब श्रोताओं की मांग पर नूरजहां ने 'आवाज दे कहां है दुनिया मेरी जवां है' गीत पेश किया और उसके दर्द को हर दिल ने महसूस किया। 1992 में उन्होंने संगीत की दुनिया को भी अलविदा कह दिया। 23 दिसम्बर 2000 को दिल का दौरा पड़ने से उनकी मौत हो गई, उस समय वह 74 साल की थीं।
फिल्मी जीवन
संपादित करेंवर्ष 1930 में नूरजहां को इंडियन पिक्चर के बैनर तले बनी एक मूक फिल्म 'हिन्द के तारे' में काम करने का मौका मिला। इसके कुछ समय के बाद उनका परिवार पंजाब से कोलकाता चला आया। इस दौरान उन्हें करीब 11 मूक फिल्मों मे अभिनय करने का मौका मिला। वर्ष 1931 तक नूरजहां ने बतौर बाल कलाकार अपनी पहचान बना ली थी। वर्ष 1932 में प्रदर्शित फिल्म 'शशि पुन्नु' नूरजहां के सिने कैरियर की पहली टॉकी फिल्म थी। इस दौरान उन्होंने कोहिनूर यूनाईटेड आर्टिस्ट के बैनर तले बनी कुछ फिल्मों मे काम किया। कोलकाता में उनकी मुलाकात फिल्म निर्माता पंचोली से हुई। पंचोली को नूरजहां में फिल्म इंडस्ट्री का एक उभरता हुआ सितारा दिखाई दिया और उन्होंने उसे अपनी नई फिल्म 'गुल ए बकावली' लिए चुन लिया। इस फिल्म के लिए नूरजहां ने अपना पहला गाना 'साला जवानियां माने और पिंजरे दे विच' रिकार्ड कराया। लगभग तीन वर्ष तक कोलकाता रहने के बाद नूरजहां वापस लाहौर चली गई। वहां उनकी मुलाकात मशहूर संगीतकार जीए चिश्ती से हुई, जो स्टेज प्रोग्राम में संगीत दिया करते थे। उन्होंने नूरजहां से स्टेज पर गाने की पेशकश की जिसके ऐवज में उन्होंने नूरजहां को प्रति गाने साढे़ सात आने दिए। साढे़ सात आने उन दिनों अच्छी खासी रकम मानी जाती थी। वर्ष 1939 मे निर्मित पंचोली की संगीतमय फिल्म 'गुल ए बकावली' फिल्म की सफलता के बाद नूरजहां फिल्म इंडस्ट्री में सुर्खियों मे आ गई। इसके बाद वर्ष 1942 में पंचोली की ही निर्मित फिल्म 'खानदान' की सफलता के बाद वह बतौर अभिनेत्री फिल्म इंडस्ट्री में स्थापित हो गई। फिल्म 'खानदान' में उन पर फिल्माया गाना 'कौन सी बदली में मेरा चांद है आ जा' श्रोताओं के बीच काफी लोकप्रिय भी हुआ। इसके बाद वह मुंबई आ गई। इस बीच नूरजहां ने शौकत हुसैन जिनसे फिल्म खानदान के बाद उनका निकाह हो गया था, की निर्देशित और नौकर, जुगनू 1943 जैसी फिल्मों मे अभिनय किया। नूरजहां अपनी आवाज़ में नित्य नए प्रयोग किया करती थी। अपनी इन खूबियों की वजह से वह ठुमरी गायकी की महारानी कहलाने लगी। इस दौरान उनकी दुहाई 1943, दोस्त 1944, बडी मां और विलेज गर्ल, 1945 जैसी कामयाब फिल्में प्रदर्शित हुई। इन फिल्मों में उनकी आवाज का जादू श्रोताओ के सर चढ़कर बोला। इस तरह नूरजहां मुंबइयां फिल्म इंडस्ट्री में मल्लिका-ए-तरन्नुम कही जाने लगी। वर्ष 1945 में नूरजहां की एक और फिल्म 'जीनत' भी प्रदर्शित हुई। इस फिल्म का एक कव्वाली 'आहें ना भरी शिकवें ना किए, कुछ भी ना जुवां से काम लिया' श्रोताओं के बीच बहुत लोकप्रिय हुई। नूरजहां को निर्माता निर्देशक महबूब खान की 1946 मे प्रदर्शित फिल्म अनमोल घड़ी में काम करने का मौका मिला। महान संगीतकार नौशाद के निर्देशन में उनके गाए गीत आवाज दे कहां है, आजा मेरी बर्बाद मोहब्बत के सहारे, जवां है मोहब्बत श्रोताओं के बीच आज भी लोकप्रिय हैं।
1947 में विभाजन के बाद वे पाकिस्तान चली गईं किंतु अपना फिल्मी जीवन जारी रखा। लगभग तीन वर्ष तक पाकिस्तान फिल्म इंडस्ट्री में खुद को स्थापित करने के बाद नूरजहां ने फिल्म 'चैनवे' का निर्माण और निर्देशन किया। इस फिल्म ने बॉक्स आफिस पर खासी कमाई की। इसके बार्द 1952 में प्रदर्शित फिल्म 'दुपट्टा' ने फिल्म 'चैनवे' के बाक्स आफिस रिकार्ड को भी तोड़ दिया। इस फिल्म मे नूरजहां की आवाज़ में सजे गीत श्रोताओं के बीच इस कदर लोकप्रिय हुए कि न सिर्फ इसने पाकिस्तान में बल्कि पूरे भारत में भी इसने धूम मचा दी। ऑल इंडिया रेडियो से लेकर रेडियो सिलोन पर नूरजहां की आवाज़ का जादू श्रोताओं पर छाया रहा। इस बीच नूरजहां ने गुलनार 1953, फतेखान 1955, लख्ते जिगर 1956, इंतेजार 1956, अनारकली 1958, परदेसियां 1959, कोयल 1959 और मिर्जा गालिब 1961 जैसी फिल्मों में अभिनय से दर्शकों का भरपूर मनोरंजन किया। वर्ष 1963 में उन्होंने अभिनय की दुनिया से विदाई ले ली। वर्ष 1996 में नूरजहां आवाज़ की दुनिया से भी जुदा हो गई। वर्ष 1996 में प्रदर्शित एक पंजाबी फिल्म 'सखी बादशाह' में नूरजहां ने अपना अंतिम गाना 'कि दम दा भरोसा' गाया। उन्होंने अपने संपूर्ण फिल्मी कैरियर में लगभग दस हजार गाने गाए। हिन्दी फिल्मों के अलावा नूरजहां ने पंजाबी, उर्दू और सिंधी फिल्मों में भी अपनी आवाज़ से श्रोताओं को मदहोश किया।
विशेष
संपादित करें- नूरजहां पहली पाकिस्तानी महिला फिल्म निर्माता रहीं।
- नूरजहां फिल्मी निर्माता, गायिका, अभिनेत्री और म्यूजिक कंपोजर रहीं।
- नूरजहां ने हिन्दी, उर्दू, सिंधी, पंजाबी जैसी भाषाओं में कुल 10 हजार से ज्यादा गाने गाए।
- 1945 में नूरजहां ने फिल्मी बड़ी मां में लता मंगेशकर व आशा भोंसले के साथ एक्टिंग की।
- 1945 में नूरजहां की आवाज में दक्षिण एशिया में पहली बार किसी महिला की आवाज़ में कव्वाली रिकॉर्ड की गई। 'आहें न भरे, शिकवे न किए' यह कव्वाली उन्होंने जोहराबाई अंबालेवाली और अमीरबाई कर्नाटकी के साथ गाई।
- नूरजहां ने 12 मूक फिल्मों में भी काम किया।
पुरस्कार/सम्मान
संपादित करें- नूरजहां को मल्लिका-ए-तरन्नुम (क्वीन ऑफ मेलोडी) सम्मान से नवाजा गया।
- वे 1966 में पाकिस्तान सरकार द्वारा 'तमगा ए इम्तियाज' सम्मान से नवाजी गईं।
प्रमुख फिल्में
संपादित करेंवर्ष | फ़िल्म | चरित्र | टिप्पणी |
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1953 | दो बीघा ज़मीन | ||
1946 | अनमोल घड़ी |
प्रवेश
संपादित करेंफिल्म गुले बकावली में नूरज़हां को रोल कैसे मिला ये भी एक रोचक किस्सा है| केवल 19 साल की थीं वे उस समय| बचपन से उनका कंठस्वर अत्यंत मधुर था| नूरज़हां के माता-पिता को उनके शुभचिंतक यही राय देते थे कि लड़की को फिल्मों में प्रवेश दिला दो, बहुत नाम पैदा करेगी| नूरज़हां की रुचि भी फिल्मों में काम करने की थी अतः वे रोज लाहौर के पांचोली स्टुडिओ के फाटक के पास जाकर खड़ी हो जाया करती थीं और स्टुडिओ के मालिक दिलसुख एम. पांचोली की गाड़ी के फाटक के पास आते ही गाना गाना शुरू कर देती थीं| कुछ ही दिनों में नूरज़हां की मधुर आवाज ने पांचोली साहब का ध्यान आकृष्ट कर लिया और उन्हें अपनी फिल्म गुले बकावली में भूमिका दे दी| इस पंजाबी फिल्म के संगीतकार थे गुलाम हैदर साहब जिन्होंने नूरज़हां को गाने की तकनीक सिखलाई|
नूरज़हां की पहली हिंदी फिल्म 1942 में बनी खानदान थी जिसमें प्राण ने नायक की भूमिका निभाई थी|
देश के विभाजन होने पर नूरज़हां पाकिस्तान चली गईं जहाँ कि उनकी आवाज वर्षों तक गूंजती रही और उन्हें मलिका-ए-तरन्नुम का खिताब मिला|
चलचिर तालिका
संपादित करेंवर्ष | चलचित्र |
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१९३५ | शीला |
१९३९ | गुल बाकाओलि |
१९३९ | इमानदार |
१९३९ | पियाम-इ-हक |
१९४० | सजनी |
१९४० | यमला जाट |
१९४१ | चौधरी |
१९४१ | रेड सिगनल |
१९४१ | उमरिद |
१९४१ | ससुराल |
१९४२ | चांदनी |
१९४२ | धीरज |
१९४२ | फरियाद |
१९४२ | खानदान - १९४२ की द्वितीय सर्वोच्च व्यवसायसफल चलचित्र |
१९४३ | नादान |
१९४३ | दुहाई |
१९४३ | नौकर - १९४३ की ५वीं सबसे अधिक व्यवसाय-सफल भारतीय चलचित्र |
१९४४ | लाल हवेली]] |
१९४४ | दोस्त |
यह भी देखिए
संपादित करेंसन्दर्भ
संपादित करें- ↑ "'ख़ूबसूरत बंदा देख, नूरजहां को गुदगुदी होती थी'". मूल से 10 फ़रवरी 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 10 जून 2019.
बाहरी कड़ियाँ
संपादित करें- 'आवाज दे कहां है, दुनिया मेरी जवां है'[मृत कड़ियाँ] (नूरजहाँ के बारे में विस्तृत लेख)
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